
इंदौर। शहर में नाबालिग लड़कियों द्वारा बच्चों को जन्म देने के मामले चिंता का विषय बनते जा रहे हैं। बीते कुछ महीनों से यह घटनाएं तेजी से सामने आ रही हैं। पिछले महीने जहां तीन नवजात शिशुओं को सरेंडर किया गया था, वहीं इस माह भी एक और बच्चा सरेंडर किया जा चुका है। इस तरह लगातार हो रही घटनाएं न सिर्फ समाज की संवेदनशीलता पर सवाल खड़े कर रही हैं, बल्कि यह स्थिति पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर जागरूकता की गंभीर कमी की ओर इशारा कर रही है।
विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इंदौर शहर में नाबालिग बच्चियों के शोषण की घटनाएं जहां बढ़ी हैं, वहीं लिव इन रिलेशनशिप जैसे प्रकरण भी सामने आ रहे हैं। 12 से 14 साल तक की नाबालिगों द्वारा बच्चों को जन्म देने के प्रकरण सामने आ चुके हैं। बाल कल्याण समिति के समक्ष हर दिन इस तरह के प्रकरण पेश किए जा रहे हैं। कई बार किशोरियों के साथ होने वाली घटनाओं पर परिवार द्वारा समय रहते ध्यान नहीं दिया जाता और परिवार संवाद की कमी और दबाव के कारण बच्चियों को सही मार्गदर्शन नहीं मिल पाता है।
यही वजह है कि परिस्थितियां बिगड़ती हैं और नाबालिग मां बनने को मजबूर हो रही हैं। लिव इन रिलेशनशिप के साथ-साथ शोषण के प्रकरण देर से सामने आ रहे हैं। बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश हुए इन मामलों की जानकारी मिलने पर नवजात शिशुओं को चाइल्ड लाइन और बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के सुपुर्द किया जाता है। बाद में बच्चों को शेल्टर होम में रखकर उनकी देखरेख और भविष्य की जिम्मेदारी तय की जाती है। अधिकारियों का कहना है कि परिजन अकसर सामाजिक बदनामी के डर से मामले छिपाते हैं और अंतत: बच्चे को सरेंडर करने का विकल्प चुनते हैं। हालांकि नवजातों को कानूनी कार्रवाई के बाद लीगल फ्री घोषित कर नि:संतान दंपतियों को गोद दिया जाता है।
जागरूकता की विशेष जरूरत
बाल संरक्षण से जुड़े संगठनों का मानना है कि इस बढ़ते खतरे को रोकने के लिए स्कूल और कॉलेज स्तर पर काउंसलिंग, हेल्थ एजुकेशन और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूरी है। साथ ही परिवारों को भी बच्चों के साथ खुला संवाद रखने की आवश्यकता है। प्रशासन का कहना है कि सरेंडर किए गए बच्चों को पूरी सुरक्षा और देखभाल दी जा रही है। हालांकि असली चुनौती ऐसे मामलों की रोकथाम करना है, ताकि नाबालिग बच्चियों का भविष्य अंधकारमय न हो।
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