
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) अरावली हिल्स (Aravalli Hills) में खनन (Mining) से संबंधित मामले पर सोमवार को सुनवाई करेगा। चीफ जस्टिस सूर्यकांत (Chief Justice Suryakant) की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच इस मामले पर स्वतः संज्ञान लिया है। यह सुनवाई नवंबर 2025 के उस फैसले के बाद हो रही है, जिसमें कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय की समिति की सिफारिश पर अरावली हिल्स की नई परिभाषा स्वीकार की थी – जिसमें स्थानीय स्तर से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली भूमि को ही अरावली हिल माना जाएगा। साथ ही, पूर्व वन संरक्षण अधिकारी आरपी बलवान की याचिका भी इस मामले से जुड़ी है, जिसमें उन्होंने इस परिभाषा को चुनौती दी है। यह कदम पर्यावरणीय चिंताओं और राजस्थान सहित कई राज्यों में हो रहे प्रदर्शनों के बीच उठाया गया है।
विवाद की जड़ अरावली पर्वतमाला की परिभाषा में है, जो दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में फैली हुई है। यह दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, जो थार मरुस्थल के फैलाव को रोकती है, भूजल रिचार्ज करती है और जैव विविधता को बनाए रखती है। लंबे समय से यहां अवैध खनन और पर्यावरण क्षति की समस्या रही है। नवंबर 20, 2025 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की बेंच ने केंद्र की समिति की रिपोर्ट स्वीकार करते हुए कहा कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियां अरावली का हिस्सा नहीं मानी जाएंगी।
पर्यावरणविदों को किस बात की चिंता
पर्यावरणविदों का मानना है कि इससे 90% से अधिक क्षेत्र संरक्षण से बाहर हो सकता है और खनन बढ़ सकता है। हालांकि, कोर्ट ने नई खनन लीज पर रोक लगा दी है और सस्टेनेबल माइनिंग प्लान तैयार होने तक कोई नई अनुमति नहीं दी जाएगी। केंद्र का कहना है कि यह परिभाषा वैज्ञानिक है और अवैध खनन रोकने में मदद करेगी, जबकि विरोधी इसे पर्यावरण के लिए खतरा बता रहे हैं। राजस्थान में उदयपुर, जोधपुर आदि जिलों में बड़े प्रदर्शन हो रहे हैं।
केंद्र सरकार का क्या है पक्ष
अब सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए मामले को फिर से खोला है, जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सकारात्मक कदम माना जा रहा है। आरपी बलवान की याचिका में तर्क है कि यह परिभाषा अपर्याप्त है और पूरे इकोसिस्टम को नजरअंदाज करती है। केंद्र ने स्पष्ट किया है कि मौजूदा खदानों पर सख्त निगरानी होगी और कोई नई लीज नहीं दी जाएगी। अगर कोर्ट नई परिभाषा में बदलाव करता है, तो अरावली के बड़े हिस्से को मजबूत संरक्षण मिल सकता है, जो जल संकट, धूल भरी आंधियां और जैव विविधता हानि को रोकने में मदद करेगा।

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