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सिंगूर विवाद के बाद टाटा चीफ से दो दशक में पहली बार मिलीं ममता बनर्जी, निवेश को लेकर हुई चर्चा…

July 10, 2025

कोलकाता। पश्चिम बंगाल (West Bengal) की मुख्यमंत्री ( Chief Minister) और तृणमूल कांग्रेस चीफ (Trinamool Congress Chief ) ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने दो दशक में पहली बार टाटा समूह के चेयरमैन (Tata Group Chairman) से मुलाकात की है। टाटा संस और टाटा मोटर्स के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन ने बुधवार को टाटा समूह के एक वरिष्ठ प्रतिनिधि के साथ राज्य सचिवालय नबन्ना में बनर्जी से मुलाकात की। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। इस बैठक में मुख्य सचिव मनोज पंत भी मौजूद थे। मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) के एक अधिकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री और टाटा चीफ के बीच बैठक में राज्य में निवेश के अवसरों पर चर्चा हुई।


इस मुलाकात की तस्वीरें सोशल मीडिया एक् पर पोस्ट करते हुए, तृणमूल कांग्रेस ने लिखा, “सुश्री ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के औद्योगिक विकास और उभरते अवसरों पर रचनात्मक बातचीत के लिए टाटा संस और टाटा समूह के अध्यक्ष नटराजन चंद्रशेखरन की मेज़बानी की।” पोस्ट में कहा गया है कि ये बैठक पष्चिम बंगाल में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) की दिशा में एक सार्थक कदम की ओर इशारा करती है, जो राज्य में नवाचार, निवेश और समावेशी विकास को बढ़ावा देने वाली है।

ममता बनर्जी ने दशकों तक किया था संघर्ष
बता दें कि पश्चिम बंगाल में सीपीएम शासन के दौरान ममता बनर्जी ने दशकों तक सड़क से लेकर विधानसभा तक संघर्ष किया था। उन्होंने हुगली जिले के सिंगूर में टाटा मोटर्स के लिए अधिग्रहित जमीन के खिलाफ बड़ा आंदोलन किया था। सिंगूर में टाटा मोटर्स ने अपनी महत्वाकांक्षी नैनो प्रोजेक्ट के लिए प्लांट लगाने का फैसला किया था लेकिन ममता के विरोध और आंदोलन की वजह से टाटा को आखिरकार यहां से अपने बोरिया बिस्तर समेटना पड़ा था। सिंगूर के बाद नंदीग्राम में भी बनर्जी ने उसी तरह का आंदोलन छेड़ा था। इन्हीं आंदोलनों की वजह से वह 2011 में बंगाल की सत्ता पर काबिज हो सकी थीं और 34 साल के सीपीएम शासन का अंत किया था।

2006 में सिंगूर में जनांदोलन
बता दें कि टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा ने 18 मई 2006 को बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और वाणिज्य मंत्री निरुपम सेन के साथ एक समझौते के तहत सिंगूर में नैनो कार परियोजना लगाने का एलान किया था। दिसंबर 2006 में ममता ने इस प्रोजेक्ट के लिए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आमरण अनशन शुरू कर दिया था। यह आंदोलन 2008 तक चला।

रतन टाटा ने नैनो प्रोजेक्ट सिंगूर से गुजरात कर दिया था स्थानांतरित
अक्टूबर 2008 में दुर्गा पूजा से ठीक दो दिन पहले तत्कालीन टाटा समूह और टाटा मोटर्स के अध्यक्ष रतन टाटा ने घोषणा की थी कि कंपनी अपने संयंत्र को गुजरात स्थानांतरित कर रही है, जहाँ उनके सपनों की किफायती लखटकिया कार, नैनो का उत्पादन होगा। उन्होंने इस कदम के लिए तृणमूल कांग्रेस प्रमुख को भी जिम्मेदार ठहराया था। हालांकि, तब ममता बनर्जी ने उस पर बहुत छोटी प्रतिक्रिया दी थी और कहा था, “सिंगूर से कंपनी स्थानांतरित करने के फ़ैसले के लिए मुझे दोषी ठहराना एक व्यक्ति की दुर्भाग्यपूर्ण टिप्पणी है।” अब लगभग दो दशक बाद, ऐसा लगता है कि टाटा समूह और ममता बनर्जी के बीच कथित दुश्मनी पूरी तरह से खत्म हो गई है।

पीपीपी मॉडल के सहारे वापसी की उम्मीद?
दरअसल, मां, माटी और मानुष का संघर्ष करने वालीं ममता अब टाटा के सहारे राज्य में पीपीपी मॉडल पर उद्योग और निवेश लाना चाहती हैं क्योंकि अगले साल राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनाव से पहली वह इसी तरह अन्य औद्योगिक घरानों के साथ पीपीपी मॉडल पर समझौते करना चाहती हैं, ताकि वह जन मानस को बता सकें कि वह राज्य के औद्योगिक और आर्थिक विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं और उसके सहारे वह 2026 का चुनाव जीत सकें।

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