
नई दिल्ली । दिल्ली हाई कोर्ट(Delhi High Court) ने बुधवार को चुनावों में EVM (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों) के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की मांग(Demand for imposing restrictions) करने वाली एक याचिका को खारिज(Dismiss the petition) कर दिया। इस याचिका में उच्च न्यायालय से केवल मतपत्रों के जरिए चुनाव कराने का निर्देश देने की मांग की गई थी। हालांकि कोर्ट ने उनकी मांग को मानने से इनकार करते हुए याचिका को खारिज कर दिया। इसके लिए कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट व अपनी समन्वय पीठ के दिए फैसलों का उदाहरण दिया।
अपनी इस याचिका में याचिकाकर्ता उपेंद्र नाथ दलाई ने हाई कोर्ट से चुनाव में मतदान को लेकर व्यापक दिशा-निर्देश देने की मांग की थी। उन्होंने चुनाव में VVPAT युक्त EVM पर प्रतिबंध लगाने, केवल मतपत्रों के माध्यम से चुनाव कराने, चुनाव नियम 1961 में हुए संशोधनों को अमान्य करने और चुनाव आयोग की SIR (विशेष गहन पुनरीक्षण) प्रक्रिया को रद्द करने जैसे निर्देश देने की मांग की थी।
चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे का निपटारा पहले ही निर्णायक रूप से कर चुकी है। मामले की सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय पहले भी इसी तरह की याचिकाओं को खारिज कर चुका है, साथ ही उसने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय की समन्वय पीठ ने भी ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘चुनावों में EVM के इस्तेमाल को चुनौती देने वाली रिट याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इसके बाद उसी फैसले पर भरोसा करते हुए, इस न्यायालय की एक समन्वय पीठ ने भी एक अन्य लेटर्स पेटेंट अपील को खारिज कर दिया था। इन दोनों मामलों को देखते हुए हम इस रिट याचिका को खारिज करते हैं।’
अपनी याचिका में उपेंद्र नाथ ने EVM के इस्तेमाल और चुनाव नियमों में हाल ही में किए गए संशोधनों का जिक्र करते हुए, इनसे स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव प्रभावित होने का आरोप लगाया, साथ ही उन्होंने इससे संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत नागरिकों को मिले मौलिक अधिकारों के उल्लंघन होने का आरोप भी लगाया। उन्होंने कहा कि केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले में निर्धारित संविधान के मूल ढांचे को खतरा पैदा हुआ है।
इस याचिका में आगे दावा किया गया कि EVM के दुरुपयोग, बूथ धांधली और चुनाव आयोग की पक्षपातपूर्ण कार्रवाइयों ने सत्तारूढ़ दल की जीत सुनिश्चित कर दी है, जिससे नागरिकों को दी गई वोटों और विकल्पों की समानता को कमजोर किया जा रहा है। अपनी याचिका में याचिकाकर्ता ने सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के कथित उल्लंघन का भी हवाला दिया और तर्क दिया कि यह मामला पूरी तरह से जनहित में दायर किया गया था, जिसमें कोई व्यक्तिगत हित शामिल नहीं था।
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