
जयपुर: ईरान (Iran) और इजराइल (Israel) के बीच जारी जंग पर भारत (India) की खामोशी और अस्पष्ट रुख को लेकर सियासी हलकों में हलचल मची हुई है. इसी सिलसिले में राजस्थान (Rajasthan) के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने केंद्र सरकार (Central Government) पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश (Democratic Countries) है. लेकिन अफसोस कि आज उसकी विदेश नीति तजुर्बे और दिशा दोनों के लिहाज से कन्फ्यूज नजर आ रही है. गहलोत ने जयपुर में केन्द्र सरकार और बीजेपी पर जबर्दस्त हमला करते हुए कहा कि इंदिरा गांधी के दौर में भारत ने गैर-पक्षपाती आंदोलन की अगुवाई की थी. हम दुनिया में अमन और इंसाफ की आवाज हुआ करते थे. लेकिन आज जब पूरी दुनिया हमारे रुख की तरफ देख रही है तो हम खामोश हैं.
उन्होंने कहा कि ऐसे नाज़ुक दौर में हमारी चुप्पी देश के लिए बदकिस्मती है. हमारी विदेश नीति में साफगोई और मजबूती की शिद्दत से जरूरत है. गहलोत ने कहा कि पहलगाम में हुए हमले के बाद भी भारत को किसी पड़ोसी मुल्क का साथ नहीं मिला. नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश और भूटान भी खामोश रहे. पाकिस्तान के साथ तीन-चार मुल्क खुलकर आ गए. रूस ने भी ठोस समर्थन नहीं दिया और अमेरिका की नीयत सब जानते हैं. उन्होंने कहा कि भारत से दुनिया को उम्मीदें हैं. लेकिन आज जब वैश्विक सियासत में बवंडर उठा हुआ है तो ऐसे में भारत की खामोशी और उसकी अस्पष्ट रणनीति सवाल खड़े करती है.
गहलोत ने बीजेपी पर हमला बोलते हुए गहलोत ने कहा कि आज देश को कांग्रेस की जरूरत है. क्योंकि यही वह पार्टी है जिसने मुल्क की एकता और अखंडता के लिए कुर्बानियां दी हैं।. गहलोत बोले संघ और बीजेपी ने आजादी की लड़ाई में एक उंगली तक नहीं कटवाई. लेकिन आजादी के बाद उन्होंने हिंदू धर्म को उकसा कर अपनी सियासत चलाई. टूजी और कोलगेट जैसे मामलों में कांग्रेस को बदनाम किया गया. लेकिन आज उन घोटालों का कोई नामोनिशान नहीं है. ये लोग सिर्फ मजहबी जज्बातों को भड़का कर सत्ता में आते हैं. देश की तरक्की की राह तय करने में इनकी कोई भूमिका नहीं है.
गहलोत ने सवाल उठाया कि जब बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर जुल्म हुए और वहां की प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत आईं तो केंद्र सरकार ने वहां के पीड़ितों की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाए? गहलोत ने कृषि मंत्री किरोड़ीलाल मीणा के छापों पर तंज कसते हुए कहा कि अगर वाकई गवर्नेंस ठीक करनी है तो मुख्यमंत्री समेत तमाम मंत्री मिलकर छापे मारे. लेकिन जांच और मॉनिटरिंग का काम अफसरों का होता है. एसीबी और विभागीय एजेंसियां जब तक ठोस सबूत इकट्ठा न करें तब तक मंत्री खुद कार्रवाई करें. यह रवैया नुकसानदेह हो सकता है.
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