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‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ की पोस्ट शेयर करने के आरोपी को जमानत नहीं, हाईकोर्ट ने खारिज की अर्जी

July 01, 2025

नई दिल्‍ली । फेसबुक(Facebook) पर ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ की पोस्ट साझा(Share the post) करने के 62 वर्षीय आरोपी अंसार अहमद सिद्दकी(Ansar Ahmed Siddiqui) की जमानत खारिज(Bail rejected) कर दी है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि राष्ट्र विरोधी मामलों के प्रति न्यायापालिका की सहनशीलता से इस तरह के मामलों में वृद्धि हो रही है। अंसार अहमद को जमानत देने से इनकार करते हुए न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने कहा कि देश में इस तरह के अपराध करना आम बात हो गई है। अदालतें, राष्ट्र विरोधी मानसिकता वाले व्यक्तियों के ऐसे कृत्यों के प्रति उदार और सहनशील हैं।


हाईकोर्ट ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता का यह काम स्पष्ट रूप से संविधान का अपमान है। भारत विरोधी पोस्ट साझा करना देश की संप्रभुता को चुनौती देने जैसा और देश की अखंडता को बुरी तरह प्रभावित करने वाला है। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता सीनियर सिटीजन हैं। उनकी उम्र बताती है कि वह स्वतंत्र भारत में जन्मे हैं। इसके बावजूद उनका यह गैर जिम्मेदारी भरा और राष्ट्र विरोधी आचरण उन्हें संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता के अधिकार के संरक्षण का पात्र नहीं बनाता। हालांकि जमानत अर्जी खारिज करने के साथ ही कोर्ट ने यह निर्देश भी दिया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ निचली अदालत में केस की सुनवाई जितनी जल्द हो सके, उतनी जल्दी पूरी की जाए।

यूपी के बुलंदशहर के छतरी थाने में अंसार अहमद सिद्दकी के खिलाफ बीएनएस की धारा 197 (राष्ट्रीय एकता को कमजोर करने वाला कृत्य), 152 (भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाला कृत्य) के तहत केस दर्ज किया गया था। मामले की सुनवाई के दौरान, अंसार अहमद के वकील ने दलील दी थी कि 3 मई, 2025 को याचिकाकर्ता ने फेसबुक पर केवल वीडियो साझा किया। वह सीनियर सिटीजन हैं और उनका इलाज चल रहा है।

पहलगाम हमले के बाद साझा की थी पोस्ट

जबकि सरकारी वकील ने अंसार अहमद सिद्दकी की जमानत अर्जी का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता का आचरण देश के हित के खिलाफ है। वह जमानत पर रिहा होने का पात्र नहीं है। सरकारी वकील ने यह भी कहा कि यह वीडियो पहलगाम में आतंकियों द्वारा 26 लोगों की निर्मम हत्या किए जाने के बाद पोस्ट किया गया था। इसलिए यह साफ तौर पर साबित होता है कि याचिकाकर्ता ने धार्मिक आधार पर आतंकियों के कृत्य का समर्थन किया है। दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने 26 जून के अपने आदेश में कहा कि भारत के हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह संविधान का पालन करे। भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता का सम्मान करे।

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