
नई दिल्ली । रूस (Russia) ने अफगानिस्तान (Afghanistan) की तालिबान सरकार (Taliban Government) को मान्यता दे दी है। ऐसा करने वाला रूस दुनिया का पहला देश है। रूस की मीडिया ने गुरुवार को विदेश मंत्रालय (Ministry of External Affairs) के हवाले से अपनी रिपोर्ट कहा, “ हमारा मानना है कि अफगानिस्तान की इस्लामिक अमीरात सरकार को आधिकारिक मान्यता देने से विभिन्न क्षेत्रों में हमारे देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ाने में गति मिलेगी।” रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है रूस के बाद कई और देश भी अफगानिस्तान को की तालिबानी सरकार को मान्यता दे सकते हैं।
गौरतलब है कि तालिबान (एक इस्लामी आतंकवादी समूह) ने अमेरिका समर्थित सरकार को गिराने के बाद अगस्त 2021 में अमेरिकी और नाटो बलों की वापसी के उपरांत अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया था। इससे पहले 17 अप्रैल को रूस के उच्चतम न्यायालय ने देश में तालिबान की गतिविधियों पर प्रतिबंध को निलंबित करने के लिए महा अभियोजक की याचिका को मंजूरी दी थी। रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा कि आतंकवादी समूह के रूप में तालिबान की स्थिति को हटाने से रूस और अफगान के लोगों के हितों में काबुल के साथ एक व्यापक साझेदारी बनाने का रास्ता खुल गया है।
रूस ने जिस तालिबान को मान्यता दी है कभी उसका गठन ही रूस का विरोध करने के लिए किया गया था और अमेरिका ने तालिबान का सहयोग किया था। वहीं अब रूस सेंट्रल एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। उसका यह भी मानना है कि अगर अफगानिस्तान की सरकार अस्थिर रही तो आतंकवाद और ड्रग्स तस्करी रूस तक फैल सकता है। ऐसे में वह वहां की सरकार से सीधा बातचीत करना चाहता है।
कैसे दुनिया से जुड़ा है तालिबान
तालिबानी सरकार को रूस के अलावा किसी देश ने मान्यता नहीं दी है। वहीं यूएन में उसे ‘तालिबान डि फैक्टो अथॉरिटी’ के तौर पर जाना जाता है। हाल में कई देशों ने तालिबान के साथ राजनयिक संबंध बनाने का मन बनाया है। ये देश तालिबान की सरकार को मान्यता दे सकते हैं। इसमें भारत के दो पड़ोसियों और दुश्मन देश पाकिस्तान और चीन का भी नाम शामिल है।
ये देश दे सकते हैं तालिबानी सरकार को मान्यता
अफगानिस्तान से अमेरिका के बाहर निकलने से पहले ही चीन ने तालिबान से संपर्क साधना शुरू कर दिया था। 2019 में चीन ने तालिबान के साथ शांति वार्ता की थी। 2024 में बीजिंग ने तालिबानी प्रवक्ता बिलाल करीम को तालिबान का आधिकारिक राजदूत माना था। वहीं इस साल मई में चीन ने पाकिस्तान और तालिबान के विदेश मंत्रियों के साथ त्रिपक्षीय वार्ता भी की थी।
इस कड़ी में दूसरा नाम पाकिस्तान का है। हालांकि 2021 के बाद से पाकिस्तान और तालिबान के बीच संबंध खराब हो गए हैं। पाकिस्तान की धरती पर तहरीक ए तालिबान ऐक्टिव है। पाकिस्तान अफगानी शरणार्थियों को भी बाहर का रास्ता दिखा रहा है। इसके बाद भी वह अफगानिस्तान के साथ संबंध चाहता है। इसी साल अप्रैल में पाकिस्तान के उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार अफगानी नेताओं से काबुल में मिले थे।
अलजजीरा की रिपोर्ट की मानें तो भारत का भी नाम इस कड़ी में जुड़ सकता है। भारत ने 1996 में ही काबुल दूतावास को बंद कर दिया था। तालिबान की सत्ता खत्म होने के बाद भारत ने अफगानिस्तान के दूतावास को खोलने की फिर इजाजत दी थी। हालांकि इस साल जनवरी में भारत के विदेश मंत्रालय के सचिव विक्रम मिसरी ने दुबईमें तालिबानी नेता से मुलाकात की थी। वहीं विदेश मंत्री एस जयशंकार ने मुत्ताकी से फोन पर बात की थी। इसके अलावा ईरान भी आने वाले समय में तालिबान को मान्यता दे सकता है। 17 मई को मुत्ताकी ने तेहरान का दौरान किया था। उन्होंने विदेश मंत्री अरागची से मुलाकात भी की थी।
©2025 Agnibaan , All Rights Reserved