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क्रिसमस की असली तारीख: क्या सच में यीशु का जन्म 25 दिसंबर को हुआ था

December 25, 2025

नई दिल्ली । हर साल 25 दिसंबर को पूरी दुनिया में क्रिसमस की रौनक छा जाती है। घरों में क्रिसमस ट्री (Christmastrees)सजते हैं, लाइट्स जगमगाती(twinkling lights) हैं, सैंटा क्लॉज(Santa Claus ) बच्चों को गिफ्ट्स बांटते (distributing gifts)हैं और चर्चों में प्रार्थनाएं (prayers in churches)होती हैं। लेकिन एक सवाल अक्सर लोगों के मन में आता है- क्या यीशु मसीह का जन्म सच में 25 दिसंबर को हुआ था? अगर नहीं, तो फिर इस दिन को क्रिसमस क्यों मनाया जाता है? आज हम इसी रहस्य को खोलेंगे। ऐतिहासिक तथ्यों, किवदंतियों और विद्वानों की राय के साथ समझते हैं कि आखिर ये दिलचस्प कहानी क्या है।

यीशु का जन्म: बाइबल क्या कहती है?
बाइबल में यीशु मसीह के जन्म की कहानी विस्तार से है। जैसे- बैथलेहम में मैरी और जोसेफ के यहां एक अस्तबल में जन्म, चरवाहों और तीन विद्वानों (मागी) का आना आदि। लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि बाइबल में जन्म की कोई सटीक तारीख नहीं बताई गई है। न महीना, न दिन। विद्वान मानते हैं कि यीशु का जन्म संभवतः 6-4 ईसा पूर्व के बीच हुआ था और मौसम के संकेतों- जैसे चरवाहे रात में भेड़ों के साथ मैदान में थे… इससे लगता है कि ये वसंत या गर्मियों का समय हो सकता है, न कि सर्दियों का। दिसंबर में तो मध्य पूर्व में ठंड बहुत होती है, चरवाहे बाहर नहीं रहते! तो फिर 25 दिसंबर कैसे चुना गया?

प्राचीन रोमन उत्सवों का कनेक्शन: सैटर्नेलिया और सोल इनविक्टस
सबसे लोकप्रिय थ्योरी ये है कि 25 दिसंबर का चुनाव रोमन साम्राज्य के पुराने पगान (गैर-ईसाई) उत्सवों से प्रभावित था। रोमन लोग दिसंबर में दो बड़े त्योहार मनाते थे:

सैटर्नेलिया: 17 से 23 दिसंबर तक। ये कृषि देवता सैटर्न के सम्मान में था। इसमें दावतें, गिफ्ट्स का आदान-प्रदान, नाच-गाना और यहां तक कि गुलामों को मालिकों के साथ बराबरी का मौका मिलता था। बहुत मौज-मस्ती वाला उत्सव!

सोल इनविक्टस: 274 ईस्वी में रोमन सम्राट ऑरेलियन ने 25 दिसंबर को ‘अजेय सूर्य देव’ के जन्मदिन के रूप में घोषित किया। ये सर्दियों के संक्रांति (विंटर सोलस्टाइस) के आसपास था, जब दिन छोटे होने के बाद फिर लंबे होने लगते हैं यानी सूर्य की ‘जीत’ का प्रतीक!
जब ईसाई धर्म रोमन साम्राज्य में फैला (खासकर 312 ईस्वी में सम्राट कॉन्सटेंटाइन के ईसाई बनने के बाद), तो चर्च ने सोचा कि पुराने पगान उत्सवों को ईसाई रंग दे दिया जाए। इससे लोग आसानी से ईसाई बन सकें। 336 ईस्वी में रोम में पहली बार आधिकारिक तौर पर 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया गया। कई विद्वान मानते हैं कि ये जान-बूझकर किया गया ताकि पगान लोग यानी गैर-ईसाई अपने पुराने त्योहारों को छोड़े बिना ईसाई बन जाएं। यीशु को ‘सच्चा सूर्य’ या ‘प्रकाश की ज्योति’ कहा जाने लगा, जो पुराने सूर्य देवता को ओवरशैडो करता था।

दूसरी थ्योरी: ईसाई गणना का नतीजा
लेकिन सभी विद्वान इस पगान कनेक्शन से सहमत नहीं। कुछ का कहना है कि 25 दिसंबर की जड़ें पूरी तरह ईसाई परंपरा में हैं। तीसरी सदी के शुरुआती ईसाई लेखक हिप्पोलिटस ऑफ रोम (204 ईस्वी के आसपास) ने लिखा कि यीशु का जन्म 25 दिसंबर को हुआ। ये सोल इनविक्टस से 70 साल पहले की बात है!

इसकी वजह एक पुरानी यहूदी-ईसाई मान्यता है कि: महान लोग अपनी जिंदगी की बड़ी घटनाएं एक ही तारीख पर पूरी करते हैं। यीशु की मृत्यु (क्रूसीफिक्शन) 25 मार्च को मानी जाती थी (पासोवर के आसपास)। तो उनकी गर्भधारण की तारीख भी 25 मार्च ही होगी, और नौ महीने बाद जन्म- 25 दिसंबर! ये कैलकुलेशन हाइपोथेसिस कहलाती है। शुरुआती ईसाई इसे दिव्य संकेत मानते थे जैसे सर्दियों में अंधेरा खत्म होकर प्रकाश आता है, ठीक वैसे ही यीशु दुनिया में प्रकाश लाए।
किवदंतियां भी हैं-
एक 12वीं सदी की किवदंती कहती है कि क्रिसमस को जानबूझकर 25 दिसंबर पर शिफ्ट किया गया ताकि पगान उत्सवों को कवर किया जाए।
आज का क्रिसमस ट्री जर्मन परंपरा से आया (16वीं सदी)।
सैंटा क्लॉज सेंट निकोलस से (तुर्की के एक दयालु संत)।
क्रिसमस क्या है और क्रिसमस ट्री का यीशु से क्या कनेक्शन?
आज के समय में क्रिसमस सिर्फ धार्मिक त्योहार नहीं रह गया- आज ये पूरी दुनिया में सेक्युलर (गैर-धार्मिक) उत्सव बन चुका है। लोग प्रेम, खुशी और नई शुरुआत का जश्न मनाते हैं, सैंटा क्लॉज की कहानियां सुनाते हैं और घरों को लाइट्स से सजाते हैं। सच कहें तो क्रिसमस ट्री का यीशु मसीह के जन्म से कोई सीधा कनेक्शन नहीं है। बाइबल में यीशु के जन्म की कहानी में कहीं ट्री का जिक्र नहीं है- न अस्तबल में, न बैथलेहम में। ये परंपरा बहुत बाद में आई, और इसकी जड़ें प्राचीन पगान (गैर-ईसाई) रीति-रिवाजों में हैं। प्राचीन काल में, यूरोप के लोग (रोमन, जर्मन, स्कैंडिनेवियन) सर्दियों के संक्रांति (विंटर सोलस्टाइस) पर हमेशा हरे रहने वाले पेड़ों (एवरग्रीन जैसे पाइन, फर) की पूजा करते थे। ये पेड़ सर्दी में भी हरे रहते हैं, इसलिए जीवन, उम्मीद और सूर्य की वापसी का प्रतीक माने जाते थे। रोमन सैटर्नेलिया में घरों को हरी टहनियों से सजाते थे, और नॉर्स लोग यूल उत्सव में एवरग्रीन का इस्तेमाल करते थे।

ईसाई कनेक्शन कैसे बना?
मध्ययुग में (8वीं सदी) एक किवदंती है सेंट बोनिफेस की। वो जर्मनी में पगान लोगों को ईसाई बना रहे थे। एक दिन उन्होंने थॉर (डोनर) देवता का पवित्र ओक पेड़ काट दिया और कहा कि ये झूठा देवता है। वहां एक छोटा फर का पेड़ उगा, जिसे उन्होंने ईसाई जीवन का प्रतीक बताया – हमेशा हरा, त्रिकोण आकार स्वर्ग की ओर इशारा करता है।

एक और शुरुआत मध्ययुगीन पैराडाइज प्ले से है- 24 दिसंबर (एडम-ईव का दिन) को नाटक में ईडन गार्डन दिखाने के लिए एवरग्रीन पेड़ पर सेब लटकाते थे (ज्ञान का फल)। इसे पैराडाइज ट्री कहते थे। बाद में ये क्रिसमस से जुड़ गया।

16वीं सदी में जर्मनी में क्रिसमस ट्री की आधुनिक परंपरा शुरू हुई। एक किवदंती मार्टिन लूथर (प्रोटेस्टेंट सुधारक) की है – वो जंगल में घूमते हुए तारों से जगमगाते पेड़ देखकर प्रभावित हुए और घर पर मोमबत्तियां लगाकर ट्री सजाया।

19वीं सदी में जर्मन प्रवासियों और ब्रिटिश रॉयल फैमिली (क्वीन विक्टोरिया के पति प्रिंस अल्बर्ट जर्मन थे) ने इसे पूरे यूरोप-अमेरिका में फैलाया। अब ट्री पर लाइट्स (यीशु को दुनिया का प्रकाश मानकर), स्टार (बैथलेहम का तारा), गिफ्ट्स और ऑर्नामेंट्स लगते हैं।
क्रिसमस क्या है और क्रिसमस ट्री का यीशु से क्या कनेक्शन?
आज के समय में क्रिसमस सिर्फ धार्मिक त्योहार नहीं रह गया- आज ये पूरी दुनिया में सेक्युलर (गैर-धार्मिक) उत्सव बन चुका है। लोग प्रेम, खुशी और नई शुरुआत का जश्न मनाते हैं, सैंटा क्लॉज की कहानियां सुनाते हैं और घरों को लाइट्स से सजाते हैं। सच कहें तो क्रिसमस ट्री का यीशु मसीह के जन्म से कोई सीधा कनेक्शन नहीं है। बाइबल में यीशु के जन्म की कहानी में कहीं ट्री का जिक्र नहीं है- न अस्तबल में, न बैथलेहम में। ये परंपरा बहुत बाद में आई, और इसकी जड़ें प्राचीन पगान (गैर-ईसाई) रीति-रिवाजों में हैं। प्राचीन काल में, यूरोप के लोग (रोमन, जर्मन, स्कैंडिनेवियन) सर्दियों के संक्रांति (विंटर सोलस्टाइस) पर हमेशा हरे रहने वाले पेड़ों (एवरग्रीन जैसे पाइन, फर) की पूजा करते थे। ये पेड़ सर्दी में भी हरे रहते हैं, इसलिए जीवन, उम्मीद और सूर्य की वापसी का प्रतीक माने जाते थे। रोमन सैटर्नेलिया में घरों को हरी टहनियों से सजाते थे, और नॉर्स लोग यूल उत्सव में एवरग्रीन का इस्तेमाल करते थे।

 


ईसाई कनेक्शन कैसे बना?
मध्ययुग में (8वीं सदी) एक किवदंती है सेंट बोनिफेस की। वो जर्मनी में पगान लोगों को ईसाई बना रहे थे। एक दिन उन्होंने थॉर (डोनर) देवता का पवित्र ओक पेड़ काट दिया और कहा कि ये झूठा देवता है। वहां एक छोटा फर का पेड़ उगा, जिसे उन्होंने ईसाई जीवन का प्रतीक बताया – हमेशा हरा, त्रिकोण आकार स्वर्ग की ओर इशारा करता है।

एक और शुरुआत मध्ययुगीन पैराडाइज प्ले से है- 24 दिसंबर (एडम-ईव का दिन) को नाटक में ईडन गार्डन दिखाने के लिए एवरग्रीन पेड़ पर सेब लटकाते थे (ज्ञान का फल)। इसे पैराडाइज ट्री कहते थे। बाद में ये क्रिसमस से जुड़ गया।

16वीं सदी में जर्मनी में क्रिसमस ट्री की आधुनिक परंपरा शुरू हुई। एक किवदंती मार्टिन लूथर (प्रोटेस्टेंट सुधारक) की है – वो जंगल में घूमते हुए तारों से जगमगाते पेड़ देखकर प्रभावित हुए और घर पर मोमबत्तियां लगाकर ट्री सजाया।

19वीं सदी में जर्मन प्रवासियों और ब्रिटिश रॉयल फैमिली (क्वीन विक्टोरिया के पति प्रिंस अल्बर्ट जर्मन थे) ने इसे पूरे यूरोप-अमेरिका में फैलाया। अब ट्री पर लाइट्स (यीशु को दुनिया का प्रकाश मानकर), स्टार (बैथलेहम का तारा), गिफ्ट्स और ऑर्नामेंट्स लगते हैं।

 

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