
नई दिल्ली । इजरायल (Israel) की सरकार ने रविवार को एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए भारत (India) के पूर्वोत्तर क्षेत्र में रहने वाले सभी 5800 यहूदियों (jews) को इजरायल लाने की योजना को मंजूरी दे दी है। इन यहूदियों को आमतौर पर ‘बेनी मेनाशे’ (Bnei Menashe) कहा जाता है। यह ‘अलियाह’ यानी यहूदी पलायन की सबसे बड़ी पहलों में से एक होगी, जो अगले पांच वर्षों में पूरी होगी। ऐसा कहा जा रहा है कि 2700 वर्षों की लंबी प्रतीक्षा के बाद यह समुदाय अपनी ‘जन्मभूमि’ की ओर लौटेगा। यह एक ऐसी यात्रा है जो बाइबिल की कथाओं से लेकर आधुनिक भू-राजनीति तक फैली हुई है।
2.7 करोड़ डॉलर के विशेष बजट की आवश्यकता
इजरायल की ‘जुइश एजेंसी’ ने कहा कि सरकार ने पूर्वोत्तर भारत से बेनी मेनाशे समुदाय के आव्रजन को पूरा करने के लिए एक महत्वपूर्ण, व्यापक पहल को रविवार को मंजूरी दे दी। एजेंसी ने कहा- इस ऐतिहासिक निर्णय से 2030 तक समुदाय के लगभग 5800 सदस्य इजरायल आएंगे। इनमें से 1200 सदस्यों को 2026 में लाने के लिए स्वीकृत मिल गई है।
यह पहली बार होगा कि ‘जुइश एजेंसी’ पूर्व-आव्रजन प्रक्रिया का नेतृत्व करेगी। इस योजना के लिए अनुमानतः 9 करोड़ शेकेल (2.7 करोड़ अमेरिकी डॉलर) के विशेष बजट की आवश्यकता होगी, जिससे इन आप्रवासियों की उड़ानों, धर्म संबंधी शिक्षाओं, आवास, हिब्रू पाठ और अन्य चीजों को कवर किया जा सके। इसे आव्रजन एवं एकीकरण मंत्री ओफिर सोफर ने मंत्रिमंडल के समक्ष प्रस्तुत किया। आगामी दिनों में रब्बियों (धार्मिक नेताओं) का एक प्रतिनिधिमंडल भारत के लिए रवाना होने की संभावना है।
बेनी मेनाशे के यहूदी होने को लेकर गहन चर्चा
घोषणा में कहा गया है- यह अब तक का सबसे बड़ा प्रतिनिधिमंडल होगा और एक दशक से भी ज्यादा समय में पहला प्रतिनिधिमंडल होगा। यह प्रतिनिधिमंडल समुदाय के लगभग 3,000 बेनी मेनाशे लोगों का इंटरव्यू करेगा, जिनके इजरायल में रिश्तेदार हैं। अतीत में बेनी मेनाशे के यहूदी होने को लेकर गहन चर्चा हुई, लेकिन 2005 में सेपहार्डी समुदाय के तत्कालीन मुख्य रब्बी श्लोमो अमर ने उन्हें इजरायल का वंशज के रूप में मान्यता दी, जिससे उनके इजरायल में प्रवास का मार्ग प्रशस्त हुआ।
समुदाय का दावा है कि वे मेनाशे जनजाति से संबंधित हैं, जो लगभग 2,700 साल पहले असीरियाई द्वारा निर्वासित किए गए दस कबीलों में से एक है। समुदाय के लगभग 2500 सदस्य पहले ही इजरायल में बस चुके हैं। स्थानीय मीडिया की खबरों के अनुसार, समुदाय के अधिकतर युवा इजराइली रक्षा बलों की लड़ाकू इकाइयों में सेवारत हैं। ‘जुइश एजेंसी’ इजरायल आधारित अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो अलियाह को मुख्य मूल्य के रूप में आगे बढ़ाकर इजरायल और दुनिया भर के यहूदी लोगों को मजबूत करने के लिए सामूहिक रूप से कार्य करता है।
प्राचीन जड़ें, आधुनिक संघर्ष
बेनी मेनाशे समुदाय भारत के मणिपुर और मिजोरम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में बिखरा हुआ है। यह खुद को हिब्रू बाइबिल के ‘खोए हुए दस कबीले’ में से मनश्शे कबीले का वंशज मानता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, लगभग 2700 वर्ष पूर्व जब असीरियन साम्राज्य ने उत्तरी इजरायल पर आक्रमण किया, तो ये कबीले बिखर गए। सदियों की यात्रा के बाद वे एशिया के इस कोने तक पहुंचे, जहां उन्होंने स्थानीय संस्कृति के साथ घुलमिलकर अपनी परंपराओं को संजोया। समुदाय के बुजुर्गों की मौखिक परंपराओं में यहूदी रीति-रिवाजों की झलक मिलती है- सुखोत जैसे त्योहार मनाना, साप्ताहिक सब्बाथ का पालन, और यहां तक कि कोशर भोजन की प्रथाएं। 1950 के दशक में ईसाई मिशनरियों के प्रभाव से कई सदस्य ईसाई बन गए, लेकिन 1980 के दशक में एक आध्यात्मिक जागरण हुआ। तब से वे फिर से यहूदी धर्म की ओर लौटे और इजरायल के मुख्य रब्बीनेट से मान्यता प्राप्त की। आज उनके गांवों में सिनागॉग (यहूदी प्रार्थना स्थल) खड़े हैं, जो उनकी दृढ़ आस्था का प्रतीक हैं। पिछले दो दशकों में लगभग 4000 सदस्यों ने इजरायल की ओर रुख किया है।
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