वीजिंग। साउथ ईस्ट एशिया (Southeast Asia) में चीन (China) का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। जहां कभी अमेरिका (America) युद्धविराम और शांति समझौतों में प्रमुख भूमिका निभाता था, वहीं अब चीन सक्रियता से आगे आ रहा है। इसका ताजा उदाहरण है थाईलैंड और कंबोडिया के बीच चल रहे सीमा विवाद में बीजिंग की मध्यस्थता। सोमवार को चीन के युन्नान प्रांत में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के साथ हुई त्रिपक्षीय बैठक ने दिखाया कि चीन अब क्षेत्रीय संकटों में मजबूत मध्यस्थ की भूमिका निभाने को तैयार है। यह बैठक हाल ही में हुए युद्धविराम समझौते के ठीक बाद हुई, जिसमें 100 से अधिक लोग मारे गए हैं। चीन की इस पहल से साफ है कि वह एशियाई कूटनीति में अपना दबदबा बढ़ाने के लिए हर संभव कदम उठा रहा है।
शांति की उम्मीद जताई गई
बैठक के दौरान चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और विकास को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त प्रयासों का आह्वान किया। वांग ने कहा कि युद्ध की आग को फिर से भड़कने देना दोनों देशों की जनता की इच्छा नहीं है और न ही चीन ऐसा देखना चाहता है। इसलिए हमें दृढ़ता से आगे बढ़ना चाहिए। वहीं, कंबोडिया के विदेश मंत्री प्राक सोखोन ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि यह युद्धविराम कायम रहेगा और दोनों देशों के लिए मतभेद सुलझाने के लिए पहले से सहमत तरीकों को फिर से शुरू करने का माहौल बनेगा। उन्होंने कहा कि हम अतीत में वापस नहीं जाना चाहते, अर्थात कोई भी इस लड़ाई को दोबारा नहीं देखना चाहता। इसलिए, महत्वपूर्ण है कि युद्धविराम स्थायी हो और इसका सम्मान किया जाए। बैठक के बाद थाई विदेश मंत्री सिहासक ने भी पड़ोसी देशों के साथ शांति की उम्मीद जताई।
मदद करने को तैयार है चीन
बैठक के बाद चीनी आधिकारिक समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने बताया कि तीनों देशों ने युद्धविराम को बिना किसी उलटफेर के आगे बढ़ाने, संवाद बनाए रखने और दोनों दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के बीच संबंधों को चरणबद्ध तरीके से बहाल करने पर सहमति जताई है। तीनों पक्षों ने युद्धविराम बनाए रखने पर गहन विचार-विमर्श किया। अगला महत्वपूर्ण कदम सामान्य आदान-प्रदान को फिर से शुरू करने की दिशा में काम करना है। चीन विस्थापित निवासियों को तत्काल मानवीय सहायता प्रदान करने के लिए तैयार है।
विवाद अभी भी जारी
दक्षिण पूर्व एशिया के इन दोनों देशों ने जुलाई में मूल रूप से युद्धविराम समझौता किया था, जिसकी मध्यस्थता मलेशिया ने की थी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दबाव में हुआ था। ट्रंप ने दोनों देशों को व्यापारिक विशेषाधिकार रोकने की धमकी दी थी। शुरुआती समझौते के बाद अक्टूबर में फिर समझौता हुआ। लेकिन दोनों देशों के बीच दुष्प्रचार जंग जारी रही, जिससे सीमा पर छोटी-मोटी हिंसा होती रही। दिसंबर की शुरुआत में तनाव भड़क उठा और भीषण लड़ाई में बदल गया।
शनिवार को हुए समझौते के अनुसार, युद्धविराम के 72 घंटे पूरे होने के बाद थाईलैंड को जुलाई की लड़ाई के बाद से बंदी बनाए गए 18 कंबोडियाई सैनिकों को वापस भेजना होगा। उनकी रिहाई कंबोडिया की प्रमुख मांग रही है। समझौते में दोनों पक्षों से लैंड माइन बिछाने के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समझौतों का पालन करने का आह्वान किया गया है, जो थाईलैंड के लिए बड़ी चिंता का विषय है। थाई विदेश मंत्री सिहासक ने कहा कि अगर 72 घंटों तक कोई घटना न हो, तो थाईलैंड 18 कंबोडियाई सैनिकों को वापस भेजना शुरू कर देगा। उन्होंने यह भी कहा कि थाईलैंड कंबोडिया से सीमावर्ती शहर पोइपेट में फंसे बाकी थाई नागरिकों की वापसी में सुविधा प्रदान करने का अनुरोध करेगा।
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