काठमांडू। भारत (Bharat) के पड़ोसी देशों श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल (Sri Lanka, Bangladesh – Nepal) से होता हुआ अब Gen-Z का विद्रोह दक्षिण-पूर्वी एशिया के छोटे से देश तक जा पहुंचा है। यह देश है पूर्वी तिमोर, जहां युवाओं के प्रदर्शन के आगे वहां की संसद और सांसद ने घुटने टेक दिए हैं। सांसदों ने युवाओं के गुस्से और प्रदर्शन को देखते हुए संसद में उस कानून के खिलाफ मतदान किया है, जो पूर्व राष्ट्रपतियों, पूर्व प्रधानमंत्रियों-मंत्रियों और सांसदों के आजीवन पेंशन का हकदार बनाता था। अब सांसदों ने Gen-Z के विरोध प्रदर्शन के सामने नतमस्तक हो उस कानून को संसद में प्रस्ताव पारित कर रद्द कर दिया है।
पूर्वी तिमोर एक गरीब देश है लेकिन पूर्व राष्ट्रपतियों, पूर्व प्रधानमंत्रियों-मंत्रियों और पूर्व सांसदों को भारी भरकम राशि आजीवन पेंशन और भत्ते के रूप में दी जा रही थी। युवाओं ने इसका विरोध किया था। इतना ही नहीं सरकारी अधिकारियों को मिलने वाले भारी भरकम भत्तों पर भी कैंची चलाई गई है। युवाओं का तात्कालिक विरोध इस बात पर था कि मौजूदा सांसदों की गाड़ियों के लिए 42 लाख डॉलर की राशि खर्च की गई थी।
इसके बाद छात्रों के एक वर्ग ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे यह विरोध पूर्व राष्ट्रपतियों, पूर्व प्रधानमंत्रियों-मंत्रियों और पूर्व सांसदों को मिलने वाले आजीवन पेंशन तक जा पहुंचा, जिसके लिए हर साल लाखों डॉलर सरकार को खर्च करने पड़ रहे थे। पूर्व संसद सदस्यों और सरकारी अफसरों को आजीवन पेंशन देने का नियम 2006 में बनाया गया था। इस नियम के अनुसार उन्हें अंतिम वेतन के बराबर आजीवन पेंशन देने की व्यवस्था थी जो अब युवाओं के विरोध-प्रदर्शन के बाद रद्द कर दिया गया है।
65 में से 62 सांसदों ने किया पक्ष में मतदान
शुक्रवार को संसद के कुल 65 में से 62 सांसदों ने इस कानून के खिलाफ एकमत होकर वोट डाले। संसद में प्रस्ताव पारित होने के बाद खुंटो पार्टी के सांसद ओलिंडा गुटुरेस ने यूनिवर्सिटी छात्रों से अपील की कि आपकी मांगें पूरी कर दी गई हैं, इसलिए अपना आंदोलन वापस ले लें और विरोध-प्रदर्शन बंद कर दें। अब यह कानून राष्ट्रपति जोस रामोस होर्ता के पास जाएगा, जो स्वतंत्रता सेनानी और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता हैं। उनके दस्तखत करते ही पूर्व राष्ट्रपतियों, पूर्व प्रधानमंत्रियों-मंत्रियों और पूर्व सांसदों समेत अधिकारियों के पेंशन पर पाबंदी लग जाएगी।
कार खरीद स्कीम के बाद भड़का था गुस्सा
हालांकि, यह प्रदर्शन एक साल पहले ही तब शुरू हुआ थ, जब संसद ने 65 सांसदों के लिए नई एसयूवी कार खरीदने के लिए प्रति कार 61300 डॉलर यानी कुल 42 लाख डॉलर की राशि को मंजूर किया गया था। इस योजना से वहां व्यापक असंतोष पैदा हो गया और अब जब नेपाल में जेन-जेड के विरोध-प्रदर्शनों के बाद सत्ता परिवर्तन हो गया तो वहां भी छात्रों के आंदोलन ने जोर पकड़ लिया। पिछले हफ्ते से राजधानी डिली की सड़कों पर छात्रों का जोरदार प्रदर्शन चल रहा था। तीन दिनों के भारी हंगामे, बवाल और हिंसक झड़पों के बाद सरकार ने आखिर घुटने टेक दिए और उस कार खरीद की योजना समेत पेंशन कानून को भी रद्द कर दिया।
20 फीसदी आबादी बेरोज़गार
पूर्वी तिमोर जिसे आधिकारिक तौर पर तिमोर-लेस्ते कहा जाता है, एशिया का सबसे नया राष्ट्र और दक्षिण पूर्व एशिया का सबसे ग़रीब देश है। यहां की 42 प्रतिशत आबादी ग़रीबी में गुजर-बसर करती है। मानव विकास सूचकांक में तिमोर-लेस्ते का स्थान 140वां है। आंकड़ों के मुताबिक इस देश की 20 फीसदी आबादी बेरोज़गार है, यानी उनके पास आय का कोई साधन नहीं है। वर्ष 2017 से 2022 के बीच राजनीतिक उथल-पुथल के साथ ही कोविड-19 महामारी और सेरोजा चक्रवात जैसे मुश्किलों की वजह से तिमोर-लेस्ते की आर्थिक स्थिति खस्ताहाल है।
भारत से क्या नाता?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अगस्त, 2024 में तिमोर-लेस्ते का दौरा किया था। यह किसी भी भारतीय राष्ट्रपति की पहली आधिकारिक यात्रा थी। 20 मई 2002 को जब आधिकारिक रूप से पूर्वी तिमोर स्वतंत्र देश घोषित किया गया था, तब यूएन मिशन के प्रशासन ने वहां वहां तमाम व्यवस्थाएं स्थापित की थीं। इस काम में संयुक्त राष्ट्र में तैनात भारतीय राजनयिकों कमलेश शर्मा और अतुल खरे ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। उन्होंने तिमोर-लेस्ते में व्यवस्थाएं स्थापित करने और वहां विकास को गति देने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी।
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