
नई दिल्ली। 2025 का साल वैश्विक व्यापार (Global trade) के लिए उथल-पुथल भरा रहा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (American President Donald Trump) की दूसरी पारी में ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति (‘America First’ policy) ने नई ऊंचाई छुई। ट्रंप प्रशासन ने कुछ ही महीनों में भारत पर 50 फीसदी आयात शुल्क यानी टैरिफ लगा दिया। इसमें पहले 25 प्रतिशत ‘जवाबी टैरिफ’ और फिर रूसी तेल खरीद को लेकर अतिरिक्त 25 प्रतिशत ‘सेकेंडरी टैरिफ’ लगाया। यह कदम भारत के निर्यातकों के लिए बड़ा झटका था, क्योंकि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। कपड़ा, रत्न-आभूषण, दवा, समुद्री उत्पाद और इंजीनियरिंग गुड्स जैसे क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हुए।
ट्रंप का तर्क था कि भारत जैसे देश अमेरिका के साथ व्यापार घाटे को बढ़ावा दे रहे हैं और रूस को अप्रत्यक्ष मदद कर रहे हैं। लेकिन भारत ने इसे अनुचित करार दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी टीम ने इसे अवसर में बदल दिया। जवाब में भारत ने अपनी ‘स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी’ को मजबूत किया और फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स (FTA) यानी मुक्त व्यापार समझौतों को सबसे बड़ा हथियार बनाया। कई देशों ने भारत के साथ हाथ मिलाया, क्योंकि वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता बढ़ी है। नतीजा? नवंबर 2025 में भारत के कुल निर्यात में 19.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और टैरिफ के बावजूद अमेरिका को निर्यात में 22 प्रतिशत से ज्यादा उछाल आया।
भारत ने मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) पर तेजी से काम शुरू किया
अमेरिका द्वारा लगाए गए हाई टैरिफ और वैश्विक व्यापार में बढ़ती अनिश्चितताओं के बीच भारत ने अपने निर्यात हितों की रक्षा और नए बाजारों तक पहुंच बढ़ाने के लिए मुक्त व्यापार समझौतों को तेजी से अंतिम रूप देने की रणनीति अपनाई है। भारतीय अधिकारियों के अनुसार, आने वाले कुछ महीनों में भारत कई अहम देशों के साथ एफटीए पर सहमति बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
भारत इस समय यूरोपीय संघ (EU), न्यूजीलैंड और चिली के साथ एडवांस स्तर की बातचीत कर रहा है। यानी समझौता कभी भी हो सकता है। इसी कड़ी में, इस सप्ताह भारत अपने नए एफटीए अभियान के तहत पहला समझौता ओमान के साथ करने जा रहा है। अधिकारियों ने बताया कि भारत-ओमान मुक्त व्यापार समझौते पर गुरुवार यानी आज हस्ताक्षर होंगे। पीएम मोदी एक दिन पहले ही ओमान दौरे पर पहुंचे थे। भारत और ओमान के बीच मुक्त व्यापार समझौते को हाल में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी थी। भारत-ओमान एफटीए का उद्देश्य दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देना और भारत के इंजीनियरिंग उत्पादों, वस्त्र, फार्मास्यूटिकल्स और कृषि उत्पादों के निर्यात को नई गति देना है।
भारत की आर्थिक रणनीति में एफटीए की अहम भूमिका
मुक्त व्यापार समझौते भारत की आर्थिक रणनीति का एक अहम स्तंभ बन चुके हैं। इनके जरिए भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में गहरी हिस्सेदारी, निर्यात में निरंतर वृद्धि और रोजगार सृजन को बढ़ावा देना चाहता है। टैरिफ में कटौती और स्थिर व्यापार नियमों के माध्यम से एफटीए भारतीय कंपनियों को प्रतिस्पर्धी बनाए रखने और नए अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुंचने में मदद करते हैं।
वैश्विक व्यापार पर टैरिफ विवादों और भू-राजनीतिक तनावों का असर लगातार बढ़ रहा है। ऐसे माहौल में भारत मानता है कि व्यापक एफटीए नेटवर्क न केवल बाहरी झटकों से बचाव करेगा, बल्कि उसके निर्यात लक्ष्यों को भी मजबूती देगा।
अमेरिकी टैरिफ से बढ़ी चुनौतियां
एफटीए वार्ताओं में यह तेजी ऐसे समय आई है जब भारतीय निर्यातकों पर अमेरिका द्वारा लगाए गए 50 प्रतिशत आयात शुल्क का दबाव है, जो अगस्त से लागू हो चुके हैं। हालांकि भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत चल रही है, लेकिन इन ऊंचे टैरिफ्स का असर वस्त्र, ऑटो कंपोनेंट्स, धातु और श्रम-प्रधान उद्योगों पर पड़ा है।
व्यापार विशेषज्ञ अजय श्रीवास्तव के अनुसार- भारत एफटीए को एक रणनीतिक औजार की तरह इस्तेमाल कर रहा है ताकि निर्यात बाजारों में विविधता लाई जा सके और अमेरिका के अनिश्चित तथा ऊंचे टैरिफ्स के असर को कम किया जा सके।
उन्होंने बताया कि फिलहाल भारत के पास 26 देशों के साथ 15 एफटीए हैं और 26 अन्य देशों के साथ छह प्राथमिकता व्यापार समझौते (PTA) मौजूद हैं। इसके अलावा, भारत 50 से अधिक देशों के साथ व्यापार वार्ताओं में शामिल है। मौजूदा बातचीत पूरी होने के बाद, चीन को छोड़कर लगभग सभी प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के साथ भारत के व्यापार समझौते होंगे।
हालिया समझौतों से बढ़ा भरोसा
हाल के वर्षों में भारत ने यूएई और ऑस्ट्रेलिया के साथ व्यापक आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते किए हैं, जिससे दोनों देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। मई में भारत और ब्रिटेन ने भी लंबे समय से लंबित एफटीए पर सहमति की घोषणा की थी, जिसके तहत स्कॉच व्हिस्की और इंग्लिश जिन पर भारत में शुल्क कम होगा, जबकि भारतीय खाद्य उत्पादों और मसालों को ब्रिटेन के बाजार में बेहतर पहुंच मिलेगी। अधिकारियों के अनुसार, इन समझौतों ने तेज और स्पष्ट व्यापार ढांचे की ज़रूरत को और मजबूत किया है।
सरकार का रुख और आगे की राह
व्यापार सचिव राजेश अग्रवाल ने कहा कि वैश्विक व्यापार में चुनौतियों के इस दौर में भारत कई एफटीए पर बातचीत कर रहा है। इनमें से कई पर सकारात्मक प्रगति दिखाई दे रही है और अगले वर्ष अच्छे नतीजे सामने आएंगे। हालांकि, चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। भारतीय वार्ताकारों को छोटे किसानों और घरेलू उद्योगों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी है, जबकि व्यापारिक साझेदार अधिक बाजार पहुंच की मांग कर रहे हैं।
भारत और अमेरिका के बीच इस साल के अंत तक द्विपक्षीय व्यापार समझौते के पहले चरण की उम्मीद थी, लेकिन रूस से रियायती कच्चे तेल की भारत की निरंतर खरीद के चलते दोनों देशों के संबंधों में कुछ तनाव आया। अमेरिका का कहना है कि यह खरीद यूक्रेन युद्ध में रूस की आर्थिक मदद करती है।
रिश्तों में नरमी के संकेत
हाल के हफ्तों में रिश्तों में नरमी के संकेत भी मिले हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की शांति योजना की सराहना की, और दोनों नेताओं के बीच व्यापार सहित कई मुद्दों पर फोन पर बातचीत भी हुई। इसी बीच, अमेरिकी उप व्यापार प्रतिनिधि रिक स्विट्जर के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने हाल ही में नई दिल्ली का दौरा किया और भारत-अमेरिका आर्थिक एवं तकनीकी साझेदारी तथा द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने के अवसरों पर चर्चा की।
न्यूजीलैंड के व्यापार और निवेश मंत्री टॉड मैक्ले ने भी भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल से मुलाकात कर एफटीए के प्रमुख पहलुओं पर बातचीत की। वहीं, यूरोपीय संघ के व्यापार और आर्थिक सुरक्षा आयुक्त मारोस सेफकोविक ने भी गोयल से मिलकर भारत-ईयू एफटीए की प्रगति की समीक्षा की और अटके मुद्दों को सुलझाने के तरीकों पर चर्चा की।
कई देश क्यों मिला रहे भारत से हाथ?
वैश्विक अनिश्चितता में भारत स्थिर और आकर्षक पार्टनर है। विकसित देश (UK, EU, EFTA) भारत के बड़े बाजार और सस्ते उत्पाद चाहते हैं। उभरते बाजार (ओमान, चिली) क्रिटिकल मिनरल्स और एनर्जी में सहयोग देखते हैं। यहां तक कि अमेरिका के साथ बातचीत जारी है- ट्रंप ने नवंबर में संकेत दिए कि टैरिफ कम हो सकते हैं, अगर ‘फेयर डील’ हुई। भारत की रणनीति साफ है- पुराने FTA (जैसे ASEAN, जापान, कोरिया) की समीक्षा और नए हाई-क्वालिटी समझौते होंगे। इससे MSME, महिलाओं और कारीगरों को फायदा, रोजगार बढ़ेगा। कुल मिलाकर, भारत वैश्विक व्यापार की बदलती परिस्थितियों के बीच एफटीए को एक मजबूत रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हुए अपने निर्यात और आर्थिक विकास को नई दिशा देने की कोशिश कर रहा है।
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