
नई दिल्ली। दुनिया भर में यह सर्वविदित है कि पाकिस्तान (Pakistan) में असली सत्ता का संचालन सेना करती है। वहां की लोकतांत्रिक सरकारें (Democratic governments) अक्सर सेना के इशारों पर नाचती हैं। एक बार फिर यह सच्चाई सामने आई है कि पाकिस्तान की सेना और आतंकी संगठनों के बीच गहरे रिश्ते हैं।
हाल ही में पाकिस्तान के प्रमुख शहरों कराची और लाहौर में कुछ ऐसे पोस्टर लगाए गए हैं, जिनमें पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को लश्कर-ए-तैयबा के शीर्ष आतंकियों के साथ एक ही तस्वीर में दिखाया गया है। ये पोस्टर इस बात का सीधा प्रमाण हैं कि पाकिस्तानी सेना और प्रतिबंधित आतंकी संगठनों के बीच कोई दूरी नहीं है।
यौम-ए-तकबीर, पर आतंकियों के साथ जश्न- 28 मई 1998 को पाकिस्तान ने अपने पहले परमाणु परीक्षण किए थे, जिसे यौम-ए-तकबीर के रूप में हर साल मनाया जाता है। इस वर्ष की 27वीं वर्षगांठ पर जो पोस्टर देशभर में लगाए गए, उनमें लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों के साथ सेना प्रमुख भी दिखे। यह केवल एक प्रचार नहीं, बल्कि पाकिस्तान की आतंक समर्थक नीति को खुलकर कबूल करता है।
हाल ही में भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान और पीओके स्थित नौ आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए, जिनमें सौ से अधिक आतंकवादी मारे गए। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि इन आतंकियों के अंतिम संस्कार में पाकिस्तानी सेना के अधिकारी भी मौजूद थे, जो इस मिलीभगत की पुष्टि करता है।
कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले, जिसमें 26 निर्दोष नागरिकों की जान गई, की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा के मुखौटा संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने ली। यह भी साफ दर्शाता है कि पाकिस्तान अपनी जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंक फैलाने के लिए कर रहा है।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित संगठनों से निकटता, कराची-लाहौर में लगे शर्मनाक पोस्टर और भारतीय सीमा में आतंकवादी गतिविधियों के पीछे सेना की भूमिका – यह सब पाकिस्तान के दोहरे चरित्र को उजागर करता है। वह एक ओर आतंक का शिकार होने का ढोंग करता है, और दूसरी ओर खुद आतंक को सहारा देता है।
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