
शिमला (Shimla)। करीब 150 साल पुराने (150 years old) 60 रुपये के लेन-देन का विवाद (60 rupees transaction dispute) देवी कामाक्षा (Goddess Kamaksha) को साक्षी मानकर अब जाकर चौथी पीढ़ी (fourth generation) ने निपटाया। शिमला जिले के ठियोग के सांबर गांव में दो चचेरे भाइयों (two cousins) में पैसों के लेनदेन को लेकर झगड़ा हुआ था और दोनों के परिवारों ने कुलदेवी कामाक्षा के सामने ही सौगंध ली थी कि वे न तो एक फर्श पर एक साथ बैठेंगे और न एक-दूसरे के स्पर्श की चीजें खाएंगे। दोनों परिवारों ने 150 साल तक सौगंध का निर्वाह किया।
अब जाकर दोनों पक्षों की चौथी पीढ़ी ने मनमुटाव दूर कर देवी के खीण यज्ञ में देवी कामाक्षा को ही साक्षी मानकर ‘छुआ’ खत्म किया है। इसमें एक पक्ष के वशंज ने यह माना कि उनके पूर्वज ने 60 रुपये लिए थे, जो नहीं लौटाए थे। इसलिए उन्होंने चांदी के 60 सिक्के बनाकर देवी के सामने दूसरे पक्ष को लौटाए और सब विवाद खत्म हो गया। अब दोनों परिवारों में पुराने पारिवारिक संबंध कायम हो गए हैं। देव बंधन की वजह से यह ब्राह्मण परिवार भी एक-दूसरे की स्पर्श की वस्तुएं नहीं खाते थे और एक फर्श पर नहीं बैठते थे।
शिमला के ऊपरी क्षेत्र के गांवों के लोग परंपरा से देवी-देवताओं को साक्षी बनाकर जपे आखरों (अक्षर) को बहुत महत्व देते हैं। ऐसे आखर उनके लिए पत्थर की लकीर होते हैं। जो आखर जुबान से बोल दिया, उस पर अडिग रहना होता है। माता कामाक्षा का मंदिर यहां कलाहर गांव में है। विवाद निपटाने के लिए पहले यहां मसाणी (पितरों के गूर) के माध्यम से पुरखों से अनुमति ली गई। फिर देवी के गूर से भी अनुमति ली।
तसल्ली के लिए ये लोग माता कामाक्षा के मूल मंदिर करसोग के काओ भी गए। वहां से समाधान दिया गया कि यह समझौता हो सकता है। गांव धानो में कमाल के परपोते साधराम शर्मा के घर पर देवी का खीण यज्ञ हुआ। कमाल के वंशज साधराम ने बताया कि उनकी बिरादरी के लोगों ने एक मन से देवी को साक्षी बनाकर चांदी के 60 सिक्के मनसू के वंशजों को लौटाकर विवाद सुलझा दिया।
दो भाइयों मनसू और कमाल में हुआ था विवाद
कलाहर गांव के निवासी रमेश शर्मा ने बताया कि करीब 150 साल पहले दो भाइयों मनसू और कमाल में यह विवाद हुआ था। तब आज की तरह अदालतों में नहीं जाते थे। उस समय देवी-देवताओं के सामने ही न्याय के लिए जाते थे।
बुजुर्गों से गलतियां हुईं तो हमारा फर्ज है उन्हें सुधारें
साधराम शर्मा ने बताया कि बुजुर्गों से अगर गलतियां हुईं तो हमारा फर्ज है कि उन्हें सुधारें। इस मसले को सुलझाने में तीन वर्ष लग गए। दो चचेरे भाइयों ने देवी को साक्षी बनाकर ‘छुआ’ लगाया। यह देवताओं के पास बंधा हुआ बंधन था। इसका विधिवत तरीके से समाधान हो गया।
©2025 Agnibaan , All Rights Reserved