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कानूनी जंग में कंपनियों ने खर्च किए 62 हजार करोड़, टॉप पर RIL, इंफोसिस

September 19, 2025

डेस्क: देश के कॉरपोरेट (Corporate) कई मोर्चो पर लड़ाई लड़ते हैं. जहां उन्हें मार्केट (Market) में बने रहने के लिए अपने कंप्टीटर से अलग तरह की जंग लड़नी पड़ती है. कभी प्राइस वॉर होता है तो कभी प्रोडक्ट्स के मोर्चे पर. इन सब के अलावा देश के कॉरपोरेट्स को लीगल मोर्चे (Legal Front) पर जंग लड़नी पड़ रही है. जिसकी वजह से देश के कॉरपोरेट्स ने पिछले वित्त वर्ष (Financial Year) में हजारों करोड़ रुपए खर्च कर दिए हैं. ये रकम 62 हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा की है. खास बात तो ये है कि ये खर्च वित्त वर्ष 2024 के मुकाबले में 11 फीसदी बढ़ा है. लीगल मामलों में खर्च करने के मामले में रिलायंस इंडस्ट्रीज टॉप पर है.

पिछले वित्त वर्ष में भारतीय कंपनियों का लीगल खर्च 11 फीसदी बढ़कर 62,146 करोड़ रुपए (7.27 बिलियन डॉलर) हो गया, जिसमें रिलायंस इंडस्ट्रीज, सन फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज, कोफोर्ज, इंफोसिस और लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) टॉप 5 कंपनियां शामिल हैं. ईटी की रिपोर्ट के अनुसार टॉप 500 कंपनियों की सालाना रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार, विदेशों में डील की गति में तेजी, डिस्प्यूट्स के समाधान और अधिक कंप्लायंस कॉस्ट के कारण इस खर्च में भारी इजाफा देखने को मिला है.

जबकि निफ्टी 500 कंपनियों ने वित्त वर्ष 2024 में कानूनी मामलों पर 56,016 करोड़ (6.72 बिलियन डॉलर) खर्च किए थे. इसमें से, मार्केट कैप के हिसाब से टॉप 50 कंपनियों का कुल कानूनी खर्च में बड़ा हिस्सा है. आंकड़ों से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2025 में निफ्टी 50 कंपनियों का कानूनी खर्च 10 फीसदी बढ़कर 20,640 करोड़ रुपए हो गया.

लॉ फर्म डीएसके लीगल के मैनेजिंग पार्टनर ने ईटी की रिपोर्ट में कहा कि मुझे लगता है कि जब तक एआई जैसी तकनीक का सही ढंग से इस्तेमाल नहीं हो जाता, तब तक यह कानूनी खर्च बढ़ता रहेगा. मुझे लगता है कि हमें अपने कानूनों और नियमों में स्थिरता लानी होगी और सरकार को ज्यादा से ज्यादा एक या दो अपीलों में ही उलझना होगा.


वित्त वर्ष 2025 में टॉप 5 कानूनी खर्च करने वाली कंपनियों में रिलायंस इंडस्ट्रीज सबसे ऊपर रही. देश की सबसे बड़ी कंपनी ने लीगल मामलों में 3,459 करोड़ रुपए खर्च कर डाले. वहीं सन फार्मास्युटिकल ने 3,261 करोड़ रुपए, कोफोर्ज ने 1,664 करोड़ रुपए, इंफोसिस ने 1,655 करोड़ रुपए और एलएंडटी ने 1,615 करोड़ रुपए खर्च किए हैं. आमतौर पर, लीगल कॉस्ट में मुकदमेबाजी और मध्यस्थता, प्रोफेशनल चार्ज, रेगुलेटरी, दंड और सामान्य स्टाम्प ड्यूटी आदि पर होने वाले खर्च शामिल होते हैं.

एलएंडटी ग्रुप के जनरल काउंसिल ने ईटी की रिपोर्ट में कहा कि देश से बाहर मर्जर एवं एक्विजिशन और दूसरी डील एक्टीविटीज के कारण भारतीय उद्योग जगत के कानूनी खर्च में वृद्धि हुई है. कुमार ने कहा कि कंपनियों को मुकदमेबाजी और मध्यस्थता प्रोसेस से संबंधित काफी लागत उठानी पड़ी. नियमों का पालन करने और नॉन-कंप्लायंस से बचने पर बढ़ते ध्यान ने कानूनी खर्च को काफी बढ़ा दिया. उन्होंने कहा कि मेरे विचार से, कानूनी खर्च में वृद्धि एक मैच्योर मार्केट को दर्शाती है जहां कंपनियां लीगल और कंप्लायंस को रणनीतिक क्षेत्रों के रूप में तेजी से पहचान रही हैं और उनमें निवेश कर रही हैं.

कानूनी खर्च के मामले में टॉप 5 सेक्टर्स में फार्मास्यूटिकल्स सबसे टॉप पर देखने को मिल रहा है. इस सेक्टर की कंपनियों ने वित्त वर्ष 2025 में लीगल मामलों पर 10,776 करोड़ रुपए खर्च कर दिए. आईटी सेक्टर 9,520 करोड़ रुपए के खर्च के साथ दूसरे नंबर पर रही. फाइनेंस 4,625 करोड़ रुपए, ऑयल एवं गैस 4,126 करोड़ रुपए और कैपिटल गुड्स सेक्टर की कंपनियों ने 3,870 करोड़ रुपए लीगल मामलों में खर्च किए हैं.

निफ्टी 500 कंपनियों का कुल कानूनी खर्च भले ही काफी बड़ा लग रहा हो, लेकिन वित्त वर्ष 2025 में यह उनके कुल रेवेन्यू का मात्र 0.39 फीसदी था. वित्त वर्ष 2025 में निफ्टी 500 कंपनियों का कुल रेवेन्यू 1,57,13,552 करोड़ रुपए रहा, जो पिछले वर्ष के 1,46,99,064 करोड़ रुपए से 6.90 फीसदी अधिक है. वित्त वर्ष 2025 में कुल प्रोफिट 10.4 फीसदी बढ़कर 15,66,345 करोड़ रुपए हो गया.

कानूनी फर्म इकोनॉमिक लॉज प्रैक्टिस के पार्टनर ने मीडिया रिपोर्ट में कहा कि कानूनी खर्च बिजनेस करने की एक आवश्यक खर्च है. लगातार बढ़ती रेगुलेटरी जटिलता, मुकदमेबाजी के रिस्क और कॉर्पोरेट ट्रांजेक्शन में वृद्धि के साथ, कानूनी खर्च में लगातार वृद्धि जारी रहेगी. उन्होंने आगे कहा कि टेक, एनर्जी और फार्मास्यूटिकल्स जैसे सेक्टर्स में लीगल कॉस्ट आमतौर पर अधिक होती है, क्योंकि इनमें हाई रेगुलेटरी रिस्क होता है और इसलिए अधिक कानूनी विशेषज्ञता की जरुरत होती है.

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