
हैप्पी क्रिसमस पर 5 मरीजों को मिली नई जिंदगी और अपना ठिकाना
लावारिस मिले थे अब सहारा वार्ड का स्टाफ ही परिवार बन गया
इंदौर। एक्सीडेंट (Accident) या हद से ज्यादा दु:ख-दर्द अथवा बीमारी (Disease) के चलते याददाश्त (Memory) खो चुके, सडक़ों पर लावारिस, लाचार या बेसहारा मिले अजनबी पीडि़त मरीजों के लिए लगभग हैप्पी होम बन चुके एमवाय हॉस्पिटल के सहारा वार्ड ने इस बार भी क्रिसमस फेस्टिवल पर 5 मरीजों को पूरी तरह से स्वस्थ कर उन्हें अपने ठिकानों पर भेजकर नई जिंदगी जीने के लिए रवाना किया।
एमवाय हास्पिटल ने साल 2016 में लावारिस, बेसहारा, लाचार लोगों के लायक सहारा वार्ड की स्थापना की थी। तब से अब तक सहारा वार्ड 3000 से ज्यादा लाचार, बेबस, बीमार बेसहारों का इलाज कर उन्हें नई जिंदगी दे चुका है। जिन बेसहारों को स्वस्थ कर उन्हें वापस अपने ठिकानों पर भेजा जा चुका है, उनमें नेपाल, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब सहित कई राज्यों के अनजान पीडि़त थे। इस बार भी क्रिसमस पर जिन 5 बीमारों को स्वस्थ कर विदा कर वृद्धाश्रम पहुंचाया, उनमें अशोक (65), लताबाई (60) मंगल (30), महेश कुशवाह (60) शामिल हैं। इन चारों के अलावा 50 वर्षीय पप्पू को उसके घर के लिए विदा किया गया। इनमें से पप्पूसिंह को ही अपना परिवार वापस मिला है, वरना अधिकांश मरीज स्वस्थ होने के बाद सामाजिक संस्थाओं द्वारा संचालित वृद्धाश्रम में ही जीवन गुजारते हैं। जब तक इन्हें इनके अपने या कोई सहारा नहीं मिल जाता, तब तक सहारा वार्ड और इस वार्ड से जुड़ी अन्य संस्थाएं, एम्बुलेंस चालक ही इनका परिवार बन जाते हैं। सालभर के हर त्योहार राखी, दिवाली, होली, रंगपंचमी, ईद, क्रिसमस इन्हीं मरीजों के साथ मिलकर मनाते हैं, जिससे इन्हें अपनों की या परिवार की कमी महसूस न हो। इन 5 लोगों को विदा करने के पहले हैप्पी क्रिसमस फेस्टिवल मनाया गया। इस दौरान असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट डॉ. महेश, डॉ. रोहित, नर्सिंग सुपरिंटेंडेंट मैडम दयाल, सेवानिवृत्त इंचार्ज डोरिस सिस्टर तथा वर्तमान इंचार्ज सीमा सिंह शिल्पा ने क्रिसमस ट्री को सुंदर ढंग से सजाया। मेडिकल कॉलेज डीन डाक्टर अरविंद घनघोरिया और अधीक्षक डाक्टर अशोक यादव ने भी सबका उत्साहवर्धन किया ।
सहारा वार्ड में 17 पुरुष, 2 महिलाएं
अपने स्टाफ और सहयोगी साथियों के निरंतर सेवा कार्यों के कारण एमवाय में मदर टेरेसा के नाम से मशहूर सीमा सिंह ने बताया कि सहारा वार्ड में 17 पुरुष और 2 महिला मरीज भर्ती हैं। इनमें से अधिकांश पीडि़त अपनों से ठुकराए, लाचार, लावारिस हैं। इस सहारा वार्ड में अकसर ऐसे ही पीडि़त शहर की एम्बुलेंस, सामाजिक संस्थाओं, वृद्धाश्रमों द्वारा यहां पहुंचाए जाते हैं। यह आते तो अनजान और अजनबी बनकर, मगर स्वस्थ होते-होते ज्यादातर पीडि़त की याददाश्त वापस आ जाती है तो इन्हें अपना नाम, घर-परिवार सब याद आने लगता है। कई को उनके परिजन ही ढूंढते हुए आ जाते हैं तो इनमें से कई ऐसे भी होते हैं, जो रहते तो वृद्धाश्रम में हैं, मगर जब गंभीर रूप से बीमार पड़ते हैं।

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