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जंग के बाद अवैध प्रवासियों के खिलाफ ईरान की सख्ती, देश छोड़ने के आदेश

July 07, 2025

तेहरान। इज़रायल के साथ 12 दिनों तक चले भीषण युद्ध (Israel fierce War) और अमेरिका द्वारा परमाणु (Atom) ठिकानों को निशाना बनाए जाने के बाद ईरान (Iran) ने अपने देश के भीतर सख्ती शुरू कर दी है। इस क्रम में ईरान सरकार ने लाखों अफगान शरणार्थियों और प्रवासियों को देश छोड़ने का आदेश दिया है। तय समयसीमा 6 जुलाई को खत्म हो चुकी है, जिसके बाद देश में रहने वाले अवैध अफगानों को कभी भी गिरफ्तार कर निकाला जा सकता है।


अफगानों को बताया राष्ट्रीय सुरक्षा से खतरा
ईरान में इस समय करीब 40 लाख अफगान नागरिक रह रहे हैं, जिनमें से कई वर्षों से वहीं बसे हुए हैं। लेकिन अब सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए उन पर सख्त कार्रवाई शुरू कर दी है। ईरानी सरकार की प्रवक्ता फातेमेह मोहाजरानी ने कहा, “हम हमेशा अच्छे मेजबान बनने की कोशिश करते रहे हैं, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है। अवैध रूप से रहने वाले लोगों को वापस जाना ही होगा।”

अवैध प्रवासियों के खिलाफ ईरान की सख्ती
अल जज़ीरा की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका और इज़रायल के साथ हालिया तनाव के बीच ईरान ने “ऑपरेशन मिडनाइट हैमर” के बाद अवैध विदेशियों के खिलाफ कदम तेज कर दिए हैं। अकेले जून में ही 2.3 लाख से अधिक अफगानों ने देश छोड़ा, और अब तक 7 लाख से ज्यादा लोग ईरान से लौट चुके हैं।

संयुक्त राष्ट्र की इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन (IOM) और UNHCR ने ईरान की इस नीति पर चिंता जताई है। अफगान सीमा पर मानवीय संकट गहराने लगा है। UNHCR के अफगानिस्तान प्रमुख अराफात जमाल के अनुसार, “लोग बसों में आ रहे हैं, भूखे-प्यासे, थके हुए, उलझन में और डरे हुए। कभी-कभी एक साथ पांच बसें पहुंच जाती हैं और लोगों को बाहर उतारकर छोड़ दिया जाता है।”

हर दिन 30 हजार से अधिक अफगानों पर ऐक्शन

ईरान सरकार का कहना है कि यह कार्रवाई किसी एक समुदाय को लक्षित नहीं करती, बल्कि सभी अवैध प्रवासियों पर समान रूप से लागू है। लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि हर दिन 30,000 से ज्यादा अफगान नागरिकों को जबरन वापस भेजा जा रहा है, जबकि पहले यह संख्या प्रतिदिन औसतन 2,000 थी।

गौरतलब है कि 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद बड़ी संख्या में अफगान नागरिक युद्ध, गरीबी और कट्टरपंथी शासन से बचने के लिए ईरान की ओर भागे थे। लेकिन अब उन्हीं लाखों अफगानों को एक बार फिर अनिश्चित भविष्य की ओर धकेला जा रहा है। मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि इस तरह का बड़ा विस्थापन न केवल अफगानिस्तान को अस्थिर करेगा, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए मानवीय संकट का कारण बन सकता है।

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