
पटना । कार्यकाल समाप्त कर रही 17वीं विधानसभा (17th Assembly) कई मायनों में ऐतिहासिक रही। पहली बार दो पक्षों में ऐसी कांटे की टक्कर देखने को मिली। हालांकि दो गठबंधनों (Alliances) के बीच हुए कड़े मुकाबले में एनडीए (NDA) बीस साबित हुआ। महज तीन सीटों के अंतर से एनडीए को बहुमत मिला। महागठबंधन भी बहुमत से केवल 12 सीट ही पीछे रहा। वर्ष 2020 का यह चुनाव इस मायने में भी हमेशा याद किया जाएगा कि अंतिम परिणाम आने तक एनडीए और महागठबंधन दोनों के नेताओं की सांसें अटकी थीं।
यह विधानसभा काफी उठापटक वाली भी रही। इसके पांच वर्षों में दो बार एनडीए की तो एक बार महागठबंधन की सरकार बनी। हालांकि तीनों सरकारों का नेतृत्व नीतीश कुमार ने ही किया। सरकार में जदयू के साझीदार बदलते रहे। राजद 75 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बना, जबकि भाजपा को उससे केवल एक सीट कम 74 आई। जदयू केवल 43 सीट जीत पाया।
इस चुनाव में तीन गठबंधन मैदान में थे। एनडीए में भाजपा, जदयू, वीआईपी और हम (से) तो महागठबंधन में राजद, कांग्रेस, माले, सीपीआई और सीपीएम थी। तीसरा गठबंधन उपेन्द्र कुशवाहा के नेतृत्व में ग्रांड डेमोक्रेटिक सेक्यूलर फ्रंट में रालोसपा, बसपा, एआईएमआईएम, एसजेडीडी और जेपीएस शामिल थी। एनडीए को 125 सीटें आईं, जबकि महागठबंधन को 110 सीटें मिलीं।
तीसरे फ्रंट को केवल छह सीटों से संतोष करना पड़ा। इनमें भी एआईएमआईएम की ही पांच सीटें थीं। एक सीट बसपा को मिली। बसपा से जीते जमा खान बाद में जदयू में शामिल हो गए। उधर, अकेले चुनाव लड़ रही लोजपा के भी एक ही विधायक जीत पाए। वह भी जदयू में चले गये। एक सीट पर निर्दलीय की जीत हुई।
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के आग्रह पर सीएम बने नीतीश
चुनाव में चिराग पासवान ने जदयू को जबरदस्त झटका दिया। नीतीश कुमार से नाराज चल रहे चिराग ने चुनाव में अकेले ही मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया। राष्ट्रीय स्तर पर एनडीए का हिस्सा होने के बावजूद 134 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, इनमें सर्वाधिक उम्मीदवार जदयू के ही खिलाफ थे। उनके कारण लगभग तीन दर्जन सीटों पर जदयू को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा था। यही नहीं, नाराज उपेन्द्र कुशवाहा ने भी जदयू को नुकसान पहुंचाया। उनके उम्मीदवारों के कारण जदयू को कम से कम 10 सीटों पर हार झेलनी पड़ी।
राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा भी चली कि चिराग को कई बड़े भाजपा नेताओं का समर्थन था। हालांकि भाजपा लगातार खंडन करती रही। चुनाव परिणाम के बाद नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री बनने से इनकार कर दिया, पर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के अनुरोध पर उन्होंने सीएम बनना स्वीकार किया। सरकार बनी, लेकिन उपमुख्यमंत्री के रूप में भाजपा ने नए चेहरे को सामने किया। तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी को उपमुख्यमंत्री बनाया गया, जबकि तेजस्वी यादव विपक्ष के नेता बने रहे।
बिहार सहित पूरा देश जब वैश्विक महामारी कोरोना की चपेट में था तब 2020 में बिहार में विधानसभा चुनाव हुआ। चुनाव आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के साथ कोरोना से बचाव को लेकर भी काफी जद्दोजहद करनी पड़ी। बिहार में पहली बार मतदाताओं के लिए 1 लाख से अधिक मतदान केंद्र बनाए गए, ताकि संक्रमण का प्रसार तेज नहीं हो। इस चुनाव में 7 करोड़ 36 लाख मतदाताओं के लिए औसतन 691 मतदाताओं पर प्रति बूथ बना। वहीं इस चुनाव में बिजेंद्र प्रसाद यादव, विजय कुमार चौधरी, तेजस्वी प्रसाद यादव, तेजप्रताप यादव, विनय बिहारी, उमाकांत सिंह, वीरेंद्र प्रसाद गुप्ता, राणा रणधीर आदि ने जीत हासिल की।
दो बार बदला घटनाक्रम
नीतीश इस सरकार को लेकर शुरू से ही असहज थे। भाजपा के कई नेता सरकार के खिलाफ बयानबाजी कर रहे थे। उनके निशाने पर नीतीश ही थे। इससे उनकी भाजपा से दूरी बढ़ने लगी। इसी बीच अगस्त 2022 में घटनाक्रम तेजी से बदला। नीतीश ने एनडीए से अलग होने का फैसला कर लिया। वे एक बार फिर से महागठबंधन में शामिल हो गए और उनके नेतृत्व में नई सरकार बनी। राजद-कांग्रेस सरकार में सीधे शामिल हुई, जबकि वाम पार्टियों ने बाहर से समर्थन किया। तेजस्वी उपमुख्यमंत्री बने। वहीं, भाजपा विपक्ष में पहुंच गयी। पार्टी ने विजय कुमार सिन्हा को विपक्ष का नेता बना दिया।
मगर 17 माह में ही नीतीश महागठबंधन में असहज महसूस करने लगे। जनवरी 2024 आते-आते स्थितियां फिर से बदलने लगीं। नीतीश फिर से एनडीए में वापस लौट आए। चुनाव के बाद जिस प्रकार एनडीए की सरकार बनी थी, फिर से वैसी ही सरकार बन गयी। मगर भाजपा ने चेहरा फिर बदल दिया। उपमुख्यमंत्री के पद पर पार्टी ने सम्राट चौधरी को आगे किया। उन्हें सरकार में नंबर दो की पोजीशन दी। विजय सिन्हा भी उपमुख्यमंत्री बने। तेजस्वी विपक्ष के नेता बने। उधर, नीतीश कुमार ने कहा कि एनडीए से ही उनका स्वाभाविक गठबंधन है। वहीं वे सहज हैं। वे तो कुछ सहयोगियों के दबाव में उधर गए थे, अब एनडीए में ही रहेंगे। सूबे में फिलहाल नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए सरकार है।
चुनाव ऐतिहासिक और अविस्मरणीय: सिद्दीकी
राजद के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी कहते हैं कि 2020 का विधानसभा चुनाव ऐतिहासिक और अविस्मरणीय है। इस चुनाव का परिणाम यह साबित करने के लिए काफी था कि लालू प्रसाद बिहार के सबसे लोकप्रिय चेहरा हैं। यही नहीं, राज्य की जनता मन से महागठबंधन के प्रति सकारात्मक थी। चुनाव में एनडीए और महागठबंधन में कांटे की टक्कर हुई। यह अलग बात है कि एनडीए ने इसमें मामूली बढ़त बनाई, लेकिन राजद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। इस चुनाव ने तेजस्वी यादव के व्यक्तित्व को भी बड़ा आकार दिया और वह बड़े नेता के रूप में स्थापित हुए। 2020 का चुनाव बिहार के लिए टर्निंग प्वाइंट भी माना जाएगा।
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