
नई दिल्ली: भारत (India) के स्वदेशी रक्षा कार्यक्रम में एक और बड़ा कदम उठने जा रहा है. डीआरडीओ (DRDO) अब एस्ट्रा Mk2 एयर-टू-एयर मिसाइल (Air-to-Air Missile) के अपग्रेड वर्जन के नए परीक्षण की तैयारी कर रहा है. सूत्रों के मुताबिक, इस मिसाइल के फ्लाइट ट्रायल (Flight Trials) 2026 की शुरुआत में होने की संभावना है. अपग्रेड किए गए एस्ट्रा Mk2 में डुअल-पल्स रॉकेट मोटर दी जाएगी, जिससे इसकी मारक दूरी बढ़कर करीब 200 किलोमीटर तक पहुंच सकती है.
डीआरडीओ वैज्ञानिकों ने मिसाइल की रॉकेट मोटर में बड़ा सुधार किया है. डुअल-पल्स मोटर की खासियत यह होती है कि यह एक बार जलने के बाद दोबारा ताकत दे सकती है.नई डिजाइन में दूसरे पल्स की अवधि बढ़ाई गई है, जिससे मिसाइल आखिरी चरण में भी तेज रफ्तार और बेहतर नियंत्रण बनाए रखेगी. फिलहाल एस्ट्रा Mk-2 की रेंज करीब 160 किलोमीटर मानी जाती है, लेकिन नए इंजन के साथ इसकी प्रभावी रेंज 200 किलोमीटर के आसपास होने की उम्मीद है. आधुनिक हवाई युद्ध में यह क्षमता बेहद अहम मानी जाती है. खासकर तब जब दुश्मन का विमान बचने की कोशिश करता है.
सूत्रों के मुताबिक, 2026 की शुरुआत में होने वाले ट्रायल में मिसाइल की रफ्तार, स्थिरता और सटीकता की जांच की जाएगी.अगर ये परीक्षण सफल रहते हैं, तो ज्यादा ट्रायल की जरूरत नहीं होगी और 2026 के मध्य तक सीरियल प्रोडक्शन का रास्ता साफ हो सकता है. 200 किलोमीटर रेंज की एयर-टू-एयर मिसाइल से भारतीय वायुसेना की ताकत में बड़ा इजाफा होगा. इससे पायलट दुश्मन के विमान को सुरक्षित दूरी से ही निशाना बना सकेंगे. एस्ट्रा Mk-2, पहले से सेवा में मौजूद एस्ट्रा Mk-1 (100+ किमी रेंज) का पूरक होगा. इसे Su-30 MKI और एलसीए तेजस जैसे लड़ाकू विमानों में शामिल किया जाएगा.
रिपोर्टों के अनुसार, भारतीय वायुसेना करीब 700 एस्ट्रा Mk-2 मिसाइलों का बड़ा ऑर्डर देने की तैयारी में है. इससे न सिर्फ वायुसेना की स्क्वॉड्रनों को आधुनिक हथियार मिलेंगे, बल्कि देश के रक्षा उद्योग को भी मजबूती मिलेगी. डीआरडीओ का लक्ष्य मौजूदा प्लेटफॉर्म को अपग्रेड कर कम लागत में ज्यादा ताकत देना है. एस्ट्रा Mk-2 इसी सोच का उदाहरण है, जो भारत को हवाई युद्ध में आत्मनिर्भर और मजबूत बनाने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है.
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