
नई दिल्ली: अंग्रेजी में एक मुहावरा है ‘वेल बिगन इज हाफ डन (शुरुआत अच्छी हो तो काम आसान हो जाता है)’. इसका उलटा यह हो सकता है कि ‘बैड बिगनिंग मेक्स ए बैड एंडिंग (शुरुआत खराब हो तो अंत भी खराब होना तय है)’. लेकिन नवनिर्वाचित कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे शायद इससे भी अलग एक और कहावत में यकीन रखते हैं कि ‘स्लो स्टार्टर्स विल टर्न इनटू ए स्ट्रांग फिनिशर’ यानी कि धीमी शुरुआत करने वाला पारी को मजबूती से अंजाम देता है.
दरअसल, हाल ही में हुए विधानसभा उपचुनावों में कांग्रेस पार्टी के खराब प्रदर्शन की वजह से खरगे को ऐसा मुहावरों की जरूरत पड़ सकती है. इन चुनावों की घोषणा 3 अक्टूबर को हुई थी, खरगे ने उस समय गांधी परिवार की जगह नहीं ली थी और कांग्रेस अध्यक्ष नहीं चुने गए थे. यह सच है कि उन्हें इन निराशाजनक परिणामों के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता. उनकी असली परीक्षा हिमाचल प्रदेश और गुजरात में होने वाली है, जहां दो बीजेपी शासित राज्य अगले तीन हफ्तों में अपनी नई विधानसभाओं का चुनाव करने के लिए तैयार हैं.
ध्यान रहे कि रविवार को छह राज्यों में सात खाली सीटों के लिए उपचुनाव के परिणाम घोषित किए गए. कांग्रेस के हाथों एक भी सीट नहीं आई. पार्टी ने इनमें से केवल तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था. इसने बिहार के दो निर्वाचन क्षेत्रों में सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल और महाराष्ट्र की अंधेरी पूर्व सीट पर शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) का समर्थन किया.
हालांकि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ उसका कोई मौजूदा गठबंधन नहीं है, लेकिन उसने गोला गोकर्णनाथ सीट से चुनाव न लड़ने का फैसला किया, जो अपने आप में आश्चर्यजनक था. गोला गोकरनाथ निर्वाचन क्षेत्र लखीमपुर खीरी जिले में है. जहां कांग्रेस पार्टी ने 3 अक्टूबर को स्थानीय सांसद के बेटे के काफिले द्वारा विरोध कर रहे कुछ किसानों को कथित तौर पर कुचलने के बाद स्थानीय लोगों की सहानुभूति हासिल करने की कोशिश की थी. इस घटना में चार किसानों और एक पत्रकार की मौत हो गई थी.
कांग्रेस ने शायद यह सबक सीखा था कि केवल कुछ घंटों के लिए धरना-प्रदर्शन और पीड़ितों के परिवारों के साथ फोटो खिंचवाने से उन्हें वोट नहीं मिलेगा. इस साल की शुरुआत में हुए उत्तरप्रदेश चुनावों में बीजेपी ने लखीमपुर खीरी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सभी 8 विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल की थी.
असल में गोला गोकर्णनाथ निर्वाचन क्षेत्र को अलविदा कहकर, कांग्रेस ने अपनी लाज बचाने की कोशिश की. ध्यान रहे कि बीते यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 403 सीटों में से केवल दो सीटें मिली थीं. इस उपचुनाव में कांग्रेस ने जिन तीन सीटों पर चुनाव लड़ा, उनमें से उसे सभी पर हार का सामना करना पड़ा, जबकि इनमें से दो सीटें पहले से उसके कब्जे में थीं. इन सीटों में हरियाणा की आदमपुर सीट और तेलंगाना की मुनुगोड सीट शामिल हैं और ओडिशा की धामनगर सीट पर महज 2.8 फीसदी वोट पाकर उसने अपनी जमानत भी गंवा दी.
गांधी परिवार अब पार्टी का नेतृत्व नहीं कर रहा है, इसलिए वह इस चुनावी हार के लिए नैतिक जिम्मेदारी नहीं लेगा. और खरगे गुलदस्ते लेने में व्यस्त थे जबकि उनके पार्टी प्रमुख बनने के एक सप्ताह के भीतर मतदान होना था. हालांकि, उनकी असली परीक्षा दो चुनावी राज्यों हिमाचल प्रदेश और गुजरात में देखी होगी.
ये कोई मामूली उपचुनाव नहीं थे, बल्कि इन राज्यों पर शासन करने वाले थे. प्रियंका गांधी को छोड़कर, गांधी परिवार के दूसरे सदस्य हिमाचल प्रदेश में प्रचार नहीं कर रहे हैं, जहां 12 नवंबर को होने वाले चुनाव का प्रचार गुरुवार को खत्म हो रहा है. प्रियंका ने सोमवार को यहां अपनी चौथी रैली की. इस बात का कोई जानकारी नहीं है कि सोनिया, राहुल और प्रियंका गुजरात में प्रचार करेंगे या नहीं. गुजरात में दो चरणों में 1 दिसंबर और 5 दिसंबर को मतदान होना है.
अभियान के प्रति गांधी परिवार की अनिच्छा समझ में आती है. अपनी खराब सेहत के कारण सोनिया ने बहुत पहले चुनाव प्रचार करना बंद कर दिया, राहुल अपनी महत्वाकांक्षी भारत जोड़ो यात्रा से ब्रेक लेने के लिए तैयार नहीं हैं. इस यात्रा के बारे में कांग्रेस पार्टी में कई लोग मानते हैं कि यह केंद्र में सत्ता में आने के लिए उनका पासपोर्ट है. प्रियंका अतिथि के तौर पर प्रचार कर सकती हैं. लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की अब तक दोनों राज्यों में अनुपस्थिति समझ में नहीं आती. इससे उलट, खरगे ने तेलंगाना और अपने गृह राज्य कर्नाटक का दौरा करना पसंद किया.
हालांकि, जब आलोचना हुई तो पार्टी मशीनरी हरकत में आ गई. ताकि हिमाचल के मतदाताओं को यह गलत संकेत न मिले कि कांग्रेस के शीर्ष नेता उनकी अनदेखी कर रहे हैं. एक क्विक फिक्स मोड में पार्टी ने सोमवार को घोषणा की कि खरगे मंगलवार को हिमाचल प्रदेश का दौरा करेंगे. और बनौटी व पंझेरा में दो चुनावी रैलियों को संबोधित करेंगे. इसके अलावा वे राज्य की राजधानी शिमला में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक करेंगे.
हिमाचल चुनाव के लिए प्रचार गुरुवार शाम से रुकने वाला है, इसलिए यह बहस का विषय है कि क्या राज्य में खरगे की प्रतीकात्मक उपस्थिति से उनकी पार्टी की संभावनाएं उज्ज्वल होंगी या नहीं. क्या वे स्वीकार करते हैं कि उनकी सीमित लोकप्रियता को देखते हुए वे पार्टी को कोई अतिरिक्त वोट हासिल कराने में मदद कर पाएंगे या फिर उन्हें पता है कि इन दोनों राज्यों में कांग्रेस का भविष्य क्या है और इसलिए वे कमान थामने के लिए अनिच्छुक हैं.
हालांकि, जो स्पष्ट है वह यह है कि कांग्रेस ने गांधी परिवार के एक वफादार को नए पार्टी प्रमुख के रूप में चुनने की अपनी कोशिश में गलती की और गलत व्यक्ति को अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना. यह पार्टी के लिए अच्छा नहीं है, खासकर इस तथ्य को देखते हुए कि फरवरी 2023 के बाद से 10 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और इसके बाद 2024 के संसदीय चुनाव होंगे.
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