
बारामती। महाराष्ट्र (Maharashtra) में 29 महानगरपालिकाओं (Municipalities) के चुनावों की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। 15 जनवरी 2026 को मतदान होगा और 16 जनवरी को परिणाम घोषित किए जाएंगे। इनमें देश की सबसे बड़ी महानगर पालिका (Largest Municipal Corporation) यानी बृहन्मुंबई महानगरपालिका (Brihanmumbai Municipal Corporation- BMC) सहित पुणे, ठाणे, नासिक जैसे महत्वपूर्ण निकाय शामिल हैं। इसी बीच बारामती में उद्योगपति गौतम अडानी का भव्य स्वागत और शरद पवार के साथ उनकी निकटता ने राज्य की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है।
रविवार को अडानी बारामती पहुंचे थे, जहां उन्होंने पवार परिवार द्वारा संचालित विद्या प्रतिष्ठान में शरदचंद्र पवार सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उद्घाटन किया। हालांकि, कार्यक्रम से ज्यादा उसकी राजनीतिक ऑप्टिक्स पर नजरें टिक गईं। अडानी के साथ अजित पवार मौजूद थे और उन्हें जिस कार में ले जाया गया, वह रोहित पवार चला रहे थे। स्वागत करने वालों में सुप्रिया सुले और सुनेत्रा पवार भी शामिल रहीं। इस मुलाकात के बाद राजनीतिक प्रतिक्रियाएं तेज हो गईं।
एमवीए में शामिल कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) लंबे समय से अडानी समूह पर हमलावर रहे हैं। वे सत्तारूढ़ महायुति (बीजेपी-शिंदे सेना-अजित पवार एनसीपी) पर ‘कॉरपोरेटपरस्त’ होने का आरोप लगाते आए हैं, खासकर मुंबई के धारावी पुनर्विकास, बंदरगाह और हवाईअड्डा परियोजनाओं को अडानी को सौंपने के मुद्दे पर। अब शरद पवार का अडानी के साथ सार्वजनिक मंच साझा करना एमवीए के इन हमलों की धार कुंद कर रहा है।
शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के नेता संजय राउत ने शरद पवार की 2015 की आत्मकथा ‘लोक माझे संगाती’ का हवाला देते हुए याद दिलाया कि पवार ने उसमें अडानी को मेहनती, सादे और दूरदर्शी उद्यमी के रूप में वर्णित किया था। पवार ने लिखा था कि अडानी का बुनियादी ढांचे में आने का सपना था और उनके सुझाव पर ही उन्होंने कोयला क्षेत्र में कदम रखा।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस के भीतर इस घटनाक्रम पर मतभेद उभर आए। महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने कहा कि पार्टी को पवार–अडानी संबंधों से आपत्ति नहीं है, वह सिर्फ पारदर्शिता चाहती है। वहीं, मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष वर्षा गायकवाड़ ज्यादा मुखर दिखीं। उन्होंने कहा कि विपक्ष को आम आदमी से जुड़े मुद्दों पर कम से कम एकजुटता दिखानी चाहिए थी, खासकर ऐसे समय में जब सरकार पर कॉरपोरेट-हितैषी होने के आरोप लग रहे हैं।
कांग्रेस के अन्य नेताओं का मानना है कि नगर निकाय चुनाव से ठीक पहले यह मुलाकात महा विकास अघाड़ी (MVA) को कमजोर करती है और भाजपा की प्रो-कॉरपोरेट छवि पर विपक्ष के हमले को धारहीन बनाती है। एक पूर्व मंत्री ने कहा कि पहले नरेंद्र मोदी और अमित शाह को बारामती बुलाया गया और अब अडानी आए- इससे विपक्ष की रणनीति पर सवाल उठते हैं।
इस पूरे घटनाक्रम पर भारतीय जनता पार्टी ने फिलहाल चुप्पी साध रखी है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, यह चुप्पी केंद्र में शरद पवार से संवाद के रास्ते खुले रखने की रणनीति का हिस्सा हो सकती है, खासकर तब जब एनडीए सरकार सहयोगी दलों पर निर्भर है और बहुमत का आंकड़ा 272 से नीचे है।
यह पहली बार नहीं है जब शरद पवार ने विपक्ष की सामूहिक लाइन से अलग रुख अपनाया हो। उन्होंने पहले अडानी समूह से जुड़े हिंडनबर्ग आरोपों पर संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की मांग का विरोध किया था और सुप्रीम कोर्ट-निगरानी वाले पैनल को ज्यादा प्रभावी बताया था। बाद में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने अडानी समूह को आरोपों से क्लीन चिट दी।
इसके बाद ऑपरेशन सिंदूर और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर भी पवार ने राजनीति से ऊपर उठकर बात करने की सलाह दी, जबकि विपक्ष विशेष संसद सत्र की मांग कर रहा था। संसद के मॉनसून सत्र में भी एनसीपी (एसपी) ने विपक्ष से अलग राह अपनाते हुए एक विधेयक पर जेपीसी में शामिल होने का फैसला किया था। कुल मिलाकर, नगर निकाय चुनाव से पहले बारामती में हुआ यह स्वागत सिर्फ एक औपचारिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि महाराष्ट्र की बदलती राजनीतिक गणनाओं का संकेत माना जा रहा है- जिसके निहितार्थ चुनावी नतीजों और विपक्षी एकजुटता पर पड़ सकते हैं।
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