
नई दिल्ली । कांग्रेस सांसद जयराम रमेश (Congress MP Jairam Ramesh) ने अरावली पहाड़ियों को लेकर (Regarding Aravalli Hills) केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को (To Union Environment Minister Bhupendra Yadav) पत्र लिखा (Wrote a Letter) ।
उन्होंने अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा को लेकर अपनी चिंताएं जाहिर कीं और इस संबंध में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री से चार सवाल पूछे हैं। जयराम रमेश ने कहा कि अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा को लेकर काफी चिंताएं हैं, जो उन्हें 100 मीटर या उससे ज्यादा ऊंचाई वाले लैंडफॉर्म तक सीमित करती हैं। उन्होंने पत्र के जरिए केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव से पूछा, “क्या यह सच नहीं है कि 2012 से राजस्थान में अरावली पहाड़ियों और रेंज की परिभाषा 28 अगस्त 2010 की फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआई) की एक रिपोर्ट पर आधारित थी?”
रिपोर्ट का जिक्र करते हुए जयराम रमेश ने कहा, “इसमें यह कहा गया था कि ऐसे सभी इलाके जिनका ढलान 3 डिग्री या उससे ज्यादा है, उन्हें पहाड़ियों के तौर पर दिखाया जाएगा। साथ ही ढलान वाली तरफ एक समान 100 मीटर चौड़ा बफर जोड़ा जाएगा, ताकि 20 मीटर की पहाड़ी ऊंचाई के हिसाब से संभावित फैलाव को ध्यान में रखा जा सके। इन बताए गए इलाकों में आने वाले समतल इलाके, टेबलटॉप, गड्ढे और घाटियां भी पहाड़ियों का हिस्सा मानी जाएंगी।”
कांग्रेस नेता ने 20 सितंबर के एक एफएसआई कम्युनिकेशन का भी जिक्र किया, जिसमें छोटी पहाड़ियों की इकोलॉजिकल अहमियत पर जोर दिया गया था। उन्होंने एफएसआई कम्युनिकेशन का हवाला देते हुए लिखा, “अरावली की छोटी पहाड़ी बनावट भारी रेत के कणों को रोककर रेगिस्तान बनने से रोकने के लिए नेचुरल बैरियर का काम करती है। इस तरह दिल्ली और आस-पास के मैदानों को रेत के तूफानों से बचाती है, क्योंकि हवा से उड़ने वाली रेत से बचाने वाले बैरियर का असर सीधे उसकी ऊंचाई के साथ बढ़ता है, इसलिए 10 से 30 मीटर की छोटी पहाड़ियां भी मजबूत नेचुरल विंड ब्रेक का काम करती हैं।”
जयराम रमेश ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाई गई केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) की एक रिपोर्ट का भी हवाला देते हुए केंद्रीय पर्यावरण मंत्री से सवाल किया है। उन्होंने आखिर में लिखा, “क्या यह सच नहीं है कि इस नई परिभाषा से कई छोटी पहाड़ियां और दूसरे जमीन के रूप खत्म हो जाएंगे व चार राज्यों में फैली पूरी अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं की भौगोलिक और इकोलॉजिकल एकता भी टूट जाएगी और कमजोर हो जाएगी?”

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