
इंदौर। इंदौर के निजी स्कूलों में बच्चों के साथ किए जा रहे दुव्र्यवहार और रिकॉर्ड छिपाने के गंभीर मामले सामने आए हैं। सीएम हेल्पलाइन के अलावा कई शिकायतें जिला शिक्षा विभाग से लेकर कलेक्टर तक पहुंची हैं, जिसमें सामने आया कि निजी स्कूलों ने फीस नहीं भरने के कारण कई छात्रों का पूरा साल ही खराब कर दिया और उन्हें परीक्षा में नहीं बैठने दिया गया। इसके अलावा निजी स्कूलों ने 45 हजार छात्रों की एडमिशन की जानकारी भी सरकार को ऑनलाइन नहीं दी, ताकि बच्चों को मिलने वाली सुविधाओं और छात्रवृत्ति से वंचित रखा जा सके।
कलेक्टर शिवम वर्मा ने सीबीएसई, एमपी बोर्ड, आईसीएसई बोर्ड के कर्ताधर्ताओं की बैठक लेकर मिल रही शिकायतों के बाद यहां के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ निजी स्कूल एवं कॉलेज संचालकों को तलब किया गया। डीपीसी द्वारा पेश किए गए आंकड़ों में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि करीब 45,000 बच्चों को स्कूलों ने ‘ड्रॉप बॉक्स’ में डालकर रखा हुआ है, यानी इनके एडमिशन की जानकारी को ऑनलाइन रिपोर्टिंग सिस्टम में अपडेट नहीं किया गया। इससे यह साबित हुआ कि कई संस्थान छात्रों का सही डाटा छिपाते आ रहे हैं, जिसके कारण बच्चों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा और छात्रवृत्ति से भी वंचित रखा जा रहा है। राजस्थान, गुजरात या अन्य प्रदेश के बच्चों को प्रदेश में ट्रांसफर लेने पर 1950 व 1984 के नियम के अनुसार एसटी-एससी की स्कॉलरशिप का लाभ नहीं दिया जा सकता। उन्हें इस कैटेगरी में आवेदन न करें।
बच्चों के साथ दुव्र्यवहार और अनुशासनात्मक कार्रवाई की कठोरता
बैठक में जिला प्रशासन ने कई स्कूलों से पूछताछ करते हुए यह भी स्पष्ट किया कि कई जगहों पर बच्चों के साथ दुव्र्यवहार और अनुशासनात्मक कार्रवाई के नाम पर अत्यधिक कठोर व्यवहार के प्रमाण भी मिले हैं। फीस नहीं भरने वाले बच्चों को अलग कमरे में बैठाना, परीक्षा के दौरान भी उन्हें अलग जगह पर बिठाकर परीक्षा दिलवाना बच्चों के मानसिक विकास को रोकता है। कलेक्टर ने कड़े शब्दों में कहा कि बच्चों के अधिकारों का हनन किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और रिकॉर्ड छिपाने वालों पर सख्त कार्रवाई होगी।
फीस नहीं तो परीक्षा से रोका
बैठक के दौरान जिला शिक्षा अधिकारी और अन्य अधिकारियों ने बताया कि कई निजी स्कूल बच्चों के नाम, कक्षाओं और उपस्थिति के सही विवरण अपलोड नहीं कर रहे हैं। 10 ऐसे बच्चों की सूची थी, जिनका भविष्य फीस नहीं भरने के कारण अंधकारमय कर दिया गया। कलेक्टर ने कहा कि किसी भी बच्चे को फीस नहीं भरने पर परीक्षा से नहीं रोका जा सकता। वहीं स्कूलों की साइट पर छात्र प्रोफाइल के साथ स्कूल की प्रोफाइल भी अपडेट नहीं की जा रही है। इससे न केवल सरकारी योजनाओं का लाभ प्रभावित हो रहा है, बल्कि बच्चों की सुरक्षा और शैक्षणिक प्रगति पर भी गंभीर असर पड़ता है।
गरीबी रेखा एडमिशन के बच्चों के साथ दुव्र्यवहार
बैठक में मौजूद डीपीसी और अन्य अधिकारियों ने कुछ बड़े स्कूल प्रबंधन पर आरोप लगाए कि वे जानबूझकर आरटीई के तहत भर्ती किए गए बच्चों के साथ दुव्र्यवहार करते हैं और उन्हें स्कूल में अलग-अलग बिठाया जाता है। वहीं स्कूल की मुख्य गतिविधियों में भी शामिल नहीं किया जाता। खास बात यह रही कि किसी भी स्कूल संचालक ने इन आरोपों को सिरे से खारिज नहीं किया और न ही कोई प्रमाण प्रस्तुत कर पाया। इस पर कलेक्टर ने स्पष्ट निर्देश दिए कि सभी स्कूल 7 दिन के भीतर अपने रिकॉर्ड अपडेट करें। बच्चों के साथ इस तरह की गतिविधियां बंद की जाएं, नहीं तो कार्रवाई तय है। प्रशासक ने सभी संस्थानों को चेतावनी देते हुए कहा कि आने वाले दिनों में प्रत्येक स्कूल और कॉलेज का ऑडिट कराया जाएगा तथा गड़बड़ी सामने आने पर मान्यता रद्द करने तक की कार्रवाई की जा सकती है।
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