
नई दिल्ली। केंद्र सरकार (Central government) ने एक पहल की है, जिसके जरिए जमीन मालिकों (Land owners) को एक स्वामित्व कार्ड (SVAMITVA Card) दिया जा रहा है। इसकी मदद से बैंकों से लोन लेना आसान हो जाएगा। इस कार्ड में लोगों की जमीन से जुड़ी सारी जानकारी डिजिटल तरीके से स्टोर (Stored digitally) होती है। पंचायती राज मंत्रालय (Ministry of Panchayati Raj) ने बुधवार को बताया कि SVAMITVA योजना के तहत 1.37 लाख करोड़ रुपये की ग्रामीण आवासीय संपत्तियों को कर्ज प्राप्त करने के लिए मोनेटाइज किया जा सकता है। यह योजना ड्रोन आधारित सर्वेक्षण द्वारा ग्रामीण आबादी क्षेत्रों में संपत्तियों को सीमांकित करने के लिए लागू की गई है।
मंत्रालय ने आगे कहा कि पहले कई राज्यों में गांवों के आवासीय क्षेत्रों का मानचित्र नहीं था। इसके कारण बैंकों से आसानी से लोन नहीं मिलता था। नए प्रयास के बाद, कई संपत्ति मालिकों ने अपनी संपत्ति कार्ड के माध्यम से बैंक ऋण प्राप्त किए हैं। इस कार्ड की अब कानूनी वैधता है।
SVAMITVA योजना का शुभारंभ 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक प्रगति लाना था। अब तक लगभग 3,17,000 गांवों का सर्वेक्षण किया जा चुका है। कुल 3,44,000 गांवों का लक्ष्य रखा गया है। 1,36,000 गांवों में लोगों को उनके संपत्ति कार्ड मिल चुके हैं। 27 दिसंबर को प्रधानमंत्री मोदी भारत भर में 50 लाख संपत्ति कार्डों का वितरण करेंगे।
पंचायती राज मंत्रालय के सचिव विवेक भारद्वाज ने कहा, “पेरूवियन अर्थशास्त्री हर्नांडो डी सोटो ने कहा था कि विकासशील देशों में पूंजीवाद काम नहीं करता क्योंकि भूमि का स्वामित्व स्पष्ट नहीं होता। इसे विस्तार से समझें तो SVAMITVA योजना ग्रामीण आबादी क्षेत्रों से संबंधित है। यहां लोगों के पास संपत्तियां हैं, लेकिन चूंकि संपत्ति का स्वामित्व स्पष्ट नहीं होता इसलिए लोग बैंक लोन नहीं ले पाते हैं। इसके कारण आर्थिक गतिविधि का अभाव होता है।”
उन्होंने बताया कि इन संपत्तियों का मूल्य 1.37 लाख करोड़ है और यह राशि संबंधित क्षेत्र की न्यूनतम बाजार दरों को ध्यान में रखते हुए तय किए गए हैं। वास्तविक मूल्य इससे कहीं अधिक हो सकता है।
मंत्रालय के अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि इस सर्वेक्षण में शहरी क्षेत्रों और कृषि भूमि का सर्वेक्षण शामिल नहीं है, क्योंकि इन दोनों श्रेणियों में संपत्ति के स्वामित्व के रिकॉर्ड उपलब्ध हैं। मंत्रालय ने आगे कहा कि इस गति को देखते हुए योजना का उद्देश्य वित्तीय वर्ष 2026 तक पूरे सर्वेक्षण को पूरा करना है।
आपको बता दें कि यह योजना पंचायती राज पर संसद की स्थायी समिति के आलोचना का शिकार भी हुई है। समिति ने 12 दिसंबर को लोकसभा में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में आदिवासी समाजों में योजना के कार्यान्वयन पर कई चिंताएं उठाई हैं। समिति ने कहा, “समिति ने यह भी देखा कि ग्रामीण क्षेत्रों में संयुक्त या अविभाजित परिवारों और आदिवासी समाजों द्वारा सामान्य या सामुदायिक भूमि स्वामित्व के कारण संपत्ति के शीर्षक में कई जटिलताएं हैं। इन मुद्दों को सरकार को समर्पित सोच और कानूनी ढांचे के भीतर समाधान करना चाहिए।”
भारद्वाज ने कहा कि झारखंड जैसे राज्य इस योजना को लागू करने के लिए इच्छुक नहीं हैं, जबकि तमिलनाडु, बिहार और ओडिशा पहले ही अपनी ग्रामीण आवासीय भूमि रिकॉर्ड को अपडेट कर चुके हैं इसलिए उन्होंने इस योजना से बाहर रहने का निर्णय लिया है।
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