
नई दिल्ली। वित्त वर्ष 2026 की पहली तिमाही में बड़े निजी बैंकों (Private Banks) ने मजबूती दिखाई, जबकि मझोले बैंकों को मार्जिन पर दबाव और बढ़ते फंसे कर्ज Loan) का सामना करना पड़ा। इक्विरस सिक्योरिटीज की एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। बैंक अपने ग्राहकों (Customers) को लोन देकर ब्याज (Interest) कमाते हैं, और जमा खातों या एफडी पर ग्राहकों को ब्याज चुकाते हैं। इन दोनों के बीच का फर्क ही मार्जिन कहलाता है।
रिपोर्ट में शुद्ध ब्याज मार्जिन में मिले-जुले रुझान देखने को मिले। रेपो-लिंक्ड ऋणों में ज्यादा हिस्सेदारी रखने वाले बड़े निजी बैंकों ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया। रेपो-लिंक्ड ऋण का मतलब है कि ऋण की ब्याज दर, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा निर्धारित रेपो दर से जुड़ी होती है। इसका मतलब है कि जब आरबीआई रेपो दर में बदलाव करता है, तो ऋण की ब्याज दर भी उसी के अनुसार बदल जाती है।
बड़े निजी बैंकों के बेहतर प्रदर्शन को निवेश से प्राप्त ब्याज, आईटी रिफंड और अपेक्षाकृत स्थिर फंडिंग लागत का समर्थन मिला। वहीं दूसरी ओर, एयू स्मॉल फाइनेंस बैंक (AUBANK) और आरबीएल बैंक (RBK) जैसे मझोले बैंकों ने कमजोर नेट इंटरेस्ट मार्जिन (NIMs) दर्ज किए, जिसका मुख्य कारण उच्च ब्याज रिवर्सल और कम फंडिंग लागत से सीमित लाभ था। हालांकि, रिपोर्ट के मुताबिक इन बैंकों ने महत्वपूर्ण राजकोषीय लाभ दर्ज करने में सफलता प्राप्त की।
बैंकिंग क्षेत्र में परिसंपत्ति गुणवक्ता के रुझान मोटे तौर पर स्थिर रहे, लेकिन कुछ क्षेत्रओं में दबाव का सामना करना पड़ा। एयू बैंक ने अपने किफायती आवास ऋण पोर्टफोलियो में, विशेष रूप से दक्षिण भारत में, अधिक स्लिपेज की सूचना दी। आरबीएल बैंक को अपने व्यावसायिक बैंकिंग क्षेत्र में परिसंपत्ति गुणवत्ता पर दबाव का सामना करना पड़ा। हालांकि पहले से ही प्रभावित माइक्रोफाइनेंस और क्रेडिट कार्ड जैसे क्षेत्रों में तनाव थोड़ा कम हुआ, लेकिन समग्र चिंताएं बनी रहीं।
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