
डेस्क: एक ऐसे व्यक्ति के बारे में सोचिए जिसे डॉक्टरों ने कह दिया हो कि वह अब कभी चल नहीं पाएगा. जिसकी दुनिया व्हीलचेयर तक सीमित हो चुकी हो. ऐसे में अगर वह महज 24 घंटे में फिर से खड़ा हो जाए और अपने पैरों से चलने लगे, तो क्या यह किसी चमत्कार से कम होगा?
अब यह सिर्फ कल्पना नहीं, बल्कि मेडिकल साइंस की नई उपलब्धि है. चीन के वैज्ञानिकों ने ब्रेन-स्पाइन इंटरफेस (BSI) तकनीक के जरिए यह असंभव दिखने वाला काम मुमकिन कर दिखाया है. शंघाई के झोंगशान अस्पताल में हुई इस खास सर्जरी के बाद एक लकवाग्रस्त मरीज को फिर से खड़े होने और चलने में सफलता मिली.
यह दुनिया की पहली सर्जरी थी जिसमें पूरी तरह से पैरालिसिस से ग्रसित मरीज को BSI तकनीक की मदद से फिर से चलने का मौका मिला. इससे पहले भी इस तकनीक से तीन और सर्जरी हो चुकी थीं, लेकिन यह सबसे सफल और क्रांतिकारी मानी जा रही है. जब रीढ़ की हड्डी (स्पाइनल कॉर्ड) को कोई गंभीर चोट लगती है, तो मस्तिष्क और शरीर के बीच संपर्क टूट जाता है, जिससे इंसान अपने हाथ-पैर हिलाने में असमर्थ हो जाता है. इसे ठीक करने के लिए फ़ुडान यूनिवर्सिटी और झोंगशान अस्पताल के वैज्ञानिकों ने “न्यूरल ब्रिज” विकसित किया है.
इसमें ब्रेन सिग्नल्स को इकट्ठा और डिकोड किया जाता है. बिजली के छोटे झटके से रीढ़ की हड्डी को दोबारा एक्टिव किया जाता है और फिर मस्तिष्क से शरीर तक टूटी कड़ी को फिर से जोड़ा जाता है. इस पूरे प्रोसेस में माइक्रो-इलेक्ट्रोड चिप्स का इस्तेमाल किया जाता है, जो सिर्फ 1 मिलीमीटर के होते हैं और इन्हें मस्तिष्क के मोटर कॉर्टेक्स में इम्प्लांट किया जाता है.
इस सर्जरी की सबसे खास बात यह है कि यह सिर्फ 4 घंटे में पूरी हो जाती है. इस दौरान मरीज के मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी दोनों पर काम किया जाता है. सर्जरी के 24 घंटे के भीतर ही मरीज ने अपने पैरों को हिलाना शुरू कर दिया. AI की मदद से ब्रेन सिग्नल्स को तुरंत पढ़कर शरीर को प्रतिक्रिया देने में मदद मिली.
तीन साल की मेहनत के बाद वैज्ञानिकों ने ऐसा एल्गोरिदम विकसित किया, जो तुरंत मरीज की हरकत को डिकोड कर सके.इससे पहले जनवरी और फरवरी 2024 में तीन और मरीजों पर इसी तकनीक से सर्जरी की गई थी. मगर वे दो हफ्तों के अंदर अपने पैरों पर चलने में सफल हुए.
BSI तकनीक को लेकर वैज्ञानिकों का कहना है कि इसमें अभी और सुधार किया जाएगा, ताकि यह ज्यादा से ज्यादा मरीजों के लिए कारगर हो सके. इस सर्जरी में शामिल डॉ. जिया फुमिन के अनुसार, “हमारे मरीजों के नतीजे हमारी उम्मीदों से भी बेहतर रहे. यह सिर्फ एक मेडिकल तकनीक की जीत नहीं, बल्कि लकवाग्रस्त मरीजों के लिए नई जिंदगी की शुरुआत है.”
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