
गुवाहाटी। असम (Assam) ने बाल विवाह (Child Marriage) के मामलों में सराहनीय कमी दर्ज की है और इस मामले में राष्ट्रीय औसत को भी पीछे छोड़ दिया है। यह जानकारी एक हालिया सर्वे रिपोर्ट में सामने आई है, जो देश के पांच राज्यों में किए गए अध्ययन पर आधारित है। गैर-सरकारी संगठन ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन’ (Just Rights for Children) की पहल ‘सेंटर फॉर लीगल एक्शन एंड बिहेवियर चेंज फॉर चिल्ड्रन’ (C-LAB) ने यह रिपोर्ट तैयार की है।
‘टिपिंग प्वॉइंट टू जीरो: एविडेंस टुवर्ड्स ए चाइल्ड मैरिज फ्री इंडिया’ के शीर्षक वाली यह रिपोर्ट न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के एक साइड इवेंट में जारी की गई। इसमें अप्रैल 2022 से मार्च 2025 तक की स्थिति का आकलन किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक, असम में लड़कियों के बीच बाल विवाह के मामलों में 84 प्रतिशत और लड़कों में 91 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज की गई है। वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर यह गिरावट क्रमशः 69 प्रतिशत और 72 प्रतिशत रही।
पांच राज्यों में बाल विवाह में कमी के मामले में असम के बाद महाराष्ट्र और बिहार का स्थान है, जहां 70 प्रतिशत की गिरावट आई। इनके बाद राजस्थान में 66 प्रतिशत और कर्नाटक में 55 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। रिपोर्ट में कहा गया कि असम की यह सफलता राज्य सरकार की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति, सख्त कानूनी कार्रवाई और केंद्र सरकार व सामाजिक संगठनों के साथ समन्वित प्रयासों का नतीजा है। इसी उपलब्धि को मान्यता देते हुए जेआरसी ने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को ‘चैंपियंस ऑफ चेंज’ अवॉर्ड देने की घोषणा की है।
असम में जेआरसी के आठ साझेदार एनजीओ राज्य के 35 में से 30 जिलों में सक्रिय हैं। सर्वे में शामिल 76 प्रतिशत लोगों का मानना है कि एफआईआर और गिरफ्तारी जैसी कानूनी कार्रवाई बाल विवाह रोकने का सबसे प्रभावी तरीका है। हालांकि, बाल कल्याण समिति और हेल्पलाइन जैसी विशेष तंत्रों की जानकारी लोगों में क्रमशः केवल 31 और 22 प्रतिशत ही पाई गई। रिपोर्ट ने सरकार की योजनाओं को भी गिरावट का श्रेय दिया है। इसमें ‘निजुत मोइना 2.0 योजना’ का जिक्र किया गया है, जो लड़कियों को शिक्षा जारी रखने के लिए आर्थिक मदद देती है और जल्दी शादी रोकने के लिए प्रोत्साहन बढ़ाती है।
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