
भोपाल। पांच राज्यों में करारी हार के बाद मध्य प्रदेश में कांग्रेस का सदस्यता अभियान खटाई में पड़ गया है। अगले साल चुनाव हैं लेकिन पार्टी नेताओं को टारगेट पूरा करने में पसीने छूट रहे हैं। हार के बाद कार्यकर्ताओं और नेताओं का मनोबल टूट गया है। जनता भी फिलहाल कोई लगाव कांग्रेस से दिखाती नजर नहीं आ रही है। उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार का असर बाकी राज्यों तक पहुंच रहा है। एमपी जैसे राज्य जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होना हैं, वहां इन नतीजों के बाद पार्टी का सदस्यता अभियान खटाई में है। पार्टी के जिलाध्यक्ष, प्रभारी और विधायकों को 50 लाख सदस्य बनाने का टारगेट दिया गया है। लेकिन बदले हालात में ये लक्ष्य गले की हड्डी बन गया है। सदस्यता अभियान के लिए पार्टी को नई गाइड लाइन जारी करनी पड़ी है। उसमें ये शर्त रखना पड़ी है कि सदस्यता नहीं करने वाले को पार्टी में कोई पद नहीं मिलेगा।
पहले टारगेट फिर पद
किसी भी दल में कार्यकर्ताओं के दम पर चुनाव जीते जाते हैं और कांग्रेस में अब ये हालात हैं कि कार्यकर्ता ढूंढते रह जाओगे। पार्टी को जमीन से जोडऩे के लिए मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने कार्यकर्ता अभियान चलाया। लेकिन खबर ये है कि पांच राज्यों के चुनाव नतीजे आने के बाद लोग कांग्रेस की सदस्यता लेने से कतरा रहे हैं। एमपी में कांग्रेस ने 50 लाख सदस्य बनाने का नया टारगेट रखा है। इसकी जवाबदारी पार्टी के जिलाध्यक्ष, प्रभारी समेत विधायकों पर है। लेकिन अब ये अभियान पार्टी के गले की हड्डी बन गया है। आज भोपाल में हुई कांग्रेस की रिव्यू मीटिंग में कांग्रेस सदस्यता अभियान के अध्यक्ष आर सी गुंटिया ने गाइडलाइन भी तय कर दी। इसके मुताबिक सदस्यता का टारगेट पूरा किए बिना पार्टी में कोई पद नहीं मिलेगा।
6 दिन और 50 लाख का टारगेट
6 दिन और पहाड़ जैसा 50 लाख लोगों की सदस्यता का टारगेट। उस पर ये तलवार भी कि सदस्यता अभियान में जिसने रसीद नहीं कटवाई उसे पार्टी में कोई पद नहीं मिलेगा। अब जबकि आम जनता कांग्रेस से ही मुंह मोड़ रही है तो ऐसे कार्यकर्ता की खेप खड़ी कर पाना नेताओं के लिए भी कड़ा इम्तेहान है।
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