
नई दिल्ली. भारतीय सिनेमा (Indian Cinema_ की उभरती हुई अभिनेत्री आयशा एस ऐमन (Ayesha S Aiman) , जो कभी मिस इंडिया इंटरनेशनल (Miss India International) का ताज पहन चुकी हैं, आज आत्मबल और संकल्प की मिसाल हैं। लेकिन उनकी ज़िंदगी का सबसे भावुक फैसला वो था, जब उन्होंने अपनी माँ का एक अधूरा सपना पूरा करने के लिए अपना नाम बदलने का निर्णय लिया।
आयशा बताती हैं: “मेरा जन्म नाम ‘सुप्रिया’ था। यही नाम मेरे साथ स्कूल से लेकर एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग क्लासेस, फैशन शोज़, अंतरराष्ट्रीय दौरों, मिस इंडिया पेजेंट्स और ब्यूटी कॉन्टेस्ट्स तक जुड़ा रहा। इसी नाम से मैंने डिग्रियाँ हासिल कीं, एग्ज़ाम्स टॉप किए और भारत को सोन्दर्य प्रतियोगिता में मिस इंटरनेशनल के मन्च पर रिप्रेज़ेंट किया। मैंने ऑल इंडिया एरोनॉटिकल एंट्रेंस एग्ज़ाम भी इसी नाम से टॉप किया था!
“लेकिन हर उपलब्धि के पीछे थी मेरी माँ — श्रीमती आशा देवी, जो पिछले 25 वर्षों से भारतीय न्यायपालिका में सेवा दे रही हैं और न्याय को गरिमा व मजबूती से निभा रही हैं —और उनकी एक खामोश ख्वाहिश: मुझे ‘आयशा’ नाम देने की।”
उनके भीतर एक छोटी-सी अधूरी इच्छा थी, जो अक्सर उन्होंने मुझसे कही: “मैं तुम्हारा नाम ‘आयशा’ रखना चाहती थी — ‘आशा सा’, जैसे एक उम्मीद, लेकिन किसी वजह से नहीं रख पाई।”
आयशा याद करती हैं: “जब उन्होंने चौथी बार ये बात मुंबई में कही, तो उनकी निगाहें झुकी हुई थीं, और चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान थी। मैंने उनकी आँखों में गहराई से देखा, और उसी पल मैंने ठान लिया — अब मैं उनका सपना पूरा करूंगी। और मैंने बिना एक पल की देरी किए, अपना नाम बदल दिया।”
यह नाम बदलना किसी करियर प्लान का हिस्सा नहीं था — यह बस एक बेटी का संकल्प था, जो अपनी माँ की दिल से निकली एक ख्वाहिश को पूरा करना चाहती थी।
अब मेरा आधिकारिक नाम है — आयशा एस ऐमन:
•‘आयशा’, वो नाम जो मेरी माँ हमेशा रखना चाहती थीं।
•‘S’, सुप्रिया की संघर्षों और उपलब्धियों की पहचान।
•‘ऐमन’, जो मेरे पारिवारिक संस्कारों और जड़ों का प्रतीक है।
आयशा आगे कहती हैं: “जब अपना नाम आधिकारिक तौर पर बदला और माँ को बताया, तो उनकी आँखों में आँसू थे… और मेरे दिल में एक गहरा सुकून। ऐसा लगा जैसे मैंने कोई ताज नहीं, बल्कि अपनी माँ का आशीर्वाद पा लिया हो।”
लोग अकसर पूछते हैं: “इतनी कामयाबी के बाद नाम क्यों बदला?”
मैं मुस्कुराकर कहती हूँ: ये नाम शोहरत के लिए नहीं था, ये मेरी माँ के उस खामोश ख्वाब को पूरा करने का वादा था।”
अब जब कोई मुझे ‘आयशा’ कहता है, तो वो सिर्फ एक नाम नहीं लगता —
लगता है जैसे मेरी माँ मुझे पुकार रही हों — ‘आशा सा’, एक उम्मीद की तरह।
ये नाम उन्हीं को समर्पित है। क्योंकि वो अब मेरे साथ सिर्फ माँ नहीं, मेरा नाम बनकर हमेशा रहेंगी।
सुप्रिया की ओर से — प्यार के साथ। अब और हमेशा,आयशा एस ऐमन।
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