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समागम 3.0: पूर्व छात्रों से मिली नई राह, विश्वविद्यालय के फंड के लिए बनेगा मास्टर प्लान

December 24, 2025

इंदौर। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय (Devi Ahilya University) खंडवा रोड ऑडिटोरियम (Auditorium) में मंगलवार शाम पूर्व छात्रों (Student) की एलुमनाई मीट (Alumni Meet) में एक ओर जहां भावुक पल देखा गया तो वहीं शिक्षा (Education) से जुड़े कई विषयों पर बातें भी हुई। इसमें शामिल होने के लिए पूर्व छात्र अमेरिका, टोक्यो, जर्मनी सहित भारत के कई शहरों से करीब 300 छात्र शामिल हुए।

कार्यक्रम का आयोजन देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी एल्युमिनाई एसोसिएशन द्वारा किया गया। इसमें अटल बिहारी वाजपई क्वालिटी इंस्टीट्यूट के वाइस चेयरमैन राजीव दीक्षित, प्रेस क्लब अध्यक्ष दीपक कर्दम, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के कुलपति राकेश सिंघई, रजिस्ट्रार प्रज्वलन खरे, दुआ की अध्यक्ष माया इंग्ले सचिव अतुल गौतम मौजूद रहे। माया इंग्ले ने एसोसिएशन की जानकारी देते हुए बताया कि चार दिन पहले जर्मनी में भी इसकी शुरुआत हुई है। उन्होंने विदेश और देश भर से आगे पूर्व छात्रों का आभार व्यक्त किया।

यही से सीखी लीडरशिप क्वालिटी…
राजीव दीक्षित ने बताया कि काफी समय से वो इस एसोसिएशन से जुड़े हुए है। हर साल वो इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आते रहेंगे। इसी विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र रहे प्रेस क्लब अध्यक्ष दीपक कर्दम ने बताया कि यही से उन्होंने लीडरशिप क्वॉलिटी सीखी है जो उन्हें काफी मददगार रही।

विकास के लिए करे आर्थिक सहयोग: कुलपति
कार्यक्रम में कुलपति राकेश सिंघई ने बताया कि यह विश्वविद्यालय सेंट्रल इंडिया में स्टेट यूनिवर्सिटी में 49 रैंक वाला विश्वविद्यालय है उन्होंने विश्व विद्यालय की आगामी योजनाओं की जानकारी दी और पूर्व छात्रों से अपील की वो विकास के लिए आर्थिक सहयोग दे। यूनिवर्सिटी की आय के साधन काफी कम है। ऐसे में और अधिक काम करने के लिए फंड की जरूरत है। कार्यक्रम में कथक डांस के बाद एक बैंड ने अपनी प्रस्तुति दी। गायक कपिल पुरोहित ने भी गानों से समा बांध दिया। 20 मिनट तक आतिशबाजी भी की गई। डीजे पर पूरी छात्र और विश्वविद्यालय पदाधिकारी जमकर थिरके।


शिक्षक, मार्गदर्शक की भूमिका निभाते है…
न्यू जर्सी अमेरिका से आए विवेक जैन ने वर्ष 1989 में यहां से एमसीए किया था। उन्होंने बताया कि इस यूनिवर्सिटी में उनकी पढ़ाई का अनुभव काफी अच्छा रहा। यहां के शिक्षक एक मार्गदर्शक की तरह पढ़ाई के अलावा हर काम में छात्रों की मदद के लिए आगे रहते है।

गुड टच, बेड टच पर विशेष कार्य….

  • छात्र ने बताया वह काफी सस्थाओं से जुड़े है जो विश्वविद्यालय के लिए आर्थिक मदद करती है। ऐसी संस्थाओं से समन्वय स्थापित कर वे विश्वविद्यालय के फंड जुटाने का प्रयास करेंगे।
  • पूर्व छात्र दीपक गुप्ता ने सुझाव दिया कि विश्व विद्यालय को खुद को सीएसआर के लिए रजिस्टर्ड करवाना चाहिए। इससे फंड हासिल करने के लिए काफी मदद मिलेगी।
  • दमोह से आए छात्र ने बताया कि वो काफी समय से छात्राओं के लिए गुड टच, बेड टच विषय को लेकर काम कर रहे है।

भारत और अमेरिका की शिक्षा प्रणाली में मुख्य अंतर=
इस मौके पर अमेरिका से आए एलुमनाई से जब भारत और अमेरिका की शिक्षा प्रणाली के बीच के प्रमुख अंतर पर की गई तो उन्होंने कुछ बुनियादी फर्क बताए…

अमेरिका की ‘लिबरल आर्ट्स’ पद्धति छात्रों को देती है पंख…
भारत में अक्सर शिक्षा को एक ‘सीमित रास्ते’ की तरह देखा जाता है। हाई स्कूल खत्म करते ही छात्रों को विज्ञान, वाणिज्य या कला जैसी धाराओं में खुद को बांधना पड़ता है। अगर किसी ने विज्ञान चुना है, तो उसके लिए इतिहास या संगीत पढ़ना लगभग नामुमकिन हो जाता है। वहीं, अमेरिका की ‘लिबरल आर्ट्स’ पद्धति छात्रों को पंख देती है। वहां कोई भी छात्र अपनी पसंद के विषयों का ‘कॉम्बिनेशन’ खुद बना सकता है। वहां फिजिक्स पढ़ने वाला छात्र गिटार भी सीख सकता है। छात्रों को अपना मुख्य विषय चुनने के लिए दो साल का समय दिया जाता है, ताकि वे अपनी असली रुचि को पहचान सकें।

अमेरिका में एक दिन का इम्तिहान…
भारतीय शिक्षा प्रणाली में ‘सालाना परीक्षा’ का दबदबा है। यहां छात्र पूरे साल क्या करता है, उससे ज्यादा महत्व इस बात को दिया जाता है कि उसने बोर्ड परीक्षा या प्रवेश परीक्षाओं के तीन घंटों में कैसा प्रदर्शन किया। इसमें रटने की क्षमता और किताबी ज्ञान को अधिक अंक मिलते हैं। दूसरी तरफ, अमेरिका में ‘निरंतर मूल्यांकन’ चलता है। वहां छात्र की काबिलियत सिर्फ एक फाइनल पेपर से तय नहीं होती। सालभर चलने वाले छोटे-छोटे क्विज़, क्लास में छात्र की सक्रियता और प्रोजेक्ट्स को मिलाकर ग्रेड तय किए जाते हैं। वहां इस बात पर जोर दिया जाता है कि छात्र ने किसी समस्या को हल करना ‘सीखा’ है या नहीं, न कि सिर्फ उत्तर ‘याद’ किया है।

एलुमनाई के इस गीत ने बांधा समा……
पुरानी जींस, गिटार और चंद यार,
बस इसी के लिए नहीं आया हूं
जिए कैम्पस ने संवारा है हमें
उसे फिर से जीने आया हूं
किसी को देखकर लिखी थी पहली
वो लाइनें फिर से गुनभुनाने आया है। हाँ, हम अब फलक में पड़े तारे से बन गए है
लेकिन लड़कपन के किस्से सुनने आया हूं…

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