
नई दिल्ली । देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस बीआर गवई (Justice BR Gavai) ने आज (गुरुवार, 22 मई को) एक ऐसे व्यक्ति की जमानत अर्जी (Bail application) झटके में मंजूर कर ली, जो पिछले चार साल से जेल (Jail) में बंद था। दरअसल, धोखाधड़ी के एक मामले में, जिसकी जांच सीबीआई कर रही है, लक्ष्य तवर नाम का शख्स आरोपी है। उसने अपनी जमानत के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में अर्जी दी थी लेकिन हाई कोर्ट ने उसकी अर्जी पर 27 बार स्थगन दिया था। इतनी बार स्थगन को देखते ही CJI गवई भड़क गए।
सीजेआई गवई ने हाई कोर्ट के रूख पर व्यथित होकर कहा, “इस मामले में अब तक 27 बार स्थगन हो चुका है। 27 बार। व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों में उच्च न्यायालयों से बार-बार मामले को स्थगित करने की अपेक्षा नहीं की जाती है। याचिकाकर्ता 4 साल से जेल में बंद है। इसलिए उसकी अर्जी स्वीकार की जाती है।”
जमानत याचिका पर सुनवाई 27 बार कैसे स्थगित कर सकते हैं?
सीजेआई गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सवाल किया, ‘‘उच्च न्यायालय व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित मामले में जमानत याचिका पर सुनवाई को 27 बार कैसे स्थगित कर सकता है?’’ इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने तवर की याचिका पर सीबीआई को नोटिस भी जारी किया और कहा कि इस मामले में केवल एक ही मुद्दा बचा था, हाई कोर्ट में मामले का बार-बार स्थगन।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामले में देरी नहीं होनी चाहिए
पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट सामान्यत: किसी मामले की सुनवाई में स्थगन के खिलाफ याचिका पर विचार नहीं करता। सीजेआई ने कहा, ‘‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामले में, उच्च न्यायालय से यह अपेक्षित नहीं है कि वह मामले को लंबित रखे और उसे 27 बार स्थगित करे।’’ हाई कोर्ट ने 20 मार्च को जमानत याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी थी और निचली अदालत को उसकी (आरोपी) याचिका पर पुनर्विचार करने से पहले न्यायिक प्रक्रिया में तेजी लाने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही दो टूक कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों में इस तरह की देरी नहीं होनी चाहिए।
तवर पर क्या आरोप?
तवर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के विभिन्न प्रावधानों के तहत आरोप हैं, जिनमें धारा 419, 420, 467, 468, 471 और 120B शामिल हैं। इसके अतिरिक्त भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1)(डी) और 13(2) के तहत भी आरोप हैं। उच्च न्यायालय ने तवर के व्यापक आपराधिक इतिहास का उल्लेख किया और कहा कि उसके खिलाफ पूर्व में 33 मामले दर्ज हैं। उच्च न्यायालय ने साथ ही सीबीआई को निर्देश दिया था कि वह शिकायतकर्ता संजय कुमार यादव की उपस्थिति सुनिश्चित करे ताकि आगे कोई देरी न हो। उच्च न्यायालय ने आदेश दिया था, ‘‘शिकायतकर्ता का बयान निर्धारित तिथि पर दर्ज किया जाना चाहिए और आरोपी को उसी दिन जिरह का अवसर भी प्रदान किया जाना चाहिए।’’
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