
नई दिल्ली: भारत और रूस की दोस्ती के बीच एक बार फिर अमेरिका ने अपनी टांग अड़ा दी है. इसका असर भारत की रूस से तेल खरीद पर पड़ रहा है. इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL) के चेयरमैन एएस साहनी ने कहा कि हाल ही में बाइडेन प्रशासन द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण निकट भविष्य में कंपनी के कुल आयात में रूसी कच्चे तेल की हिस्सेदारी घट सकती है.
रिफाइनर रूस से तेल उठाने के मामले में सावधानीपूर्वक दृष्टिकोण अपना रहे हैं और 10 जनवरी के प्रतिबंधों के बाद से देश से कोई नया स्पॉट कॉन्ट्रैक्ट फाइनल नहीं किया है. वर्तमान में भारतीय ऑयल के कुल तेल आयात में रूसी तेल का हिस्सा 25-30 प्रतिशत है. साहनी ने कहा कि कई (रूसी) संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाए गए हैं. लिहाजा सभी के लिए उपलब्धता में कुछ कमी होगी, न केवल भारत या चीन के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए. रूस से कुल निर्यात कम हो सकता है. इस तरह से हम भी थोड़े प्रभावित होंगे.
साहनी ने बताया कि भारतीय ऑयल स्पॉट मार्केट में स्वच्छ रूसी कच्चे तेल की तलाश कर रहा है, जिसका मतलब है कि पूरी शृंखला, जिसमें आपूर्तिकर्ता, बीमा और टैंकर शामिल हैं, प्रतिबंधों के तहत नहीं होनी चाहिए. 10 जनवरी को पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रूसी तेल उत्पादकों गजप्रोम नेफ्ट और सर्गुतनेफ्टेगाज़ पर, साथ ही लगभग 180 टैंकरों पर जो रूसी तेल का परिवहन कर रहे थे, उस पर भी प्रतिबंध लगा दिए. इससे यूक्रेन में युद्ध को वित्तपोषित करने के लिए मास्को की आय को कम किया जा सके. नए प्रतिबंधों का उद्देश्य रूस के छाया बेड़े को भी बाधित करना है.
प्रतिबंधों के कारण भारत में रूसी तेल की हिस्सेदारी में गिरावट की आशंका दिख रही है. 2022 में यूक्रेन और मॉस्को के बीच युद्ध शुरू होने के बाद से रूस भारत का सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया है. युद्ध से पहले, मॉस्को भारत के कुल तेल आयात का लगभग 0.2 प्रतिशत हिस्सा था, जो 2023 और 2024 में 40 प्रतिशत तक पहुंच गया और वर्तमान में लगभग 30 प्रतिशत है. फिलहाल भारत कई उत्पादकों से कच्चा तेल प्राप्त करता है, जिससे रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों का प्रभाव कम होता है. तेल आपूर्ति को सुरक्षित करने के लिए, भारत ने अपने कच्चे तेल के स्रोतों में विविधता लाई है. अब हम 39 देशों से तेल खरीद रहे, पहले यह संख्या 29 थी.
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