
नई दिल्ली । प्रधानमंत्री(Prime Minister), मुख्यमंत्रियों(Chief Ministers) और मंत्रियों के 30 दिन तक हिरासत(custody) में रहने के बाद उन्हें पद से हटाने का प्रावधान करने वाले तीन विवादित विधेयकों पर विचार के लिए गठित संयुक्त संसदीय समिति (JPC) में शामिल होने के मुद्दे पर विपक्षी इंडिया गठबंधन में फूट पड़ गई है। विपक्षी गठबंधन बिहार चुनाव से पहले ही भाजपा के इस दांव पर दो खेमों में बंट गया है। कांग्रेस जहां, इस समिति में शामिल होने को इच्छुक दिख रही है, वहीं उसके दो प्रमुख सहयोगी दल ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने JPC में शामिल होने से इनकार कर दिया है।
तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने रविवार को कहा कि इस मुद्दे पर गठित जेपीसी ‘‘बेमतलब’’ है। उन्होंने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा कि कई दल सरकार के संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) बनाने के हथकंडे की आलोचना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जेपीसी बेमतलब है और यह एक तमाशा है। एक सूत्र ने बताया कि समाजवादी पार्टी द्वारा भी इस समिति में किसी सदस्य को नामित किए जाने की संभावना नहीं है। उद्धव ठाकरे की शिवसेना भी इस बात पर मंथन कर रही है कि JPC में शामिल नहीं हुआ जाए।
असली उद्देश्य विपक्षी सरकारों को गिराना: AAP
कुछ दिनों पहले तक इंडिया गठबंधन में शामिल रहे ‘आप’ के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने कहा कि उनकी पार्टी ने जेपीसी में किसी भी सदस्य को नामित नहीं करने का फैसला किया है। सिंह ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘भ्रष्टाचारियों के सरदार भ्रष्टाचार के खिलाफ विधेयक कैसे ला सकते हैं? नेताओं को फर्जी मामले में फंसाना और जेल में डालना, सरकारों को गिराना इस विधेयक का उदेश्य है। इसीलिए अरविंद केजरीवाल जी और आम आदमी पार्टी ने जेपीसी में शामिल न होने का फैसला लिया है।’’ आप ने आरोप लगाया कि इन विधेयकों का असली उद्देश्य विपक्षी सरकारों को गिराना है।
एक हफ्ते के अंदर ही विपक्ष विभाजित
बड़ी बात यह है कि इंडिया गठबंधन के अंदर यह विभाजन एक हफ्ते से भी कम समय के अंदर आया है क्योंकि पिछले हफ्ते जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इन विधेयकों को लोकसभा में पेश किया था, तब एकजुट होकर पूरे विपक्ष ने इसका विरोध किया था लेकिन अब जेपीसी के दांव पर विपक्षी खेमा बंट गया है। समझा जाता है कि कांग्रेस नेतृत्व इस समिति में शामिल होने के पक्ष में है क्योंकि उसे लगता है कि जेपीसी की जाँच के दौरान पार्टी और विपक्ष की आलोचना दर्ज कराना जरूरी है।
कौन-कौन से दल कांग्रेस के साथ?
ईटी की रिपोर्ट के मुताबिक, हालांकि वामपंथी दल जेपीसी में शामिल होने के पक्ष में नजर आ रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि कांग्रेस नेता डीएमके, एनसीपी, आरजेडी और जेएमएम जैसे अन्य क्षेत्रीय सहयोगी दलों से भी बात करके उन्हें भी संयुक्त संसदीय समिति में शामिल करने की कोशिश कर रही है क्योंकि पार्टी को डर है कि विपक्ष द्वारा जेपीसी का बहिष्कार करने से कार्यवाही एकतरफ़ा हो सकती है। कांग्रेस नेताओं का यह भी मानना है कि अगर बीजेडी, वाईएसआरसीपी और बीआरएस जैसे तथाकथित तटस्थ दल इस समिति में शामिल होते हैं, तो वे समिति में विपक्ष की अनुपस्थिति का फायदा उठाकर विपक्ष के रूप में अपने विचार रखेंगे।
बता दें कि केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक 2025, संविधान (एक सौ तीसवां संशोधन) विधेयक 2025 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025 बुधवार को लोकसभा में पेश किए गए थे। उसके बाद इन्हें संसद की एक संयुक्त समिति को भेज दिया गया है।
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