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बड़ा खुलासा : Pakistan में हिंदुओं-ईसाइयों को जबरन बनाया जा रहा सफाईकर्मी…

August 10, 2025

इस्लामाबाद। पाकिस्तान (Pakistan) में हिंदुओं और ईसाइयों (Hindus and Christians) को जबरन सफाईकर्मचारी (Forced cleaning worker.) बनाए जाने का हैरान करने वाला मामला सामने आया है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन (International Human Rights Organization) एमनेस्टी इंटरनेशनल (Amnesty International) ने अपनी एक नई रिपोर्ट में पाकिस्तान में जाति और धर्म के आधार पर सफाईकर्मियों के साथ हो रहे गहरे भेदभाव और शोषण का खुलासा किया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे देश के सबसे हाशिये पर खड़े समुदायों को खतरनाक और कम वेतन वाली नौकरियों में धकेल कर उन्हें बुनियादी श्रम अधिकारों और गरिमा से वंचित किया जाता है।


“कट अस ओपन एंड सी दैट वी ब्लीड लाइक देम” यानी “हमें चीर कर देखो, हमारा खून भी उनकी तरह ही बहेगा” शीर्षक वाली इस रिपोर्ट को पाकिस्तान के सेंटर फॉर लॉ एंड जस्टिस के साथ मिलकर तैयार किया गया है। इसमें लाहौर, बहावलपुर, कराची, उमेरकोट, इस्लामाबाद और पेशावर के 230 से अधिक सफाईकर्मियों की गवाही शामिल है। रिपोर्ट बताती है कि कर्मचारियों में ज्यादातर ईसाई और तथाकथित “निचली जातियों” के हिंदू शामिल हैं।

एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार, सर्वे में शामिल 55% लोगों ने कहा कि उनकी भर्ती में उनकी जाति या धर्म का निर्णायक प्रभाव रहा। बहावलपुर के एक व्यक्ति ने बताया कि उन्होंने बिजली मिस्त्री की नौकरी के लिए आवेदन किया, लेकिन ईसाई होने की जानकारी मिलने पर उन्हें केवल सफाई का काम ही ऑफर किया गया। उन्होंने कहा- “एक बार जब उन्हें पता चल जाए कि आप ईसाई हैं, तो केवल सफाई का काम ही दिया जाता है।”

गहरी जड़ें जमा चुका भेदभाव
रिपोर्ट में सामने आया कि लगभग आधे सफाईकर्मी अपने कार्यस्थल या समाज में ‘चूहड़ा’ और ‘भं**’ जैसे अपमानजनक शब्दों से पुकारे जाते हैं। कई मामलों में उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर अलग बैठाया जाता है और यहां तक कि बर्तनों के इस्तेमाल में भी भेदभाव किया जाता है। महिला सफाईकर्मियों को अतिरिक्त लिंग-आधारित भेदभाव का सामना करना पड़ता है, और ईसाई महिलाएं अक्सर सबसे गंदे व खतरनाक कार्यों में लगाई जाती हैं।

अस्थायी रोजगार और असुरक्षित हालात
रिपोर्ट के मुताबिक, केवल 44% सफाईकर्मियों के पास स्थायी नौकरी के कॉन्ट्रैक्ट हैं, जबकि 45% के पास कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं है। इससे भर्ती करने वाले लोग श्रम कानूनों से बच निकलते हैं और कर्मचारी किसी भी लाभ से वंचित रह जाते हैं। उमेरकोट के एक सफाईकर्मी ने बताया कि वे 18 साल से दैनिक वेतन पर काम कर रहे हैं, लेकिन आज तक नियमित नहीं हुए।

जीवन के लिए खतरा बनते हालात
55% सफाईकर्मियों ने बताया कि उन्हें बिना सुरक्षा उपकरणों के काम करने के कारण त्वचा की जलन, सांस संबंधी बीमारियां और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो गईं। इस्लामाबाद के एक कर्मचारी का हाथ एक संक्रमित सिरिंज से घायल हो गया, क्योंकि उनके पास दस्ताने नहीं थे। 70% सफाईकर्मी असुरक्षित काम को मना करने की स्थिति में नहीं थे, क्योंकि उन्हें नौकरी से निकाल देने का डर था।

कानूनी सुरक्षा का अभाव
पाकिस्तान के संविधान में जातिगत भेदभाव पर कोई स्पष्ट रोक नहीं है और प्रांतीय श्रम कानून भी सफाईकर्मियों को पर्याप्त सुरक्षा नहीं देते। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि भेदभाव-रोधी कानून की अनुपस्थिति, पाकिस्तान के कई अंतरराष्ट्रीय संधियों और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के मानकों के उल्लंघन के समान है।

एमनेस्टी इंटरनेशनल की दक्षिण एशिया की उप-क्षेत्रीय निदेशक इसाबेल लासी ने कहा- “पाकिस्तान में सफाईकर्मियों के साथ हो रहा अन्याय न केवल सामाजिक और आर्थिक हाशिए पर डालने का मामला है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत मानवाधिकारों का उल्लंघन भी है।” उन्होंने तत्काल कानूनी सुधार, जाति आधारित भेदभाव पर प्रतिबंध, श्रम संरक्षण लागू करने और केवल पहचान के आधार पर अल्पसंख्यकों को सफाई कार्य में भर्ती करने की प्रथा समाप्त करने की मांग की। एमनेस्टी ने चेतावनी दी कि जब तक पाकिस्तान इन संरचनात्मक अन्यायों को दूर नहीं करता, तब तक सफाईकर्मी भेदभाव, शोषण और संस्थागत अन्याय के इस चक्र में फंसे रहेंगे।

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