
नई दिल्ली । सरकारी तेल एवं गैस कंपनी ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ONGC) के अध्यक्ष अरुण कुमार सिंह(President Arun Kumar Singh) ने शुक्रवार को साफ कहा कि उनकी समूह कंपनियां रूसी कच्चे तेल(Russian crude oil) की खरीद और प्रसंस्करण तब तक जारी रखेंगी, जब तक यह आर्थिक और वाणिज्यिक दृष्टि से लाभकारी साबित होता है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत सरकार की ओर से रूसी तेल आयात को रोकने या सीमित करने का कोई दबाव नहीं है। उन्होंने कहा कि रूसी तेल पर कोई प्रतिबंध नहीं है और जब तक भारत सरकार की ओर से कोई अन्य निर्देश नहीं मिलता तब तक ओएनजीसी समूह की रिफाइनरियां- हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) और मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड (एमआरपीएल) रूस से तेल खरीदने के लिए स्वतंत्र हैं।
अरुण कुमार सिंह ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा, “जब तक यह आर्थिक रूप से फायदेमंद है, तब तक हम बाजार में उपलब्ध रूसी तेल की हर बूंद खरीदते रहेंगे।” ओएनजीसी समूह की दोनों प्रमुख रिफाइनरी कंपनियां- एचपीसीएल और एमआरपीएल मिलकर लगभग 40 मिलियन टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) की रिफाइनिंग क्षमता रखती हैं। इसके अलावा, एचपीसीएल की 11.3 एमटीपीए क्षमता की एक संयुक्त उद्यम रिफाइनरी मित्तल एनर्जी के साथ है। देश की कुल रिफाइनिंग क्षमता इस समय 258 एमटीपीए है।
इस बीच सार्वजनिक क्षेत्र की ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ओवीएल) को उम्मीद है कि रूस के साथ बैंकिंग चैनल खुलने और वेनेजुएला पर लगे प्रतिबंधों में छूट मिलने के बाद वह दोनों देशों से अपना अटका हुआ बकाया वसूल कर पाएगी। सार्वजनिक क्षेत्र की ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) की विदेश निवेश इकाई ओवीएल के प्रबंध निदेशक राजर्षि गुप्ता ने शुक्रवार को बताया कि रूस में ओवीएल की तेल एवं गैस परिसंपत्तियों से मिले करीब 35 करोड़ डॉलर के लाभांश वहां के बैंकों में फंसे हुए हैं।
वहीं, वेनेजुएला में भी प्रतिबंध लगने की वजह से करीब 60 करोड़ डॉलर की राशि अटकी हुई है। गुप्ता ने कहा कि रूस में स्थित परिसंपत्तियों से मिलने वाला लाभांश जुलाई, 2022 के बाद से स्थानांतरित नहीं हो पाया है हालांकि संचालन सुचारू रूप से जारी है। उन्होंने भरोसा जताया कि इस मसले का समाधान जल्द निकलेगा और कंपनी अपनी रकम वापस ला सकेगी। भारत की पेट्रोलियम कंपनियों ने रूस में कुल 5.46 अरब डॉलर का निवेश किया हुआ है। इनमें वैंकॉरनेफ्ट और तास-यूर्याख समेत कई तेल एवं गैस परियोजनाओं में हिस्सेदारी शामिल है। ओवीएल के पास वेनेजुएला के सान क्रिस्टोबल क्षेत्र में भी 40 प्रतिशत हिस्सेदारी है और कंपनी ने वहां भी बकाया वसूली के लिए प्रतिबंधों में छूट मांगी है।
अमेरिकी दबाव और अतिरिक्त टैरिफ
भारतीय रिफाइनरियों द्वारा रूसी क्रूड का भारी मात्रा में आयात ट्रंप प्रशासन के लिए एक प्रमुख विवाद का कारण बन गया है। इस महीने की शुरुआत में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के रूसी तेल आयात को “दंडित” करने के लिए भारतीय सामानों पर पहले से लागू 25 प्रतिशत टैरिफ के अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ की घोषणा की। भारत ने रूसी तेल खरीद को लेकर निशाना बनाए जाने को “अनुचित और अव्यवहारिक” करार दिया है। भारत सरकार का कहना है कि पारंपरिक आपूर्तिकर्ताओं द्वारा तेल को यूरोप की ओर मोड़ दिए जाने के बाद भारत ने रूसी तेल का आयात शुरू किया था। इसके साथ ही, अमेरिका ने वैश्विक ऊर्जा बाजारों की स्थिरता को मजबूत करने के लिए भारत को रूसी तेल आयात बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया था।
भारत सरकार का रुख: जहां से सबसे अच्छा सौदा, वहां से तेल खरीद
भारत की सरकारी रिफाइनरियों को रूसी तेल आयात के संबंध में सरकार से कोई निर्देश या संकेत नहीं मिला है। इन रिफाइनरियों की रणनीति आर्थिक और व्यावसायिक विचारों पर आधारित है। भारत सरकार का रुख स्पष्ट है कि देश वहां से तेल खरीदेगा, जहां से उसे सबसे अच्छा सौदा मिलेगा, बशर्ते वह तेल प्रतिबंधों के अधीन न हो। रूसी तेल पर कोई प्रतिबंध नहीं है, केवल अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा लगाया गया एक मूल्य सीमा (प्राइस कैप) लागू है, जो तब प्रभावी होता है जब रूसी तेल के परिवहन के लिए पश्चिमी शिपिंग और बीमा सेवाओं का उपयोग किया जाता है।
रूस अब सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता
आज की स्थिति में रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है और 35-40 प्रतिशत तक कच्चा तेल भारत को वहीं से मिल रहा है। 2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था, तब भारत के आयात में रूस की हिस्सेदारी 2 प्रतिशत से भी कम थी। पश्चिमी देशों द्वारा रूस का तेल ठुकराए जाने के बाद, मॉस्को ने इच्छुक खरीदारों को भारी छूट पर तेल देना शुरू किया, जिसका फायदा भारतीय रिफाइनरियों ने उठाया और कुछ ही महीनों में रूस भारत का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन गया। गौरतलब है कि जहां अमेरिका ने भारत पर अतिरिक्त टैरिफ लगाया है, वहीं चीन, जो रूस का सबसे बड़ा तेल खरीदार है, उस पर अब तक ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
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