
नई दिल्ली. मुवक्किलों को पेशेवराना कानूनी राय (Legal Opinion) देने पर वकीलों को प्रवर्तन निदेशालय (ED) की ओर से समन किए जाने के मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) सोमवार को मामले की सुनवाई करेगा। मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी। यह ईडी की ओर से वरिष्ठ वकीलों अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को तलब किए जाने के बाद सामने आया। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (एससीएओआरए) ने इस समन की निंदा की और इसे एक परेशान करने वाली प्रवृत्ति बताया जिसने कानूनी पेशे की बुनियाद पर प्रहार किया है। बार निकायों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश से मामले का स्वतः संज्ञान लेने का आग्रह किया था।
हालांकि, ईडी ने 20 जून को अपने जांच अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे मनी लॉन्ड्रिंग की जांच का सामना कर रहे आरोपियों के किसी वकील को समन जारी न करें। साथ ही, यह भी कहा कि यदि किसी वकील को समन करना अनिवार्य लग रहा हो तो इसके लिए पहले ईडी के निदेशक की अनुमति लेनी होगी। ईडी ने अपने क्षेत्रीय कार्यालयों के मार्गदर्शन के लिए एक परिपत्र जारी किया, जिसमें कहा गया है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए), 2023 की धारा 132 का उल्लंघन करने वाले किसी भी वकील को कोई समन जारी नहीं किया जाना चाहिए।
कानूनी पेशा न्याय प्रशासन की प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग
न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस मामले में 25 जून को कहा कि कानूनी पेशा न्याय प्रशासन की प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है और मुवक्किलों को सलाह देने वाले वकीलों को सीधे समन करने की अनुमति यदि पुलिस या जांच एजेंसियों को दी गई तो कानूनी पेशे की स्वायत्तता गंभीर रूप से कमजोर हो जाएगी। यह न्याय प्रशासन की स्वतंत्रता के सामने एक प्रत्यक्ष खतरा होगा। पीठ ने इस मामले में कुछ प्रश्न तैयार किए थे। पीठ ने कहा कि चूंकि यह न्याय प्रशासन पर सीधा प्रभाव डालने वाला मामला है, इसलिए, किसी पेशेवर को, जब वह मामले में वकील हो, पूछताछ के लिए बुलाना प्रथम दृष्टया अस्वीकार्य प्रतीत होता है, और इस पर अदालत द्वारा आगे विचार किया जाना चाहिए।
शीर्ष कोर्ट ने उठाए थे सवाल
पीठ ने इस मामले में कुछ प्रश्न तैयार किए थे। पीठ ने पूछा, जब कोई व्यक्ति किसी मामले से केवल एक वकील के रूप में जुड़ा हो और पक्षकार को सलाह दे रहा हो, तो क्या जांच एजेंसी-अभियोजन एजेंसी या पुलिस सीधे वकील को पूछताछ के लिए बुला सकती है? एक अन्य प्रश्न था, यह मानते हुए कि जांच एजेंसी या अभियोजन एजेंसी या पुलिस के पास यह मामला है कि व्यक्ति की भूमिका केवल एक वकील के रूप में नहीं, बल्कि उससे कहीं अधिक है, तब भी क्या उन्हें सीधे समन भेजने की अनुमति दी जानी चाहिए या क्या उन असाधारण मानदंडों के लिए न्यायिक निगरानी निर्धारित की जानी चाहिए?
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