
नई दिल्ली। कांग्रेस के भीतर प्रियंका गांधी वाड्रा को जब पद दिया गया, तभी यह तय था कि उनका फोकस उत्तर प्रदेश पर रहेगा। हाल के दिनों में पार्टी की रणनीति, उसके तेवरों पर प्रियंका की झलक साफ दिखती है। विवादित कृषि बिलों के खिलाफ संसद से लेकर सड़क तक विरोध करना हो या हाथरस कांड में आगे बढ़कर राजनीतिक विरोध की कमान अपने हाथ में लेना, प्रियंका के नेतृत्व में कांग्रेस एक सोची-समझी रणनीति के तहत आगे बढ़ रही है। मकसद है उत्तर प्रदेश में हाशिए पर जाने से पहले जो तबके उसका वोटर बेस हुआ करते थे, उन्हें फिर से अपने पाले में लाना।
कांग्रेस के आक्रामक रुख को वाल्मीकि वोटों के ऐंगल से भी समझा जा सकता है। दलित वर्ग में आने वाली यह उपजाति बीजेपी के साथ रही है। फिलहाल सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ वाल्मीकि समाज के लोगों में उबाल है और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) कहीं पिक्चर में ही नहीं है। हाथरस जाने से रोके जाने पर प्रियंका शुक्रवार को दिल्ली के एक वाल्मीकि मंदिर पहुंच गईं। पार्टी के एक नेता ने कहा, “कोई पार्टी किसी सामाजिक वर्ग को तभी जीत पाती है जब वह उसके लिए लड़ती है। बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में जिस तरह सभी जातियों के बीच समर्थन पाया, उसके बाद पार्टियां उन समूहों को वापस पाने के लिए केवल कोशिश कर सकती हैं। हम आक्रामक ढंग से ऐसा कर रहे हैं।”
हालांकि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस जैसी पार्टी का भाग्य पलटेगा, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। लेकिन प्रियंका की अगुवाई में पार्टी उन जातियों और समुदायों पर फोकस कर रही है जिनसे पहले उसकी नजदीकी थी, मगर अभी उम्मीद नहीं देखती।
कांग्रेस के रणनीतिकारों की उम्मीद 2017 के चुनाव में बीजेपी की बंपर जीत के बाद बढ़ी है। इसकी वजह ये है कि समाजवादी पार्टी और बसपा जैसे स्थानीय दल भी निष्क्रिय नजर आने लगे हैं। पिछले साल कई मुद्दों पर सपा-बसपा की चुप्पी ने एक खालीपन पैदा किया है जिसे कांग्रेस भरना चाहती है। नतीजा, कांग्रेस ने पिछले छह महीनों में उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ खासे धरना-प्रदर्शन किए हैं। वह भी संगठन की कमजोरी और लोकप्रियता कम होने के बावजूद। कांग्रेस खुद को राज्य में मुख्य विपक्षी दल के रूप में प्रोजेक्ट करना चाहती है। कांग्रेस के एक सदस्य ने कहा, “एक बार प्रियंका लखनऊ में सेटल हो जाएं तो ऐसी गतिविधियां और बढ़ेंगी। हमें उम्मीद है कि हमारी अपील भी बढ़ेगी।”
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