
नई दिल्ली । इजरायल (israeli)और अरब देशों के रिश्तों में दशकों बाद एक नई कूटनीतिक(New diplomat) करवट देखने को मिल रही है। अब्राहम समझौते(Abraham Accords) के जरिए संयुक्त अरब अमीरात (UAE), बहरीन, मोरक्को और सूडान जैसे अरब मुल्क पहले ही इज़रायल से संबंध सामान्य कर चुके हैं। अब संकेत हैं कि सऊदी अरब भी धीरे-धीरे उसी दिशा में बढ़ रहा है। इसकी पुष्टि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने की है। ट्रंप ने बयान में कहा कि सऊदी अरब जल्द ही अब्राहम समझौते का हिस्सा बनेगा, जो इजरायल और अरब देशों के बीच सामान्यीकरण समझौतों की नई कड़ी है, तब आप मुझे सम्मानित करोगे।
ट्रंप बोले- तब आप मुझे सम्मानित करेंगे
रॉयटर्स के मुताबिक, ट्रंप ने रियाद में एक निवेश मंच पर कहा, “यह मध्य पूर्व के लिए एक खास दिन होगा, जब सऊदी अरब हमारे साथ जुड़ जाएगा और आप मुझे और उन सभी लोगों को बहुत सम्मानित करेंगे जिन्होंने मध्य पूर्व के लिए इतनी कठिन लड़ाई लड़ी है।” उन्होंने कहा कि यह उनकी “दिल से इच्छा” है कि सऊदी अरब जल्द ही इजरायल के साथ अपना सामान्यीकरण समझौता साइन करे, हालांकि यह सऊदी अरब पर निर्भर है कि वह इसे कब और कैसे करता है। ट्रंप ने यह भी जोड़ा, “लेकिन आप इसे अपने समय पर करेंगे।”
अब्राहम समझौता क्या है?
अब्राहम समझौता एक शांति समझौता है, जिसका उद्देश्य इज़रायल और अरब देशों के बीच कूटनीतिक संबंध स्थापित करना है। 2020 में हस्ताक्षरित यह समझौता, दशकों से चली आ रही दुश्मनी को समाप्त कर व्यापार, सुरक्षा और नवाचार जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करता है। इस समझौते के तहत पहले संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने इज़रायल को मान्यता दी। इसके बाद सूडान और मोरक्को ने भी इस प्रक्रिया में कदम रखा। इस समझौते का नाम अब्राहम रखा गया है, जो यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम के साझा धर्मगुरु अब्राहम से प्रेरित है और इसका उद्देश्य इन तीन धर्मों के देशों के बीच संवाद और सहयोग बढ़ाना है।
सऊदी अरब की राह
जहां यूएई और बहरीन पहले ही व्यापारिक समझौतों, संयुक्त रक्षा परियोजनाओं और पर्यटन के क्षेत्र में इजरायल के साथ कदम बढ़ा चुके हैं, वहीं सऊदी अरब अब तक इस समझौते से दूर रहा है। हालांकि सऊदी अरब ने अब तक औपचारिक रूप से इज़रायल को मान्यता नहीं दी है, लेकिन अब्राहम समझौते के प्रति उसकी बढ़ती सहमति इसे कूटनीतिक संबंधों के लिए एक नया मार्ग बना सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि सऊदी अरब का इजरायल को मान्यता देना सिर्फ समय की बात है, खासकर जब ईरान के बढ़ते प्रभाव और आर्थिक साझेदारी पर जोर दिया जा रहा है।
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