नेहरू-गांधी परिवारवादः कभी न ख़त्म होने वाला सिलसिला

– अंबिकानंद सहाय “उमर भर ग़ालिब यही भूल करता रहा धूल चेहरे पर थी, और आईना साफ़ करता रहा।” यानी मैं पूरी ज़िन्दगी दर्पण की धूल पोंछता रहा, इस बात को महसूस किए बिना कि जरूरत अपने चेहरे को साफ करने की थी, दर्पण को नहीं। इस मशहूर शेर में जिस आत्म-विश्लेषण का ज़िक्र है, … Read more