
नई दिल्ली: बीजेपी (BJP) इस बार 20 साल की एंटी इनकंबेसी लहर को खत्म कर सत्ता में धमाकेदार वापसी करना चाहती है. रणनीतिकारों का मानना है कि केंद्रीय मंत्री और सांसद (Union Minister and Member of Parliament) अगर सीधे विधानसभा की लड़ाई में उतरते हैं तो न सिर्फ़ उस सीट पर जीत सुनिश्चित होगी, बल्कि आसपास की सीटों पर भी उसका असर दिखेगा. इससे जातीय और क्षेत्रीय समीकरण दोनों ही पार्टी के पक्ष में जा सकते हैं. गुजरात में बीजेपी ने सरकार बदलने से लेकर 45 विधायकों के टिकट काटे थे. वहीं मध्य प्रदेश में सत्ता बचाने के लिए 7 सांसदों और कई केंद्रीय मंत्रियों को उम्मीदवार बनाया गया था. राजस्थान में भी यही फॉर्मूला अपनाया गया और नतीजे पार्टी के पक्ष में आए. अब बिहार में भी यही रणनीति दोहराई जा सकती है.
सूत्रों का कहना है कि गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, कोयला राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे, सांसद संजय जायसवाल, प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे, पूर्व मंत्री शाहनवाज़ हुसैन, राजीव प्रताप रूडी, रामकृपाल यादव और सुशील सिंह के नाम पर पार्टी विचार कर रही है. हालांकि आधिकारिक तौर पर पार्टी नेताओं का कहना है कि फैसला केंद्रीय चुनाव समिति ही करेगी.
2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 74 सीटें जीती थीं और इनमें 22 विधायक मंत्री बनाए गए थे. लेकिन इस बार कई सीटों पर एंटी इनकंबेसी साफ़ दिखाई दे रही है. यही वजह है कि बीजेपी अब मोदी के “टिकट कटवा फॉर्मूले” को अपनाने की तैयारी में है और बड़े पैमाने पर नए चेहरों को मौका दिया जा सकता है. हालांकि सहयोगी जेडीयू का मानना है कि सत्ता विरोधी लहर जैसी कोई बात नहीं है. जेडीयू प्रवक्ता कहते हैं कि बीजेपी का यह फॉर्मूला गठबंधन के लिए परेशानी खड़ी नहीं करेगा.
अब बड़ा सवाल ये है कि गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान वाला फॉर्मूला बिहार में कितना कारगर होगा. सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी 5 अक्टूबर को प्रत्याशियों की पहली सूची पर विचार कर सकती है. इसके लिए दिल्ली में बड़ी बैठक बुलाए जाने की संभावना है, जिसमें इस रणनीति पर अंतिम मुहर लग सकती है.
©2025 Agnibaan , All Rights Reserved