
नई दिल्ली । कांग्रेस (Congress)आगामी बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Vidhan Sabha Chunav) में अपनी रणनीति बदलने की तैयारी(Prepare to change strategy) कर रही है। देश की सबसे पुरानी पार्टी (The oldest party)और लालू यादव के नेतृत्व(led by Lalu Yadav) वाला दल राष्ट्रीय जनता दल (Party Rashtriya Janata Dal) बिहार में गठबंधन में चुनाव लड़ता आ रहा है। एनडीए से अलग होने के बाद नीतीश कुमार के साथ भी यह दोनों पार्टियां चुनाव लड़ चुकी है। 90 के दशक के बाद जब से कांग्रेस पार्टी का अस्तित्व बिहार में कमजोर हुआ है, वह राजद के भरोसे ही चुनावी मैदान में कूदती है। हालांकि, कांग्रेस ने हाल के दिनों में अपनी रणनीति में बदलाव किया है। दिल्ली चुनाव में इसकी झलक देखने को मिली है।
बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस समझौते के मूड में नहीं दिख रही है। पार्टी गठबंधन में चुनाव लड़ेगी लेकिन घटक दलों के बीच सीट बंटवारे में पार्टी इस बार ज्यादा सीट पर चुनाव लड़ने की जिद्द के बजाय जीत की अधिक संभावना वाली सीट हासिल करने की कोशिश करेगी। इससे पार्टी ज्यादा से ज्यादा सीट पर जीत हासिल कर सकेगी।
विधानसभा चुनाव की तैयारियों और सीट बंटवारे पर राजद और दूसरे घटक दलों के साथ बातचीत से पहले पार्टी ने एक आंतरिक सर्वे कराया है। करीब एक माह पहले हुए इस सर्वे के मुताबिक, पार्टी को सीट की संख्या के बजाय जीत की संभावना वाली सीट पर चुनाव लड़ना है। करीब पांच दर्जन सीट पर पार्टी के पास संगठन और बेहतर उम्मीदवार है।
प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि गठबंधन में सीट बंटवारे पर चर्चा के दौरान पार्टी सिर्फ उन सीट पर अपनी दावेदारी जताएगी, जहां जीत की संभावनाएं हैं। इसके लिए गठबंधन के सहयोगियों के साथ कुछ सीट की अदला-बदली भी करनी होगी। पार्टी ने वर्ष 2020 चुनाव में 70 सीट पर चुनाव लड़ा था पर इनमें ज्यादातर सीट सिर्फ गिनती बढ़ाने के लिए थी। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि गठबंधन के घटकदलों के साथ सीट बंटवारे पर कोई चर्चा नहीं हुई है, पर इतना साफ है कि कांग्रेस इस बार सीट की संख्या बढ़ाने के बजाय जीत पर ज्यादा ध्यान देगी।
2020 में कांग्रेस सिर्फ 19 सीट जीत सकी थी
पार्टी को गठबंधन में पसंदीदा सीट मिलती है, तो कम सीट पर चुनाव लड़ सकती है। वर्ष 2020 के चुनाव में कांग्रेस 70 में सिर्फ 19 सीट पर जीत दर्ज कर पाई थी। इन चुनाव में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के बाद पार्टी को गठबंधन की हार के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था। जबकि पार्टी को मिली 70 में से 45 सीट एनडीए का मजबूत गढ़ थी। पिछले चार चुनाव से इन सीट पर पार्टी लगातार हार रही थी।
लेफ्ट को मिला था फायदा
वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की परंपरागत कई सीट लेफ्ट के हिस्से में आई थी, जिसका लेफ्ट को फायदा मिला और उसका प्रदर्शन बेहतर रहा था। इससे पहले वर्ष 2015 के चुनाव में कांग्रेस ने सिर्फ 41 सीट पर किस्मत आजमाई थी और 27 पर जीत दर्ज की थी। ऐसे में कांग्रेस इस बार वर्ष 2020 की तरह ज्यादा सीट पर चुनाव लड़ने के बजाय जीत की अधिक संभावना वाली सीट पर चुनाव लड़ा जाए। पार्टी के एक नेता ने कहा कि इसके लिए पिछले चुनाव के मुकाबले कुछ कम सीट पर भी चुनाव लड़ा जा सकता है।
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