
काठमांडु। काठमांडू (Kathmandu) की अव्यवस्थित गलियों और भीड़भाड़ के ऊपर, बौद्धनाथ स्तूप का सफेद गुंबद एक मूक प्रहरी की तरह खड़ा है। इसके शिखर पर सुनहरा कलश और चारों दिशाओं में बनी बुद्ध की शांत, चौकस आंखें- जो मानो नीचे घट रही हर हलचल को देख रही हों। दशकों तक ये आंखें तिब्बती शरणार्थियों (Tibetan refugees) के लिए सुरक्षा और आश्रय का प्रतीक रहीं जो अपनी मातृभूमि में चीनी दमन से भागकर आए थे। लेकिन आज, तिब्बती शरणार्थियों पर कहीं अधिक दुर्भावनापूर्ण आंखें नजर रख रही हैं: हजारों चीनी सीसीटीवी कैमरे (Chinese CCTV cameras) यहां सड़कों के कोनों और छतों पर लगे हैं और नीचे हर हरकत पर नजर रखते हैं। इस गहन निगरानी ने एक समय विश्वव्यापी गूंज पैदा करने वाले ‘फ्री तिब्बत’ आंदोलन को दबा दिया है।
नेपाल अब उन कम से कम 150 देशों में शामिल है, जहां चीनी कंपनियां निगरानी तकनीक निर्यात कर रही हैं। वियतनाम में कैमरे, पाकिस्तान में सेंसरशिप फायरवॉल, केन्या में शहर-स्तरीय मॉनिटरिंग सिस्टम चीन का ही है। एल्गोरिदम और डेटा के सहारे यह तकनीक कम संसाधनों वाली सरकारों के लिए ‘किफायती पुलिसिंग’ बन गई है- लेकिन इसकी कीमत नागरिकों की आजादी से चुकानी पड़ रही है।
अमेरिकी तकनीक, चीनी निगरानी
इस डिजिटल अधिनायकवाद का सबसे बड़ा विडंबनापूर्ण पहलू यह है कि चीन जिन निगरानी औजारों का निर्यात कर रहा है, उनमें से कई की जड़ें अमेरिका में विकसित तकनीक से जुड़ी हैं। दशकों तक सिलिकॉन वैली की कंपनियां चीन की शर्तों के आगे झुकती रहीं। चीन की शर्त थी- हमें अपनी तकनीक दो और हम तुम्हें अपने बाजार तक पहुंच देंगे।
आज भी कड़वाहट के बावजूद ये रिश्ते पूरी तरह टूटे नहीं हैं। उदाहरण के लिए, अमेजन वेब सर्विसेज (एडब्ल्यूएस) चीनी तकनीकी दिग्गजों जैसे हिकविजन और दाहुआ को क्लाउड सेवाएं प्रदान करता है, जो उनके विदेशी विस्तार में मदद करती हैं। दोनों कंपनियां राष्ट्रीय सुरक्षा और मानवाधिकार चिंताओं के कारण अमेरिकी वाणिज्य विभाग की एंटिटी लिस्ट में हैं। इसका मतलब है कि उनके साथ लेनदेन अवैध नहीं लेकिन सख्त प्रतिबंधों के अधीन हैं।
एडब्ल्यूएस ने एपी को बताया कि वह नैतिक आचार संहिता का पालन करता है, अमेरिकी कानूनों का अनुपालन करता है और खुद निगरानी इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं प्रदान करता। दाहुआ ने कहा कि वे अपने उत्पादों के दुरुपयोग को रोकने के लिए उचित जांच करते हैं। हिकविजन ने भी यही कहा और कंपनी के दमन में शामिल होने या सहयोग करने के किसी भी सुझाव को स्पष्ट रूप से खारिज किया। चीनी तकनीकी फर्में अब दूरसंचार, निगरानी और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर का पूरा सूट प्रदान करती हैं, जिसमें बेचने वाले या उपयोग पर कम प्रतिबंध हैं। चीन खुद को कम अपराध दरों वाला वैश्विक सुरक्षा मॉडल पेश करता है, जो अमेरिका के रिकॉर्ड से विपरीत है।
नेपाल में सिमटता तिब्बती जीवन
एपी की जांच हजारों नेपाली सरकारी खरीद दस्तावेजों, कॉर्पोरेट मार्केटिंग सामग्री, लीक हुए सरकारी और कॉर्पोरेट दस्तावेजों तथा 40 से अधिक लोगों के साक्षात्कारों पर आधारित है, जिनमें तिब्बती शरणार्थी और नेपाली, अमेरिकी तथा चीनी इंजीनियर, कार्यकारी, विशेषज्ञ और अधिकारी शामिल हैं। एक समय नेपाल में हर साल हजारों तिब्बती शरण लेते थे। आज यह संख्या सिंगल डिजिट में सिमट गई है। तिब्बती निर्वासित सरकार के अनुसार, सख्त सीमा नियंत्रण, चीन-नेपाल के बढ़ते संबंध और अभूतपूर्व निगरानी इसकी प्रमुख वजहें हैं। 2021 की एक आंतरिक नेपाली सरकारी रिपोर्ट में दावा किया गया कि चीन ने नेपाल के भीतर और सीमा-बफर जोन में भी निगरानी प्रणालियां खड़ी कीं, जहां निर्माण प्रतिबंधित है। चीन ने इन आरोपों को मनगढ़ंत बताया।
काठमांडू में लगभग सभी पुलिस कैमरों की फीड एक चार-मंजिला इमारत में जाती है। यह इमारत चीनी दूतावास से कुछ ही ब्लॉक दूर है। ठंडी हवा फेंकते पंखों के बीच नीली वर्दी में बैठे अधिकारी, रात-दिन स्क्रीन पर झिलमिलाते दृश्यों को खंगालते हैं। नीचे लगे एक बोर्ड पर अंग्रेजी और चीनी में लिखा है: चीन के सार्वजनिक सुरक्षा मंत्रालय की ओर से शुभकामनाओं सहित।
‘वे हमें पहले ही पकड़ लेते हैं’
49 वर्षीय सोनम ताशी कभी प्रदर्शनों में आगे रहते थे लेकिन आज बस अपने 10 साल के बेटे को सुरक्षित बाहर निकालना चाहते हैं। बच्चा नेपाल में जन्मा है, पर न शरणार्थी कार्ड है, न नागरिकता। ताशी बताते हैं कि 10 मार्च (1959 के तिब्बती विद्रोह की बरसी) या दलाई लामा के जन्मदिन जैसे दिनों से पहले संभावित प्रदर्शनकारियों को उठा लिया जाता है। 2018 में नेपाल ने ‘प्रिडिक्टिव पुलिसिंग’ की पुष्टि की थी जहां लोगों की गतिविधियों के पैटर्न से पहले ही गिरफ्तारी हो जाती है। कैमरे हर जगह हैं। यहां कोई भविष्य नहीं।
‘उन्होंने पैसे नहीं, पूरा हार्डवेयर दिया’
2013 में नेपाल पुलिस को चीन से डिजिटल ट्रंकिंग रेडियो सिस्टम मिला- पूरी तरह उपहार था। लागत लगभग 5.5 मिलियन डॉलर। यह तकनीक सस्ती थी, उन्नत थी और सीमा क्षेत्रों तक कवरेज चाहती थी। नेपाल ने हामी भर दी। इसके बाद चीनी पुलिस दूत नियमित रूप से मुख्यालय आने लगे- ब्रोशर, प्रशिक्षण, उपकरण सब उनका था। नेपाल के सैकड़ों पुलिसकर्मी चीन में प्रशिक्षण लेने गए।
‘सेफ सिटी’ से सर्विलांस सिटी
2016 में काठमांडू की ‘सेफ सिटी’ परियोजना शुरू हुई- पहले सड़कें, फिर पर्यटन स्थल, धार्मिक परिसर, संसद और प्रधानमंत्री आवास। कैमरे केवल रिकॉर्ड नहीं करते- वे चेहरे पहचानते हैं, भीड़ में एक चेहरे को ट्रैक करते हैं, और पैटर्न सहेजते हैं। आज नेपाल में अधिकांश कैमरे चीनी कंपनियों के हैं- Hikvision, Dahua और Uniview। कई सिस्टम AI और फेसियल रिकग्निशन से लैस हैं।
सीमा पर ‘ग्रेट वॉल ऑफ स्टील’
नेपाल-चीन सीमा पर 1,389 किमी लंबा सेंसर, ड्रोन और निगरानी ढांचा खड़ा है। मस्तांग के लो मान्थांग से दिखता चीनी ऑब्जर्वेशन डोम कई किलोमीटर दूर से एक स्थायी भय का प्रतीक बन गया है। 2024 में रापके लामा को वीचैट बातचीत के बाद सीमा पार करते ही गिरफ्तार कर लिया गया। महीनों जेल, फोन जब्त, दलाई लामा की तस्वीरें डिलीट, अब भी डर के साये में जिंदगी जी रहे हैं।
ऑपरेटर राजधानी में मोटरबाइक ट्रैक कर सकते हैं
उनकी पहुंच विशाल है। ऑपरेटर राजधानी में मोटरबाइक ट्रैक कर सकते हैं, प्रदर्शन बनते देख सकते हैं या अलर्ट सीधे पेट्रोल रेडियो पर भेज सकते हैं। कई कैमरे नाइट विजन, फेशियल रिकग्निशन और एआई ट्रैकिंग से लैस हैं – त्योहार की भीड़ से एक चेहरा चुन सकते हैं या किसी व्यक्ति को घर के अंदर गायब होने तक फॉलो कर सकते हैं। सिस्टम न सिर्फ देखता है बल्कि याद करना सीख रहा है, गतिविधियों के पैटर्न स्टोर कर रहा है, निगरानी के नीचे जिए जा रहे जीवन का रिकॉर्ड बना रहा है।
शहर के एक 34 वर्षीय तिब्बती कैफे मालिक ने शहर के बदलाव को खामोश डर से देखा। वे कहते हैं- अब आप सिर्फ निजी में तिब्बती हो सकते हैं। पब्लिक में नहीं। उन्होंने और अन्य तिब्बतियों ने प्रतिशोध के डर से गुमनाम रहकर एपी से बात की। बौद्धनाथ में पहले कैमरे 2012 में लगाए गए, आधिकारिक तौर पर अपराध रोकने के लिए। लेकिन 2013 में एक तिब्बती भिक्षु ने स्तूप के सामने खुद को पेट्रोल डालकर आग लगा ली, तो पुलिस ने उसके आसपास 35 नाइट विजन कैमरे जोड़े।
काठमांडू में चीनी दूतावास ने पुलिस के साथ निकट सहयोग किया। कनाडा की साइमन फ्रेजर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रूपक श्रेष्ठ ने कहा कि पुलिस को नए कैमरों का उपयोग करने, फ्री तिब्बत आंदोलन से जुड़े संभावित प्रतीकों की पहचान करने और असंतोष की आशंका करने की विशेष ट्रेनिंग दी गई। 2013 में नेपाल पुलिस के एक दल ने उत्तरी सीमा पार कर तिब्बत में झांगमू गए: चीनी अधिकारियों से पुलिस रेडियो लेने। एक ट्रक उपकरणों से लदा और कुछ हैंडशेक के बाद वे काठमांडू लौट आए।
चीन तिब्बत से लगी सीमा के पास कवरेज चाहता था
उन्होंने कहा कि नेपाल ने शुरू में अमेरिका से तकनीक खरीदने पर विचार किया और सिर्फ दो बड़े शहरों में कैमरे तैनात करना चाहता था। लेकिन चीन तिब्बत से लगी सीमा के पास कवरेज चाहता था। नेपाल मान गया। उन्होंने तकनीक सिंधुपाल्चोक- चीन के लिए प्रमुख सड़क वाले सीमा जिले में तिब्बती शरणार्थियों द्वारा इस्तेमाल होने वाले इलाके में लगाई। एक व्यक्ति ने कहा कि भले ही हम स्वतंत्र हैं, लेकिन निगरानी कैमरे मतलब हम एक बड़े जेल में जी रहे हैं।
शुरू से अमेरिकी कंपनियां चीन के विशाल बाजार के लालच में तकनीक के बदले प्रवेश देती रहीं। कई को चीन में जॉइंट वेंचर और रिसर्च ऑपरेशन शुरू करने की शर्त थी। दर्जनों ने बात मानी, मूल्यवान नॉलेज और विशेषज्ञता ट्रांसफर की। संवेदनशील क्षेत्रों जैसे एन्क्रिप्शन या पुलिसिंग में भी काम हुआ। धीरे-धीरे चीनी कंपनियों ने प्रतिभा लुभाकर, रिसर्च प्राप्त कर और कभी-कभी हार्डवेयर-सॉफ्टवेयर कॉपी कर अमेरिकी तकनीकी कंपनियों की बढ़त छीनी। तकनीक का प्रवाह जारी रहा, जबकि अमेरिकी अधिकारी खुले तौर पर चीन पर आर्थिक जासूसी और अमेरिकी कंपनियों से तकनीक के लिए दबाव बनाने के आरोप लगाते रहे।
इनोवेशन पर फोकस थिंक टैंक के तत्कालीन अध्यक्ष रॉबर्ट डी. एटकिंसन ने 2012 की कांग्रेस सुनवाई में चेताया- चीन जबरन तकनीक ट्रांसफर में सबसे बड़ा अपराधी है। अमेरिकी तकनीकी प्रतिरोध का अंत 2012 में एडवर्ड स्नोडेन के खुलासों से हुआ कि अमेरिकी खुफिया अमेरिकी तकनीक से बीजिंग पर जासूसी कर रहा था। डरकर चीनी सरकार ने पश्चिमी फर्मों को कहा कि तकनीक सौंपो और सुरक्षा गारंटी दो वरना बाहर जाओ। एचपी और आईबीएम जैसी कंपनियों के मानने के बाद उनके पूर्व पार्टनर उनके सबसे बड़े वैश्विक प्रतिद्वंद्वी बने और अमेरिकी फर्मों के विपरीत उन्हें तकनीक उपयोग पर सवाल नहीं उठाने पड़े। हुआवेई, हिकविजन और दाहुआ अब वैश्विक दिग्गज हैं जो दुनिया भर निगरानी सिस्टम बेचते हैं।
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