
कोलकाता । पश्चिम बंगाल (West Bengal) में मतदाता सूची (Voter list) के विशेष निरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया विवादों के केंद्र में आ गई है। राज्य के अलग-अलग जिलों में सुनवाई का नोटिस मिलने के बाद तीन बुजुर्गों की मौत हो गई है। इस मामले में पीड़ित परिवारों ने मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार और बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) मनोज अग्रवाल को जिम्मेदार ठहराते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है।
राज्य में पिछले दो दिनों के भीतर तीन बुजुर्गों की जान जा चुकी है, जो कथित तौर पर मतदाता सूची में नाम को लेकर जारी नोटिस के कारण मानसिक तनाव में थे।
पुरुलिया में 82 वर्षीय दुर्जन माझी को सोमवार को सुनवाई के लिए बुलाया गया था। उनके बेटे कनाई माझी का आरोप है कि उनके पिता का नाम 2002 की फिजिकल वोटर लिस्ट में था, लेकिन चुनाव आयोग की वेबसाइट पर वह गायब था। इस तकनीकी गड़बड़ी के कारण उन्हें नोटिस भेजा गया। अपनी नागरिकता और वोटिंग अधिकार पर संकट देख बुजुर्ग इतने परेशान हुए कि सुनवाई से कुछ घंटे पहले ही उन्होंने ट्रेन के आगे कूदकर जान दे दी।
हावड़ा में 64 वर्षीय जमात अली शेख की सोमवार को नोटिस मिलने के कुछ ही देर बाद मौत हो गई। उनके बेटे ने आरोप लगाया कि सीईसी और सीईओ ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर उनके पिता को मानसिक प्रताड़ना दी, जिससे उनकी जान चली गई। वहीं, पूर्वी मेदिनीपुर में मंगलवार को 75 वर्षीय बिमल शी अपने घर में फंदे से लटके पाए गए। परिजनों के अनुसार, सुनवाई का नोटिस मिलने के बाद से वे काफी घबराए हुए थे और गहरे तनाव में थे।
ECI के आदेश के बाद भी नोटिस
हैरानी की बात यह है कि चुनाव आयोग ने 27 दिसंबर को एक अधिसूचना जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि लगभग 1.3 लाख ऐसे मतदाता जिनका नाम 2002 के फिजिकल रिकॉर्ड में है लेकिन ऑनलाइन डेटाबेस में तकनीकी खराबी के कारण नहीं दिख रहा, उन्हें सुनवाई के लिए उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं होगी। बावजूद इसके कई जिलों में ऐसे बुजुर्गों को नोटिस भेजे गए, जिसने दहशत का माहौल पैदा कर दिया।
CEC के खिलाफ संभव नहीं FIR
इस पूरे मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने स्पष्ट किया कि मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) के खिलाफ कोई FIR दर्ज नहीं की जा सकती। कानून के मुताबिक, सीईसी को इस तरह की कार्रवाई से छूट प्राप्त है। अधिकारी ने यह भी कहा कि सीईओ को भी ड्यूटी के दौरान किए गए कार्यों के लिए किसी आपराधिक अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। पुलिस द्वारा दर्ज की गई किसी भी एफआईआर के कानूनी परिणाम हो सकते हैं।
इन मौतों के बाद बंगाल में सियासत भी गरमा गई है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि तकनीकी खामियों की सजा बुजुर्गों को इस तरह से देना मानवाधिकारों का उल्लंघन है। परिवारों का कहना है कि वे न्याय के लिए कानूनी लड़ाई जारी रखेंगे।
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