
जबलपुर । ऐसा कहा जाता है कि जहां चाह होती है, वहां राह होती है. अब इस बात को सच साबित कर दिखाया है जबलपुर (Jabalpur) के एक किसान (Farmer) ने. दरअसल जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के रिटायर्ड साइंटिस्ट और अब खेती-किसानी कर रहे एके नायडू ने जबलपुर में स्ट्रॉबेरी (Strawberry) उगा दी है. गौर करने वाली बात ये है कि स्ट्रॉबेरी ठंडे और पहाड़ी इलाकों में ही उगती है लेकिन एके नायडू ने जबलपुर में स्ट्रॉबेरी की खेती करने का कारनामा कर दिखाया है.
कमा चुके हैं अच्छा मुनाफा
बता दें कि एके नायडू ने जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय से रिटायर होने के बाद आधुनिक और ऑर्गेनिक खेती की तरफ अपने कदम बढ़ाए और जबलपुर के पनागर में अपने 30 एकड़ के फार्म में खेती शुरू कर दी. एके नायडू ने नवाचार करते हुए जबलपुर में स्ट्रॉबेरी की खेती करने का फैसला किया और इसके लिए अपने ज्ञान और तकनीक का भरपूर सहारा लिया. अब एके नायडू की मेहनत रंग लाई है और वह अब तक 600 किलो स्ट्रॉबेरी बेच चुके हैं. एक किलो स्ट्रॉबेरी की कीमत करीब 200-300 रुपए किलो है.
ऐसे आया आइडिया
एके नायडू ने बताया कि जबलपुर में कैंट एरिया होने के चलते यहां सैन्य अधिकारी आते रहते हैं. किसी सैन्य अधिकारी के घर पर गमले में उन्होंने स्ट्रॉबेरी देखी और उनसे स्ट्रॉबेरी का पौधे ले लिए थे. इन्हीं पौधों से एके नायडू ने स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की. हालांकि स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए 15-20 डिग्री का तापमान अनुकूल माना जाता है लेकिन एके नायडू ने सिंचाई की टपक विधि के जरिए स्ट्रॉबेरी के लिए प्रतिकूल जलवायु में भी इसकी खेती शुरू कर दी.
नायडू ने सूखे पत्ते, गोबर की खाद, मुर्गी की खाद, काली मिट्टी, कापू मिट्टी को मिलाकर जैविक खाद का इस्तेमाल किया. एके नायडू बताते हैं कि स्ट्रॉबेरी के पौधों की खास बाते ये होती है कि इसके पौधे एक दूसरे से तने से आपस में जुड़े होते हैं. इसका एक पौधा 3 साल तक फल देता है. उनका कहना है कि जलवायु परिवर्तन और मौसम पर निर्भरता के चलते खेती मुश्किल होती जा रही है लेकिन अगर किसान आधुनिक खेती से जुड़ें तो लाभ कमा सकते हैं.
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