
नई दिल्ली। बांग्लादेश की सेना (Bangladesh Army) ने म्यांमार के रखाइन प्रांत में प्रस्तावित मानवीय गलियारे (कॉरिडोर) की योजना का कड़ा विरोध जताया है। सेना ने स्पष्ट कर दिया है कि वह ऐसे किसी भी कदम का हिस्सा नहीं बनेगी, जो देश की राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता (National security and sovereignty) के लिए खतरा हो सकता है। यह कॉरिडोर मोहम्मद यूनुस (mohammed yunus) के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार की पहल है, जिसे अमेरिका के समर्थन से आगे बढ़ाया जा रहा है।
सोमवार, 26 मई को ढाका में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल शफीकुल इस्लाम ने कहा कि सेना देशहित से जुड़े मामलों में कोई समझौता नहीं करेगी। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा, “सेना गलियारे, राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़े किसी भी फैसले पर समझौता नहीं करेगी।
इससे पहले, 21 मई को सेना प्रमुख जनरल वकार उज-जमान ने कमांडिंग अफसरों की बैठक में इस योजना को खूनी कॉरिडोर करार देते हुए इसका खुला विरोध किया था। उन्होंने चेतावनी दी थी कि सेना को नजरअंदाज कर लिए गए फैसले देश के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं। जनरल जमान ने कहा, कुछ बाहरी लोग देश के लिए फैसले ले रहे हैं, और जब संकट आएगा तो वे देश छोड़ देंगे। सेना की चिंता का मुख्य कारण इस कॉरिडोर में अराकान आर्मी जैसे नॉन-स्टेट एक्टर्स की संभावित भागीदारी है, जो म्यांमार की जुंटा सरकार से सशस्त्र संघर्ष में शामिल है। बांग्लादेश सेना को आशंका है कि इस गलियारे से देश की सुरक्षा और सीमांत इलाकों में अस्थिरता पैदा हो सकती है।
इस योजना के पीछे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार खलीलुर रहमान को मुख्य रणनीतिकार माना जा रहा है, जो अमेरिकी नागरिक भी हैं। उनके मुताबिक, यह कॉरिडोर अमेरिका या चीन के दबाव में नहीं बनाया जा रहा, बल्कि संयुक्त राष्ट्र से परामर्श के बाद विचार किया गया है। हालांकि, सेना और कई राजनीतिक दल इस दावे से सहमत नहीं हैं। खलीलुर रहमान ने 21 मई को ढाका स्थित विदेश सेवा अकादमी में आयोजित एक प्रेस वार्ता में कहा था कि सरकार गलियारे को मानवीय उद्देश्य से देख रही है और इसे लेकर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से बातचीत जारी है।
कॉरिडोर योजना का विरोध केवल सेना तक सीमित नहीं है। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) समेत कई राजनीतिक दलों ने भी इस पर आपत्ति जताई है और सेना प्रमुख के रुख का समर्थन किया है। यह विवाद अंतरिम सरकार और सैन्य नेतृत्व के बीच बढ़ती दूरी और अविश्वास को दर्शाता है। संक्षेप में, बांग्लादेश की सेना ने साफ कर दिया है कि वह राष्ट्रीय हितों से कोई समझौता नहीं करेगी और बिना समन्वय के लिए जा रहे फैसलों को स्वीकार नहीं किया जाएगा।
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