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AIIMS को भारत बायोटेक की ‘कोवैक्सीन’ के थर्ड फेज ट्रायल के लिए नहीं मिल रहे Volunteers, जानिए क्यों

December 18, 2020

नई दिल्ली । भारत बायोटेक के कोविड-19 (Covid-19) टीके के तीसरे चरण के ट्रायल लिए यहां स्थित ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) को पर्याप्त संख्या में वॉलंटियर (Volunteers) नहीं मिल रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि लोग यह सोच कर नहीं आ रहे हैं कि जब सबके लिए टीका जल्दी ही उपलब्ध हो जाएगा तो ट्रायल में भाग लेने की क्या जरूरत है।

‘कोवैक्सिन’ (Covaxin) के अंतिम चरण के ट्रायल के लिए जो संस्थान तय किए गए हैं, उनमें एम्स भी है। ट्रायल के लिए संस्थान को करीब 1,500 लोग चाहिए। कोवैक्सिन का निर्माण भारत बायोटेक और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की तरफ से संयुक्त रूप से किया जा रहा है।

एम्स में सामुदायिक चिकित्सा विभाग में प्रफेसर डॉक्टर संजय राय ने कहा, ‘हमें 1500 से 2000 के करीब लोग चाहिए थे लेकिन अभी तक केवल 200 लोग आए हैं। लोग इस प्रक्रिया में यह सोचकर भाग नहीं ले रहे हैं कि जब टीका सबको मिलने वाला है तो ट्रायल में भाग लेने की क्या जरूरत है।’

अभी इस वैक्सीन का दूसरे और तीसरे चरण का ट्रायल जारी है। ट्रायल के दौरान तंदरुस्त व्यस्क पर भी इसका ट्रायल किया गया है। ट्रायल का डेटा का कोविशील्ड वैक्सीन की सेफ्टी और ऑक्सफर्ड वैक्सीन के साथ किया जाएगा। बता दें कि कोविशील्ड वैक्सीन का ट्रायल 29 जुलाई 2020 को शुरू हुआ था और इसमें 1,600 लोगों ने हिस्सा लिया ता। 7 महीने में इसका ट्रायल पूरा होने की उम्मीद।

भारत बायोटेक की वैक्सीन का तीसरे चरण का ट्रायल चल रहा है। इस चरण में वैक्सीन कितना असरदार है, इसका परीक्षण किया जा रहा है। 11 नवंबर 2020 को इसके लिए पहला इनरोलमेंट (Enrollment) हुआ था। 1 साल के भीतर ट्रायल पूरी होने की उम्मीद। कुल 25,800 लोग ट्रायल में ले रहे हैं भाग।

Zydus Cadila वैक्सीन का पहले और दूसरे चरण का ट्रायल जारी है। पहले चरण में वैक्सीन की सेफ्टी की जांच की जा रही है। दूसरे चरण में इस वैक्सीन की इम्युनिटी की परीक्षा होगी। 13 जुलाई 2020 को इस वैक्सीन के लिए पहला इनरोलमेंट हुआ था। एक साल के भीतर इसका ट्रायल हो सकता है पूरा। 1,048 लोगों ने इस ट्रायल में लिया है हिस्सा।

रूस की Sputnik V वैक्सीन का भारत में दूसरे और तीसरे चरण का ट्रायल जारी है। दूसरे चरण में इस वैक्सीन के प्रतिकूल प्रभाव का अध्ययन किया जा रहा है। तीसरे चरण में इसके असर का आकलन होगा। इस वैक्सीन के ट्रायल के लिए 1 दिसंबर को इनरोलमेंट हुआ था। 7 महीने के भीतर ट्रायल पूरा होने की उम्मीद। 1,600 लोग ले रहे हैं ट्रायल में हिस्सा।

बायोलॉजिकल ई नोवेल वैक्सीन का पहले और दूसरे दौर का ट्रायल चल रहा है। 16 नवंबर को इसके लिए इनरोलमेंट हुआ था। कुल 360 लोग इस वैक्सीन के ट्रायल में हिस्सा ले रहे हैं। एक साल में ट्रायल पूरा होने की उम्मीद।

उन्होंने कहा कि जब स्वेच्छा से आने वाले लोगों को प्रकिया के बारे में बताया जाता है तब वे इसमें भाग लेने से मना कर देते हैं। डॉक्टर राय ने कहा, ‘क्लिनिकल ट्रायल की प्रक्रिया के बारे में जानने के बाद लोग भाग लेने से यह कहकर मना कर देते हैं कि जब टीका जल्दी ही मिलने वाला है तो इसमें भाग क्यों लिया जाए।’

प्रायोगिक परीक्षण के सभी चरण को पूरा नहीं करने के लिए रूस को आलोचना का भी सामना करना पड़ा है। देश और विदेश के विशेषज्ञों ने टीका के मूल्यांकन का काम पूरा होने तक इसके व्यापक इस्तेमाल करने के खिलाफ आगाह भी किया। वहीं, प्रशासन ने सुझावों की उपेक्षा करते हुए अग्रिम मोर्च पर काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों समेत जोखिम वाले समूहों को टीका देने की शुरुआत कर दी। टीका विकसित करने वाले गमालेया इंस्टिट्यूट के प्रमुख अलेक्जेंडर गिंट्सबर्ग ने पिछले सप्ताह कहा था कि रूस के डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों को टीके की खुराक दी जा चुकी है।

मॉस्को से करीब 500 किलोमीटर दूर वोरोनेझ में आईसीयू विशेषज्ञ अलेक्जेंडर जस्टसेपीन ने भी टीके की खुराक ली। उन्होंने कहा कि टीका लेने के बावजूद वह एहतियात बरत रहे हैं क्योंकि इसके असर के बारे में अध्ययन अब तक पूरा नहीं हुआ है। ब्रिटेन ने 2 दिसंबर को फाइजर के टीके को मंजूरी दे दी थी। इसके बाद टीका निर्माण को लेकर होड़ में पीछे छूटने की आशंका के चलते रूस ने भी बड़े स्तर पर टीकाकरण की शुरुआत कर दी।

रूस ने अपने देश में विकसित टीके को महज कुछ दर्जन लोगों पर क्लिनिकल परीक्षण के बाद ही उसे इस्तेमाल करने की मंजूरी दे दी। टीका निर्माताओं ने इसे ‘Sputnik-V’ नाम दिया। इस तरह इसका संदर्भ शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ द्वारा 1957 में छोड़े गए पहले उपग्रह के साथ जोड़ा गया। ब्रिटेन में टीके की खुराक सबसे पहले बुजुर्गों को दी जा रही है जबकि ‘Sputnik-V’ की खुराक 18 साल से 60 के उम्र के लोगों को दी जा रही है।

टीका निर्माताओं ने कहा है अध्ययन से पता चला है कि स्पूतनिक टीका 91 प्रतिशत कारगर रहा। करीब 23,000 प्रतिभागियों पर किए गए अध्ययन से यह नतीजा निकाला गया जबकि, पश्चिमी देशों ने परीक्षण में ज्यादा लोगों, अलग अलग पृष्ठभूमि, उम्र के लोगों को शामिल किया। रूस में सर्वेक्षण कराने वाले एक स्वतंत्र संगठन लेवादा सेंटर ने अक्टूबर में रायशुमारी करायी थी, जिसमें 59 फीसदी लोगों ने कहा था कि वे टीका की पेशकश करने के बावजूद इसे नहीं लेना चाहेंगे। कुछ स्वास्थ्यकर्मियों और शिक्षकों से बातचीत करने पर चलता चला कि सही तरह से परीक्षण नहीं किए जाने के कारण वे टीका नहीं लेना चाहते हैं।

डॉक्टर राय ने कहा कि जब पहले चरण का ट्रायल शुरू होने वाला था तब उन्हें 10 प्रतिभागियों की जरूरत थी लेकिन 4,500 आवेदन मिले थे। दूसरे चरण के ट्रायल के समय भी अस्पताल को चार हजार आवेदन मिले थे। डॉ राय ने कहा कि लोगों को ट्रायल में भाग लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि वह टीके के ट्रायल में भाग लेने की जरूरत के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए विज्ञापन, ईमेल और फोन कॉल का सहारा लेने की योजना बना रहे हैं।

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