
नई दिल्ली। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) (Confederation of All India Traders (CAIT)) ने प्रस्तावित ई-कॉमर्स नियमों (Proposed e-commerce rules) के क्रियान्वयन को पटरी से उतारने के किसी भी कदम का सख्त विरोध करेगा। कैट ने सोमवार को उपभोक्ता मामलों की सचिव लीला नंदन को भेजे गए पत्र में यह बात कही है।
कारोबारी संगठन ने उपभोक्ता मामलों की सचिव को अगाह करते हुए लिखे गए पत्र में कहा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत प्रस्तावित ई-कॉमर्स नियमों के क्रियान्वयन को पटरी से उतारने के प्रयास का देशभर के व्यापारिक समुदाय कड़ा और पुरजोर विरोध करेगा।
गौरतलब है कि भारतीय ई-कॉमर्स व्यवसाय को बड़ी और वैश्विक ई-कॉमर्स कंपनियों के चंगुल से मुक्त करने के लिए व्यापारियों को उत्सुकता से नियमों के क्रियान्वयन का इंतजार है, जो कि भारत में तटस्थ ई-कॉमर्स परिदृश्य प्रदान करेगा।
कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने स्पष्ट किया कि यह संदेश यह याद दिलाने के लिए दिया गया है कि अतीत में जब भी सरकार ने ई-कॉमर्स व्यवसायों को विनियमित करने का प्रयास किया है, तब कुछ निहित ई-टेलर्स ने अप्रासंगिक और मनगढ़ंत तर्कों के जरिए उसे छिपाने का प्रयास किया है, जिनका कोई आधार नहीं है।
खंडेलवाल ने कहा कि ऐसा करके उन्होंने विभिन्न सरकारी विभागों और नौकरशाहों के मन में भ्रम पैदा करने की कोशिश की है, ताकि वे उपभोक्ताओं और जनता के लाभ के लिए ई-कॉमर्स को विनियमित करने के अपने प्रयासों को रद्द करने के लिए मजबूर हों और दुर्भाग्य से उन प्रयासों को विफल कर दिया गया।
कैट महामंत्री ने कहा कि इस मौजूदा हालात से हम चिंतित हैं और इसलिए यह सुनिश्चित करते हुए कि इस बार ऐसा कोई प्रयास नहीं किया जायगा, ई-कॉमर्स नियमों को बिना किसी देरी के तुरंत लागू किया जाना चाहिए। क्योंकि देशभर में एक लाख से अधिक दुकानों को बड़े ई-टेलर्स के कदाचार के कारण बंद कर दिया गया है, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर बेरोजगारी पैदा हुई है।
उन्होंने कहा कि भारत के व्यापारियों को अपनी नाराजगी और असंतोष व्यक्त करने और किसी भी कार्रवाई की मांग का अधिकार सुरक्षित है। खंडेलवाल ने कहा कि ई-कॉमर्स नियमों को कमजोर करने से देशभर में एक गलत संदेश जाएगा कि भारत सरकार और नौकरशाही दोनों ही देश के छोटे व्यवसायों की कीमत पर बड़ी कंपनियों के दबाव के आगे झुक गए हैं। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “आत्मनिर्भर भारत” की दृष्टि के लिए एक प्रतिकूल कदम होगा। इसलिए अब समय आ गया है, जब भारत के ई-कॉमर्स व्यापार को तटस्थ बनाया जाना चाहिए और बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों के चंगुल से भी मुक्त किया जाना चाहिए। (एजेंसी, हि.स.)
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