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जातिगत आरक्षण, भाषा विवाद और PM-CM को हटाने वाला बिल, जानें RSS प्रमुख मोहन भागवत के संबोधन की बड़ी बातें

August 29, 2025

नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख (chief) मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने संघ के शताब्दी वर्ष के मौके पर दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में कई मुद्दों पर अपने विचार रखे. इस दौरान उन्होंने पत्रकारों के द्वारा पूछे गए कई सवालों पर जवाब दिया. उन्होंने कहा कि संघ और बीजेपी अपने-अपने क्षेत्र में स्वतंत्र हैं.

मोहन भागवत ने अपने बयान में साफ और पारदर्शी नेतृत्व की जरूरत पर जोर दिया. तीन बच्चों वाले परिवार को देशहित में उचित बताया. शहरों के नाम आक्रमणकारियों पर न रखने की बात कही. जातिगत आरक्षण को संवैधानिक समर्थन बताया.


संघ प्रमुख ने कहा कि भारत की सभी भाषाएं राष्ट्रभाषाएं हैं, संस्कृत का अध्ययन जरूरी है और तकनीक का बुद्धिमानी से उपयोग होना चाहिए. इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि संघ कभी हिंसा नहीं करता. महिलाओं की भी महत्वपूर्ण भूमिका है. इस्लाम भारत का हिस्सा है और घुसपैठ रोकना जरूरी है.

मोहन भागवत के बयान की बड़ी बातें…
“ये हो ही नहीं सकता कि सब कुछ संघ तय करता है. मैं 50 साल से शाखा चला रहा हूं. वो कई साल से राज्य चला रहे हैं. मेरी विशेषज्ञता वो जानते हैं, उनकी मैं जानता हूं. इस मामले में सलाह तो दी जा सकती है, लेकिन फैसला उस फील्ड में उनका है और इस फील्ड में हमारा है. इसलिए हम तय नहीं करते हैं. हम तय करते तो इतना समय लगता क्या? हम तय नहीं करते हैं.”

पिछले दिनों संसद में पास हुए ‘CM, PM के जेल में रहने पर पदमुक्त’ किए जाने से जुड़े बिल से जुड़े सवाल पर मोहन भागवत ने कहा, “हमारा नेतृत्व साफ और पारदर्शी होना चाहिए. मैं समझता हूं इसमें सब सहमत हैं, संघ की भी वही सहमति है. कानून ऐसा होगा या नहीं इस पर बहस चल रही है, संसद जैसा तय करेगी, वैसा होगा. इसका परिणाम यह होना चाहिए कि सबके मन में यह विश्वास होना चाहिए कि हमारा नेतृत्व स्वच्छ और पारदर्शी है.”

‘संघ के विरोधी दलों में परिवर्तन की कितनी उम्मीद?’ इस सवाल पर जवाब देते हुए मोहन भागवत ने कहा, “साल 1948 में जलती मशाल लेकर जयप्रकाश बाबू संघ का कार्यालय जलाने चले थे. उन्होंने ही इमरजेंसी के बाद कहा कि परिवर्तन की उम्मीद आप लोगों से ही है.”

“समाज के व्यवहार में परिवर्तन व्यक्तिगत परिवर्तन से ही मुमकिन है. पहले समाज बदले, फिर व्यवस्थाएं सुधरें. हिंदुस्तान एक हिंदू राष्ट्र है. संघ में केवल यही तीन विचार अपरिवर्तनीय हैं.”

“पर्याप्त जनसंख्या के लिए परिवार में तीन बच्चे होने चाहिए. अगर तीन बच्चे होते हैं, तो माता-पिता और बच्चों सभी का स्वास्थ्य ठीक रहता है. देश के नजरिए से तीन बच्चे ठीक हैं. तीन से बहुत ज्यादा आगे बढ़ने की जरूरत नहीं है.”

भारत में पिछले कुछ साल से देश में शुरू हुई ‘शहरों के नाम बदलने की राजनीति’ पर मोहन भागवत ने कहा, “आक्रमणकारियों के नाम पर शहरों और रास्तों के नाम नहीं होने चाहिए. मैंने मुस्लिम के नाम न हो ऐसा नहीं कहा. वीर अब्दुल हमीद और अब्दुल कलाम के नाम पर होने चाहिए. आक्रांताओं के नाम नहीं होने चाहिए.”

“हमको जितनी प्रेरणा राम प्रसाद बिस्मिल से मिलती है, उतनी ही अशफाक उल्ला खान से मिलती है.”

“राम मंदिर एकमात्र ऐसा आंदोलन था, जिसका संघ ने समर्थन किया था. संघ काशी और मथुरा के स्थलों के पुनरुद्धार सहित ऐसे किसी भी अन्य आंदोलन का समर्थन नहीं करेगा. आरएसएस के स्वयंसेवक ऐसे आंदोलनों में शामिल होने के लिए आज़ाद हैं.”

“जातिगत आरक्षण पर संवेदना से विचार किया जाना चाहिए. दीनदयाल जी ने एक नजरिया दिया है, जो नीचे है उसे ऊपर आने के लिए हाथ उठाकर कोशिश करनी चाहिए, और ऊपर जो है उसे हाथ पकड़ कर ऊपर खींचना चाहिए. संविधान सम्मत आरक्षण को संघ का समर्थन है.”

“हमारा हर सरकार, राज्य सरकारों और केंद्र सरकारों, दोनों के साथ अच्छा रिश्ता है, लेकिन कुछ व्यवस्थाएं ऐसी भी हैं, जिनमें कुछ आंतरिक विरोधाभास हैं. कुल मिलाकर व्यवस्था वही है, जिसका आविष्कार अंग्रेजों ने शासन करने के लिए किया था. इसलिए, हमें कुछ नवाचार करने होंगे.”

“भारत की सभी भाषाएं राष्ट्र भाषाएं हैं. व्यवहार के लिए संपर्क के लिए एक भारतीय भाषा होनी चाहिए, वह विदेशी ना हो. भाषा को लेकर विवाद नहीं करना चाहिए.”

“हर भाषा में एक लंबी और अच्छी परंपरा है, वो सीखना चाहिए. इसकी शिक्षा मिशनरी स्कूलों और मदरसा हर जगह मिलनी चाहिए. मैं आठवीं के क्लास में था, तब पिता जी ने मुझे ऑलीवर ट्विस्ट पढ़ाया. कई इंग्लिश नॉवेल्स मैं पढ़ चुका हूं, इससे मेरे हिंदुत्व प्रेम में अंतर नहीं आया. लेकिन हमने ऑलीवर ट्विस्ट पढ़ा और प्रेमचंद की कहानियां छोड़ दीं, ये अच्छा नहीं है.”

“शिक्षा की मुख्यधारा को गुरुकुल प्रणाली से जोड़ा जाना चाहिए. खुद को और अपने ज्ञान, परंपरा को समझने के लिए संस्कृत का बुनियादी ज्ञान जरूरी है. इसे जरूरी बनाने की जरूरत नहीं है लेकिन, भारत को सही अर्थों में समझने के लिए संस्कृत का अध्ययन जरूरी है. अगर भारत को जानना है, तो संस्कृत भाषा की समझ बहुत जरूरी है.”

“नई शिक्षा नीति में पंचकोशीय शिक्षा का तत्व मान्य किया है, उसमें सभी कोशों का विकास यानी कला, क्रीडा, योगा सब है. धीरे-धीरे विकसित करना होगा. हर शख्स को कला आनी चाहिए. अच्छा गाना सबको समझ में आना चाहिए, कान को पकड़ में आना चाहिए, बुद्धि को भले नहीं समझ आता है. लेकिन इसे भी अनिवार्य नहीं करना है क्योंकि अनिवार्य करने पर प्रतिक्रिया होती है.”

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