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बंगाल की राजनीति में नई हलचल, हुमायूं कबीर और तीन मुस्लिम नेताओं से ममता की बढ़ीं मुश्किलें

December 26, 2025

नई दिल्‍ली । पश्चिम बंगाल (West Bengal) की राजनीति तेजी से गरमा रही है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि अगले साल राज्य में विधानसभा चुनाव होना है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Chief Minister Mamata Banerjee) के लिए यहां सत्ता बचाने की चुनौती है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी (BJP) यहां पहली बार सरकार बनाने तमन्ना लिए बैठी है। इस सबके बीच चुनावी बिसात पर बागी विधायक हुमायूं कबीर (Humayun Kabir) ने ममता बनर्जी की दिक्कतें बढ़ा दी है। कबीर के एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन औवेसी (Asaduddin Owaisi) और इंडिया सेकुलर फ्रंट (आईएसएफ) के प्रमुख पीरजादा अब्बास सिद्दीकी (Pirzada Abbas Siddiqui) से संपर्क साधने से राज्य की राजनीति में गरमाहट आ गई है।

दूसरी तरफ तो भाजपा ने अपने मजबूत बूथ प्रबंधन से बदलाव की स्थिति बनाने की कोशिशें तेज कर दी हैं। पश्चिम बंगाल में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच लगभग सीधा मुकाबला है। कांग्रेस और तीन दशक तक राज्य में सत्ता पर काबिज रही माकपा और उसके सहयोगी दल हाशिए पर जा चुके हैं। ऐसे में तृणमूल से बाहर निकले हुमायूं तीसरी ताकत के रूप में उभरने की कोशिश में है। हालांकि वह अकेले एक क्षेत्र विशेष तक सीमित है पर यदि उनको औवेसी व पीरजादा का साथ मिला तो कई सीटों पर समीकरण प्रभावित कर सकते हैं।


तीन मुस्लिम नेता एक साथ
औवेसी ने हाल में बिहार में जो सफलता हासिल की है उससे साफ हुआ है कि मुस्लिम मतदाताओं ने इस पार्टी को स्वीकार करना शुरू कर दिया है। आईएसएफ ने पिछले चुनाव में ही अपनी स्थिति साफ कर दी थी, जब उसने एक सीट जीत ली थी। ऐसे में अगर तीन प्रमुख मुस्लिम नेता एक मंच पर आते हैं तो मुसलमानों के बीच वह अपनी पैठ बढ़ा सकते हैं।

ध्रुवीकरण से ममता को नुकसान
बंगाल की लगभग 30% मुस्लिम आबादी है। हुमायूं कबीर जिस तरह से माहौल बना रहे हैं उसमें वह अगर मुस्लिम मतों का थोड़ा भी ध्रुवीकरण करने में सफल रहते हैं तो ममता बनर्जी को काफी नुकसान हो सकता है। इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है।

भाजपा विधायक भी मैदान में डटे
भाजपा ने तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी अपना विस्तार किया है। उसके विधायक मैदान में डटे रहे हैं। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व पहले से ही आक्रामक और राज्य की मौजूदा स्थितियों में और ज्यादा आक्रामकता दिखाकर ममता बनर्जी की दिक्कतें बढ़ाएगा। पिछली बार भाजपा अपने बूथ प्रबंधन में कमजोर रही थी, इसलिए पार्टी ने इस बार पूरा जोर बूथ प्रबंधन पर लगाया है।

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