
पटना. बिहार (Bihar) में विधानसभा चुनाव (assembly elections) से पहले चुनाव आयोग (election Commission) के मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान पर सियासी बवाल चरम पर है। विपक्षी दल सवाल पूछ रहे हैं कि सूची में नाम के लिए आधार कार्ड और आवासीय प्रमाण पत्र को मान्यता क्यों नहीं दी जा रही? मगर, तथ्य यह भी है कि राज्य के सीमांचल इलाके के चार जिलों कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज और अररिया में आधार कार्ड की संख्या आबादी से अधिक हो चुकी है। यही नहीं, नागरिकता प्रमाण पत्र के रूप में आधार कार्ड की मान्यता न होने बावजूद इस क्षेत्र में इसी के आधार पर धड़ल्ले से निवास प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं।
बीते दो दशक में यह क्षेत्र बांग्लादेश से घुसपैठ में आई तेजी के कारण जनसांख्यिकी में तेजी व लगातार बदलाव से चर्चा में रहा है। 1951 से 2011 तक इस क्षेत्र में मुस्लिमों की आबादी में 16 फीसदी की तीव्र बढ़ोतरी दर्ज की गई। हालिया जातिगत जनगणना में सामने आया कि मुस्लिम आबादी किशनगंज में 68%, अररिया में 50%, कटिहार में 45% और पूर्णिया में 39% हो गई। कुल मिला कर इन चारों जिलों में मुस्लिम आबादी 47% हो गई। सीमांचल में तेजी से हो रहे जनसांख्यिकी बदलाव से केंद्र सरकार चिंतित है। चुनाव आयोग के मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण का आधार भी यही है।
विपक्ष इसलिए हमलावर
पुनरीक्षण अभियान का सर्वाधिक विरोध राज्य के मुस्लिम इलाकों में है। इस बिरादरी का बड़ा हिस्सा अरसे से विपक्षी महागठबंधन का समर्थन करता रहा है। महागठबंधन विरोध के बहाने इस बिरादरी को गोलबंद करना चाहता है।
किशनगंज में आधार कार्ड आबादी का 105 फीसदी
पूरे देश की करीब 90 फीसदी आबादी के पास आधार कार्ड है। वहीं, बिहार के सीमांचल में यह आंकड़ा आबादी से भी ज्यादा है। किशनगंज में आधार कार्ड की संख्या आबादी का 105.16 फीसदी, अररिया में 102.23 फीसदी, कटिहार में 101.92 फीसदी और पूर्णिया में 101 फीसदी है।
यह क्षेत्र सामरिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील माने जाने वाले सिलीगुड़ी कॉरिडोर के चिकेन नेक के करीब है। चुनाव आयोग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, शिकायतों के आधार पर लगता है कि सीमांचल सहित कुछ चुनिंदा जिलों से जुड़े विस क्षेत्रों में औसतन दस हजार फर्जी मतदाता हैं। आबादी से अधिक आधार कार्ड प्रथमदृष्टया इसे सही साबित करता है।
बस कम समय सीमा पर घिर रहा चुनाव आयोग
बिहार में अक्तूबर-नवंबर में चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में विपक्ष सवाल उठा रहा है कि महज तीन से चार महीने में विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान कैसे पूरा किया जा सकता है?
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